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पुण्यतिथि पर विशेष : जब मिशन पोखरण के लिए डॉ. कलाम ने छुपा ली थी अपनी पहचान

40 यूनिवर्सिटी से 7 डॉक्टरेट की उपाधियां पाने वाले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे (Dr APJ Abdul Kalam) की आज पुण्यतिथि है. प्रेरणा से भरे उनके जीवन में ऐसा बहुत कुछ है जो आज भी हमें सीख देता है. राजस्थान से उनका खास कनेक्शन (Rajasthan Connection) था, खासतौर पर 1998 में जब वे जैसलमेर (Jaisalmer) में उतरे तो उन्होंने अपना नाम बदल लिया. आइए आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़े खास घटनाक्रम के बारे में.

पुण्यतिथि
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Published : Jul 27, 2021, 1:34 PM IST

जयपुर : राजस्थान के पोखरण में 11 मई 1998 की तारीख भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. पोखरण में एक के बाद एक तीन परमाणु बमों का सफल परीक्षण भला किसे याद नहीं होगा जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी थी.

भारत को शक्तिशाली बनाने वाले इस पल के पीछे जिस शख्सियत की प्रमुख भूमिका रही वे हैं देश के प्रमुख वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम.

पुण्यतिथि पर विशेष
पुण्यतिथि पर विशेष

आज पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि है. उन्हें श्रद्धांजलि देने के मौके पर उनके जीवन के सबसे प्रेरणादायक घटनाक्रम जिक्र बहुत जरूरी है.

15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे डॉ. कलाम कड़ी मेहनत और साहस के चलते ही देश के 11वें राष्ट्रपति बने. यहां हम उनके निर्देशन में किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण की बात करेंगे. डॉ. कलाम उस समय रक्षा मंत्रालय में सलाहकार वैज्ञानिक के पद पर थे. एपीजे अब्दुल कलाम 1992 से 1999 यानी 7 सालों तक प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के सचिव रहे थे.

साल 1998 के परमाणु परीक्षणों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. खास बात यह है कि उन्होंने वैज्ञानिकों की पूरी टीम को लीड किया था. इस मिशन को गोपनीय बनाए रखने के लिए डॉ. कलाम ने निर्देशों पर ही रात में काम होता था. मिशन के लिए डॉ. कलाम ने अपनी पहचान तक छुपा ली थी.

बताया जाता है कि उन्होंने आर्मी का वेश धारण किया और अपना नाम बदलकर मेजर जनरल पृथ्वीराज रख लिया था. उनके साथ काम करने वाली वैज्ञानिकों की टीम को भी कुछ ऐसा ही करना पड़ा था.

डॉ. कलाम की टीम के काम करने के लिए खेतोलाई गांव में एक डीयर पार्क बनाया गया था जिसमें गोपनीय तरीके से कंट्रोल रूम चलता था. इसकी कमान खुद मेजर जनरल पृथ्वीराज (डॉ. कलाम) के हाथों में थी. परमाणु परीक्षण अभियान-2 को उनकी देखरेख में बखूबी अंजाम दिया गया.

इसे पढे़ं: 23 वर्ष पूर्व जब पोकरण के धमाके से स्तब्ध रह गई दुनिया, जानें पूरी गौरव गाथा

11 मई 1998 को जब एक के बाद एक पांच विस्फोट हुए तो अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों का आंखें फटी की फटी रह गई. इसके बाद भारत की मिसाइल परियोजनाओं के विकास में कलाम के योगदान के लिए उन्हें 'मिसाइल मैन' कहा जाता है. उनका निधन 27 जुलाई 2015 को हुआ था.

इसे पढ़ें: Pokhran Nuclear Test : 11 मई 1998 की वो रात, जब भारत ने मनवाया था न्यूक्लियर पावर का लोहा, दंग रह गई थी दुनिया

जयपुर : राजस्थान के पोखरण में 11 मई 1998 की तारीख भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. पोखरण में एक के बाद एक तीन परमाणु बमों का सफल परीक्षण भला किसे याद नहीं होगा जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी थी.

भारत को शक्तिशाली बनाने वाले इस पल के पीछे जिस शख्सियत की प्रमुख भूमिका रही वे हैं देश के प्रमुख वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम.

पुण्यतिथि पर विशेष
पुण्यतिथि पर विशेष

आज पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि है. उन्हें श्रद्धांजलि देने के मौके पर उनके जीवन के सबसे प्रेरणादायक घटनाक्रम जिक्र बहुत जरूरी है.

15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे डॉ. कलाम कड़ी मेहनत और साहस के चलते ही देश के 11वें राष्ट्रपति बने. यहां हम उनके निर्देशन में किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण की बात करेंगे. डॉ. कलाम उस समय रक्षा मंत्रालय में सलाहकार वैज्ञानिक के पद पर थे. एपीजे अब्दुल कलाम 1992 से 1999 यानी 7 सालों तक प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के सचिव रहे थे.

साल 1998 के परमाणु परीक्षणों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. खास बात यह है कि उन्होंने वैज्ञानिकों की पूरी टीम को लीड किया था. इस मिशन को गोपनीय बनाए रखने के लिए डॉ. कलाम ने निर्देशों पर ही रात में काम होता था. मिशन के लिए डॉ. कलाम ने अपनी पहचान तक छुपा ली थी.

बताया जाता है कि उन्होंने आर्मी का वेश धारण किया और अपना नाम बदलकर मेजर जनरल पृथ्वीराज रख लिया था. उनके साथ काम करने वाली वैज्ञानिकों की टीम को भी कुछ ऐसा ही करना पड़ा था.

डॉ. कलाम की टीम के काम करने के लिए खेतोलाई गांव में एक डीयर पार्क बनाया गया था जिसमें गोपनीय तरीके से कंट्रोल रूम चलता था. इसकी कमान खुद मेजर जनरल पृथ्वीराज (डॉ. कलाम) के हाथों में थी. परमाणु परीक्षण अभियान-2 को उनकी देखरेख में बखूबी अंजाम दिया गया.

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11 मई 1998 को जब एक के बाद एक पांच विस्फोट हुए तो अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों का आंखें फटी की फटी रह गई. इसके बाद भारत की मिसाइल परियोजनाओं के विकास में कलाम के योगदान के लिए उन्हें 'मिसाइल मैन' कहा जाता है. उनका निधन 27 जुलाई 2015 को हुआ था.

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