नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने चुनौतीपूर्ण समय में मौलिक अधिकारों की रक्षा में शीर्ष न्यायालय की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि आतंकवाद निरोधी कानून समेत अपराध कानूनों का दुरुपयोग असहमति को दबाने या नागरिकों के उत्पीड़न के लिए नहीं होना चाहिए.
अमेरिकन बार एसोसिएशन, सोसाइटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स और चार्टर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ आर्बिट्रेटर्स द्वारा आयोजित सम्मेलन में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सोमवार को यह बात कही. सम्मेलन का विषय चुनौतीपूर्ण समय में मौलिक अधिकारों की रक्षा में उच्चतम न्यायालय की भूमिका था.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत का उच्चतम न्यायालय बहुसंख्यकवाद निरोधी संस्था की भूमिका निभाता है और सामाजिक, आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों की रक्षा करना शीर्ष अदालत का कर्तव्य है. उन्होंने आगे कहा कि इस काम के लिए उच्चतम न्यायालय को एक सतर्क प्रहरी की भूमिका भी निभानी होती है और संवैधानिक अंत:करण की आवाज को सुनना होता है, यही भूमिका न्यायालय को 21वीं सदी की चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए प्रेरित करती है जिसमें वैश्विक महामारी से लेकर बढ़ती असहिष्णुता जैसी चुनौती शामिल हैं जो दुनियाभर में देखने को मिल रही हैं.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कोविड महामारी के दौरान जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के शीर्ष न्यायालय के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि जेलों में भीड़भाड़ कम करना महत्वपूर्ण था क्योंकि ये स्थान कोरोना वायरस फैलने के लिहाज से संवेदनशील थे लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण यह पता लगाना है कि आखिर जेलों में भीड़भाड़ हुई ही क्यों.
वरिष्ठ पत्रकार अर्नब गोस्वामी के मामले में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि आतंकवाद निरोधी कानून समेत अपराध कानून का इस्तेमाल असहमति को दबाने या नागरिकों का उत्पीड़न करने के लिए नहीं होना चाहिए.
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उन्होंने कहा कि भारत के लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले पहलुओं में भारत के उच्चतम न्यायालय की भूमिका और सहभागिता को कम करके नहीं आंका जा सकता है. न्यायाधीश ने कहा कि इस जिम्मेदारी से भलीभांति अवगत रहते हुए भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अधिकारों के विभाजन को बनाए रखने को लेकर एकदम सतर्क हैं.
(पीटीआई-भाषा)