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नए एजेंडे पर अमेरिका, भारत भी अहम सहयोगी - भारत अमेरिका नया सहयोगी

ट्रंप से इतर बाइडेन प्रशासन फिर से अमेरिका को वैश्विक मंच पर पुनः स्थापित करने की कोशिश में लगे हुए हैं. चीन को उन्होंने कड़ा संदेश दे दिया है. भारत को लेकर बाइडेन ने सकारात्मक रूख अपनाया है. अपने प्रशासन में उन्होंने भारतीय मूल के 50 से अधिक व्यक्तियों को जगह दी है. हालांकि, जगह देने के बजाए असल धरातल पर बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है ताकि दोनों देशों के बीच संबंधों को नया आयाम मिल सके.

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भारत के पीएम नरेंद्र मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन
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Published : Apr 7, 2021, 6:20 PM IST

हैदराबाद : पहले से ही गंभीर संकटों का सामना कर रही दुनिया के सामने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने और भी कई विवाद जोड़ दिए. उनके काम करने के तरीके से समस्याएं और बढ़ गईं. अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पद संभालने के बाद सबसे पहले इस बात की घोषणा की, कि वह ट्रंप की नीतियों का त्याग कर रहे हैं. वह दुनिया के दूसरे देशों के साथ पुराने संबंधों को फिर से पटरी पर लौटाएंगे. उन्होंने कहा कि बीते समय की चुनौतियों को छोड़कर वह आज और आने वाली समस्याओं का सामना करने के लिए काम करेंगे.

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की घोषणा करने से पहले बाइडेन ने अमेरिका के सभी विभागों के लिए दिशा निर्देशों का उल्लेख कर दिया था. 'अमेरिका पहले' जैसे भावनात्मक नारे के बजाए बाइडेन ने आर्थिक सुरक्षा को ही राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार बताया.

अमेरिका में अब फिर से नया चलन देखने को मिल रहा है. कुछ भी बोलने से पहले उसके स्पष्ट मूल्यों को लागू करने का संकल्प लेना. अमेरिका ने कूटनीति को प्राथमिकता देते हुए सेना के आधुनिकीकरण को जारी रखने का फैसला लिया है. पारंपरिक सहयोगियों के साथ संबंधों को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका फिर से वही रूतबा हासिल हो, इसके प्रयास किए जा रहे हैं.

ट्रंप ने अपने कार्यकाल में बहुत सारे फैसले एकतरफा लिए थे. उत्तर कोरिया, लॉकडाउन, ईरान मुद्दा और पेरिस जलवायु समझौते पर उनके फैसले चौंकाने वाले थे. उनकी नस्लवादी नीति की वजह से अमेरिका में सामाजिक खाई और बढ़ने लगी थी. उनकी नीति से ठीक विपरीत बाइडेन 'बड़े भाई' की भूमिका निभाना नहीं चाहते हैं. जाहिर है प्रजातंत्र के लिए स्वतंत्रता, शांति, संपन्नता और व्यक्तिगत सम्मान बहुत जरूरी है.

बाइडेन ने चीन को लेकर भी बहुत महत्वपूर्ण बातें की हैं. उन्होंने कहा कि चीन समय के साथ अपना दबदबा बढ़ाता जा रहा है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा प्रतिस्पर्धी देश है, जो आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति की बदौलत स्थायी और खुली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को लगातार चुनौती देने की क्षमता रखता है.

चीन की आधिकारिक मैगजीन 'ग्लोबल टाइम्स' ने बाइडेन की नीति की प्रशंसा की है. मैगजीन ने कहा कि बाइडेन ने चीन के साथ काम करने को लेकर सकारात्मक रूख दिखाया है. साथ ही उन्होंने चीन के साथ रणनीतिक संघर्ष की बात को भी स्वीकार किया है. दोनों बातें अच्छी हैं.

दुनिया में जिस तरीके से अमेरिका का प्रभाव घटा, चीन ने उसका पूरा फायदा उठाया. वह उस स्पेस को हड़पने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, आज भी सैन्य और आर्थिक स्थिति के आधार पर अमेरिका को 'सुपर पावर' का दर्जा हासिल है.

बाइडेन मानते हैं कि महामारी, जलवायु संकट, साइबर हमला, आतंकवाद और अन्य हिंसक प्रवृत्तियों के खिलाफ अमेरिका को छोड़कर दूसरे देश अकेले नहीं निपट सकते हैं. यही वजह है कि बाइडेन ने पेरिस जलवायु समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका को फिर से जोड़ दिया. उन्होंने कहा कि सहयोगियों और दोस्त देशों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय मंचों को फिर से जीवित करने की जरूरत है, ताकि सदियों से चली आ रही चुनौतियों से निपटा जा सके. यदि लोकतांत्रिक राष्ट्रों की एकजुटता और मजबूत अंतरराष्ट्रीय संहिता तैयार की जाए तो चीन को भी जवाबदेह बनाया जा सकता है. उन्होंने भारत के साथ संबंध मजबूत करने के अपने संकल्प को भी महत्व दिया है.

2006 में बाइडेन ने अमेरिका-भारत के संबंधों पर कहा था कि 2020 तक भारत और अमेरिका पूरी दुनिया में सबसे घनिष्ठ देश होंगे. बिना भारत के सहयोग के दुनिया की किसी भी चुनौतियों का समाधान नहीं हो सकता है. अपने प्रशासन में बाइडेन ने भारतीय मूल के 50 व्यक्तियों को जगह दी है. उप राष्ट्रपति भी उनमें से एक हैं. हालांकि, इन कदमों से दूर बाइडेन को असल धरातल पर बहुत कुछ करने की जरूरत है, जैसे भारत को महत्वपूर्ण तकनीक ट्रांसफर करना. बाइडेन तभी सफल होंगे, जब वह यह भरोसा दिलाएंगे कि सुपर पावर के साथ साझेदारी विश्व में शांति और समृद्धि के हित में होगी.

हैदराबाद : पहले से ही गंभीर संकटों का सामना कर रही दुनिया के सामने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने और भी कई विवाद जोड़ दिए. उनके काम करने के तरीके से समस्याएं और बढ़ गईं. अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पद संभालने के बाद सबसे पहले इस बात की घोषणा की, कि वह ट्रंप की नीतियों का त्याग कर रहे हैं. वह दुनिया के दूसरे देशों के साथ पुराने संबंधों को फिर से पटरी पर लौटाएंगे. उन्होंने कहा कि बीते समय की चुनौतियों को छोड़कर वह आज और आने वाली समस्याओं का सामना करने के लिए काम करेंगे.

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की घोषणा करने से पहले बाइडेन ने अमेरिका के सभी विभागों के लिए दिशा निर्देशों का उल्लेख कर दिया था. 'अमेरिका पहले' जैसे भावनात्मक नारे के बजाए बाइडेन ने आर्थिक सुरक्षा को ही राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार बताया.

अमेरिका में अब फिर से नया चलन देखने को मिल रहा है. कुछ भी बोलने से पहले उसके स्पष्ट मूल्यों को लागू करने का संकल्प लेना. अमेरिका ने कूटनीति को प्राथमिकता देते हुए सेना के आधुनिकीकरण को जारी रखने का फैसला लिया है. पारंपरिक सहयोगियों के साथ संबंधों को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका फिर से वही रूतबा हासिल हो, इसके प्रयास किए जा रहे हैं.

ट्रंप ने अपने कार्यकाल में बहुत सारे फैसले एकतरफा लिए थे. उत्तर कोरिया, लॉकडाउन, ईरान मुद्दा और पेरिस जलवायु समझौते पर उनके फैसले चौंकाने वाले थे. उनकी नस्लवादी नीति की वजह से अमेरिका में सामाजिक खाई और बढ़ने लगी थी. उनकी नीति से ठीक विपरीत बाइडेन 'बड़े भाई' की भूमिका निभाना नहीं चाहते हैं. जाहिर है प्रजातंत्र के लिए स्वतंत्रता, शांति, संपन्नता और व्यक्तिगत सम्मान बहुत जरूरी है.

बाइडेन ने चीन को लेकर भी बहुत महत्वपूर्ण बातें की हैं. उन्होंने कहा कि चीन समय के साथ अपना दबदबा बढ़ाता जा रहा है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा प्रतिस्पर्धी देश है, जो आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति की बदौलत स्थायी और खुली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को लगातार चुनौती देने की क्षमता रखता है.

चीन की आधिकारिक मैगजीन 'ग्लोबल टाइम्स' ने बाइडेन की नीति की प्रशंसा की है. मैगजीन ने कहा कि बाइडेन ने चीन के साथ काम करने को लेकर सकारात्मक रूख दिखाया है. साथ ही उन्होंने चीन के साथ रणनीतिक संघर्ष की बात को भी स्वीकार किया है. दोनों बातें अच्छी हैं.

दुनिया में जिस तरीके से अमेरिका का प्रभाव घटा, चीन ने उसका पूरा फायदा उठाया. वह उस स्पेस को हड़पने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, आज भी सैन्य और आर्थिक स्थिति के आधार पर अमेरिका को 'सुपर पावर' का दर्जा हासिल है.

बाइडेन मानते हैं कि महामारी, जलवायु संकट, साइबर हमला, आतंकवाद और अन्य हिंसक प्रवृत्तियों के खिलाफ अमेरिका को छोड़कर दूसरे देश अकेले नहीं निपट सकते हैं. यही वजह है कि बाइडेन ने पेरिस जलवायु समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका को फिर से जोड़ दिया. उन्होंने कहा कि सहयोगियों और दोस्त देशों के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय मंचों को फिर से जीवित करने की जरूरत है, ताकि सदियों से चली आ रही चुनौतियों से निपटा जा सके. यदि लोकतांत्रिक राष्ट्रों की एकजुटता और मजबूत अंतरराष्ट्रीय संहिता तैयार की जाए तो चीन को भी जवाबदेह बनाया जा सकता है. उन्होंने भारत के साथ संबंध मजबूत करने के अपने संकल्प को भी महत्व दिया है.

2006 में बाइडेन ने अमेरिका-भारत के संबंधों पर कहा था कि 2020 तक भारत और अमेरिका पूरी दुनिया में सबसे घनिष्ठ देश होंगे. बिना भारत के सहयोग के दुनिया की किसी भी चुनौतियों का समाधान नहीं हो सकता है. अपने प्रशासन में बाइडेन ने भारतीय मूल के 50 व्यक्तियों को जगह दी है. उप राष्ट्रपति भी उनमें से एक हैं. हालांकि, इन कदमों से दूर बाइडेन को असल धरातल पर बहुत कुछ करने की जरूरत है, जैसे भारत को महत्वपूर्ण तकनीक ट्रांसफर करना. बाइडेन तभी सफल होंगे, जब वह यह भरोसा दिलाएंगे कि सुपर पावर के साथ साझेदारी विश्व में शांति और समृद्धि के हित में होगी.

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