ETV Bharat / bharat

भारतीय जल क्षेत्र में अमेरिकी युद्धपोत का आना अनुचित है : विशेषज्ञ - भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र

भारतीय जल सीमा में अमेरिकी युद्धपोत के बिना अनुमति के प्रवेश करने को लेकर भारत के पूर्व राजदूत अशोक सज्जनहार ने ईटीवी भारत से कहा कि इस कदम से दोनों देशों के रिश्तों पर कोई प्रभाव नहीं पडे़गा, लेकिन अमेरिका को ऐसा करने से पहले भारत की अनुमति और सहमति लेनी चाहिए.

अशोक सज्जनहार
अशोक सज्जनहार
author img

By

Published : Apr 11, 2021, 1:30 AM IST

नई दिल्ली : भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिए जब भारत-अमेरिका द्विपक्षीय और रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ा रहे हैं. ऐसे समय में बिना पूर्व अनुमति और सहमति के भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में अमेरिकी युद्धपोत के प्रवेश करने के जॉन पॉल जोन्स के कदम ने सभी को चौंका दिया है.

इस संबंध में वाशिंगटन डीसी में राजनयिक पद पर काम कर चुके भारत के पूर्व राजदूत अशोक सज्जनहार ने ईटीवी भारत को बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका लॉ ऑफ सी (यूएनसीएलओएस) पर हस्ताक्षरकर्ता भी नहीं है, इसलिए अमेरिका यह नहीं कह सकता कि उसने यह कदम संयुक्त राष्ट्र के कानून के तहत उठाया है.

भारत की स्थिति के बारे में संयुक्त राज्य अमेरिका जो कह रहा है वह भारत के विचार से बहुत अलग है. संयुक्त राष्ट्र के कानून के अलावा भी भारत के अपने नियम हैं कि जिसके तहत जो भी जहाज वहां से गुजरते हैं, भले ही वह सीधे मार्ग पर हों, लेकिन उन्हें ऐसा करने से पहले भारत की अनुमति और सहमति लेनी चाहिए.

अशोक सज्जनहार ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका UNCLOS का हस्ताक्षरकर्ता भी नहीं है, इसलिए वे इस बात का सहारा नहीं ले सकते कि संयुक्त राष्ट्र के कानून के तहत इस तरह के कदम की अनुमति है. दूसरा इससे यह प्रतीत होता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस तरह का कदम कई वर्षों से उठाया जा रहा है और यह पहली बार नहीं हुआ है. यूएस नेवी का यह कदम पूरी दुनिया को यह दिखाता है कि चाहे वह चीन हो या भारत वे नेविगेशन ऑपरेशन की अपनी आजादी जारी रखेंगे.

हालांकि भारत के अपने नियम और कानून भी हैं, जिनके सम्मान और अनुपालन की आवश्यकता है.

सज्जनहार ने दोहराया कि UNCLOS जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसे वर्ष 1992 में अपनाया गया था. भारत ने वर्ष 1994 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका सम्मेलन में हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. यह अनावश्यक रूप से दो रणनीतिक भागीदारों के बीच समस्याएं पैदा करता है.

उन्होंने कहा कि अगर उन्हें चीन का सामना करना है , तो भारत-अमेरिका के बीच सहमति और सहयोग महत्वपूर्ण है. लक्षदीप कोई कृत्रिम द्वीप नहीं है और भारत दक्षिण चीन सागर में चीन जैसा कृत्रिम द्वीप नहीं बना रहा है. इसलिए मूल रूप से चुनौती चीन के खिलाफ होनी चाहिए न कि भारत जो कर रहा है उसके खिलाफ होनी चाहिए.

पूर्व राजनायिक ने कहा कि भारत-अमेरिका के संबंध रणनीतिक हैं और इस तरह की घटना से यह संबंध खराब हो सकते हैं. इसलिए ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए. दोनों देशों को दिल से दिल की बातचीत करने की जरूरत है और भविष्य में इससे निपटने के लिए सहमत होने की कोशिश करनी चाहिए.

हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका के इस कदम का भारत के साथ संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. यह पानी में एक बुलबुला की तरह है, जो यह गायब हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि अमेरिकी नौसेना नियमित रूप से दक्षिण चीन सागर में ऐसे गश्त आयोजित करती है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता और उसके पड़ोसियों पर क्षेत्रीय दावों को चुनौती दे सके. लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पूर्व अनुमति और बिना सहमति के भारतीय जल में घुसपैठ करने का कदम लंबे समय तक चलने वाले रिश्तों के लिए एक बड़ा झटका है. भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में नेविगेशन संचालन की स्वतंत्रता के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के इस तरह के कदम के खिलाफ भारत ने नई दिल्ली ने वाशिंगटन डीसी में विरोध दर्ज कराया है.

यह भी पढ़ें-यूपी : इटावा में श्रद्धालुओं से भरी गाड़ी पलटी, 11 की मौत, अमित शाह ने जताया दुख

विदेश मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा गया है कि समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर भारत सरकार की घोषित स्थिति यह है कि कन्वेंशन अन्य राज्यों को एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में और बाहर ले जाने के लिए अधिकृत नहीं करता है. महाद्वीपीय शेल्फ, सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास विशेष रूप से तटीय राज्य की सहमति के बिना नहीं होना चाहिए.

नई दिल्ली : भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिए जब भारत-अमेरिका द्विपक्षीय और रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ा रहे हैं. ऐसे समय में बिना पूर्व अनुमति और सहमति के भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में अमेरिकी युद्धपोत के प्रवेश करने के जॉन पॉल जोन्स के कदम ने सभी को चौंका दिया है.

इस संबंध में वाशिंगटन डीसी में राजनयिक पद पर काम कर चुके भारत के पूर्व राजदूत अशोक सज्जनहार ने ईटीवी भारत को बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका लॉ ऑफ सी (यूएनसीएलओएस) पर हस्ताक्षरकर्ता भी नहीं है, इसलिए अमेरिका यह नहीं कह सकता कि उसने यह कदम संयुक्त राष्ट्र के कानून के तहत उठाया है.

भारत की स्थिति के बारे में संयुक्त राज्य अमेरिका जो कह रहा है वह भारत के विचार से बहुत अलग है. संयुक्त राष्ट्र के कानून के अलावा भी भारत के अपने नियम हैं कि जिसके तहत जो भी जहाज वहां से गुजरते हैं, भले ही वह सीधे मार्ग पर हों, लेकिन उन्हें ऐसा करने से पहले भारत की अनुमति और सहमति लेनी चाहिए.

अशोक सज्जनहार ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका UNCLOS का हस्ताक्षरकर्ता भी नहीं है, इसलिए वे इस बात का सहारा नहीं ले सकते कि संयुक्त राष्ट्र के कानून के तहत इस तरह के कदम की अनुमति है. दूसरा इससे यह प्रतीत होता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस तरह का कदम कई वर्षों से उठाया जा रहा है और यह पहली बार नहीं हुआ है. यूएस नेवी का यह कदम पूरी दुनिया को यह दिखाता है कि चाहे वह चीन हो या भारत वे नेविगेशन ऑपरेशन की अपनी आजादी जारी रखेंगे.

हालांकि भारत के अपने नियम और कानून भी हैं, जिनके सम्मान और अनुपालन की आवश्यकता है.

सज्जनहार ने दोहराया कि UNCLOS जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसे वर्ष 1992 में अपनाया गया था. भारत ने वर्ष 1994 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका सम्मेलन में हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. यह अनावश्यक रूप से दो रणनीतिक भागीदारों के बीच समस्याएं पैदा करता है.

उन्होंने कहा कि अगर उन्हें चीन का सामना करना है , तो भारत-अमेरिका के बीच सहमति और सहयोग महत्वपूर्ण है. लक्षदीप कोई कृत्रिम द्वीप नहीं है और भारत दक्षिण चीन सागर में चीन जैसा कृत्रिम द्वीप नहीं बना रहा है. इसलिए मूल रूप से चुनौती चीन के खिलाफ होनी चाहिए न कि भारत जो कर रहा है उसके खिलाफ होनी चाहिए.

पूर्व राजनायिक ने कहा कि भारत-अमेरिका के संबंध रणनीतिक हैं और इस तरह की घटना से यह संबंध खराब हो सकते हैं. इसलिए ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए. दोनों देशों को दिल से दिल की बातचीत करने की जरूरत है और भविष्य में इससे निपटने के लिए सहमत होने की कोशिश करनी चाहिए.

हालांकि संयुक्त राज्य अमेरिका के इस कदम का भारत के साथ संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. यह पानी में एक बुलबुला की तरह है, जो यह गायब हो जाएगा.

उन्होंने कहा कि अमेरिकी नौसेना नियमित रूप से दक्षिण चीन सागर में ऐसे गश्त आयोजित करती है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता और उसके पड़ोसियों पर क्षेत्रीय दावों को चुनौती दे सके. लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पूर्व अनुमति और बिना सहमति के भारतीय जल में घुसपैठ करने का कदम लंबे समय तक चलने वाले रिश्तों के लिए एक बड़ा झटका है. भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में नेविगेशन संचालन की स्वतंत्रता के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के इस तरह के कदम के खिलाफ भारत ने नई दिल्ली ने वाशिंगटन डीसी में विरोध दर्ज कराया है.

यह भी पढ़ें-यूपी : इटावा में श्रद्धालुओं से भरी गाड़ी पलटी, 11 की मौत, अमित शाह ने जताया दुख

विदेश मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा गया है कि समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर भारत सरकार की घोषित स्थिति यह है कि कन्वेंशन अन्य राज्यों को एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में और बाहर ले जाने के लिए अधिकृत नहीं करता है. महाद्वीपीय शेल्फ, सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास विशेष रूप से तटीय राज्य की सहमति के बिना नहीं होना चाहिए.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.