नई दिल्ली: कारगिल विजय के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा (Vikram Batra) ने यूं ही नहीं कहा था 'तिरंगे में लिपटा ही सही मैं आऊंगा जरूर'. राष्ट्रीय ध्वज हर भारतीय के दिलों में बसता है, तभी तो भारत मां के लिए प्राणों की बाजी लगाने वाले सेना के जवान की ख्वाहिश होती है कि उसको अंतिम विदाई तिरंगे (National Flag) के साथ दी जाय. ये इच्छा आखिर क्यों न हो, हर हिंदुस्तानी के लिए राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा (Indian National Flag) जितना खास है, उतना ही दिलचस्प तिरंगे का सफरनामा है. एक समय ऐसा आया जब तिरंगे को लेकर कांग्रेस नेताओं के विरोध से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उदास हो गए थे. आइए जानते हैं तिरंगे के बारे में ऐसे ही Interesting Facts को...
देश की आजादी का संघर्ष जब अंतिम समय में था, तो उसी दौरान एक समय ऐसा भी आया जब देश को आजादी दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और तत्कालीन दिग्गज कांग्रेस नेताओं के बीच विरोध हो गया था. इसकी वजह थी तिरंगे की डिजाइन. दरअसल, आजादी से पहले राष्ट्रीय ध्वज को लेकर अंतिम तौर पर मुहर लगानी थी. उस समय गांधीजी ये चाहते थे कि इसकी सफेद पट्टी में चरखे को ही रखा जाए, लेकिन बहुत से लोगों को इस पर आपत्ति थी, जिसमें कई दिग्गज कांग्रेस नेता भी शामिल थे.
30 साल पुराने प्रतीक को ही देश करे स्वीकार: महात्मा गांधी
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की सोच थी कि जो तिरंगा आजादी की लड़ाई में 30 साल से प्रतीक बना हुआ है, उसे ही देश को स्वीकार करना चाहिए. ये झंडा आजादी की लड़ाई के दौरान हर मीटिंग, प्रदर्शन और जुलूस में हमारी लड़ाई का प्रतीक बनता था. साथ ही गांधीजी ने भी इसे पहली बार खुद चुना था. जब आजादी मिलने लगी तो कांग्रेस और अन्य दलों ने तिरंगे में चरखे को बीच में रखे जाने को लेकर आपत्ति जताई.
कुछ ने तो यहां तक कहा कि गांधीजी के खिलौने को भारत के राष्ट्रीय झंडे में रखे जाने का क्या औचित्य है. झंडे के केंद्रीय स्थान पर शौर्य का प्रतीक कोई चिन्ह लगाया जाना चाहिए. वक्त की नजाकत को समझते हुए कांग्रेस के ही नेताओं ने तिरंगे के बीच में अशोक चक्र को लाने का फैसला किया, जो सम्राट अशोक और उसकी सेना के विजय का प्रतीक था. गांधीजी को जब अनुयायियों के इस फैसले का पता लगा तो वो मन ही मन बहुत उदास हो गए.
तिरंगे का सफरनामा
साल 1906 में पहली बार भारत का गैर आधिकारिक ध्वज फहराया गया था. 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने बनाया था. 7 अगस्त, 1906 को 'बंगाल विभाजन' के विरोध में पारसी बागान चौक, कोलकाता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन ने फहराया था. इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था. इसमें ऊपर हरा, बीच में पीला और नीचे लाल रंग था. साथ ही इसमें कमल के फूल और चांद-सूरज भी बने थे.
साल 1907 में दूसरी बार झंडा पराए देश पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित क्रांतिकारियों ने फहराया गया था. हालांकि, कई लोगों का कहना है कि यह घटना 1905 में हुई थी. यह भी पहले ध्वज के जैसा ही था. हालांकि, इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था और सात तारे सप्तऋषि को दर्शाते हैं. यह झंडा बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था.
जब देश की आजादी के संघर्ष ने एक निश्चित मोड़ लिया, जब डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तीसरे ध्वज को 1917 में फहराया था. इस झंडे में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर बने सात सितारे थे. बांई और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था. एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था.
चौथे ध्वज की कहानी साल 1921 में आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र से जुड़ी है. स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने वर्ष 1916 से लेकर वर्ष 1921 तक 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर रिसर्च किया. बाद में कांग्रेस के उक्त सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज का अपना बनाया हुआ डिजाइन पेश किया. उसमें मुख्य रूप से लाल और हरा रंग था. जिसमें लाल रंग हिंदू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था. बाकी समुदायों को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने इसमें सफेद पट्टी और झंडे के बीच में चरखे को शामिल करने की सलाह दी. चरखा, उस वक्त अंग्रेज़ों के खिलाफ क्रांति का प्रतीक था.
इसके बाद आया साल 1931 जब पांचवा झंडा आया. हालांकि ये वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज से थोड़ा ही अलग था. इसमें बस चक्र के स्थान चरखा था. इसी साल तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया.
जिसका सभी को इंतजार था वो दिन भी आ गया, जब 21 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान झंडे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया. हालांकि, कई लोगों को मानना है कि 22 जुलाई को इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया था. स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा. केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया.
जानें राष्ट्रीय ध्वज को लेकर इन नियम-कायदों को
- देश में 'भारतीय ध्वज संहिता' नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के कुछ नियम-कायदे निर्धारित किए गए हैं.
- शहीदों के पार्थिव शरीर से उतारे गए झंडे को भी गोपनीय तरीके से सम्मान के साथ जला दिया जाता है या नदी में जल समाधि दी जाती है.
- यदि कोई शख्स ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ के तहत गलत तरीके से तिरंगा फहराने का दोषी पाया जाता है तो उसे जेल भी हो सकती है. इसकी अवधि तीन साल तक बढ़ाई जा सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों भी हो सकते हैं.
- तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या फिर खादी का ही होना चाहिए. प्लास्टिक का झंडा बनाने की मनाही है.
- जब झंडा फट जाए या मैला हो जाए तो उसे एकांत में पूरा नष्ट किया जाए. साथ ही फटे और बदरंग तिरंगे को फहराना अपराध माना है.
तिरंगे का अपमान करने के मामले में दोषी हो चुके हैं ये सेलिब्रिटी
- टेनिस स्टार सानिया मिर्जा
इस लिस्ट में सबसे ऊपर टेनिस स्टार सानिया मिर्जा का नाम आता है. साल 2008 में सानिया के खिलाफ एक केस फाइल किया गया था जिसमें उनके ऊपर तिरंगे के अपमान का आरोप लगाया गया था. दरअसल, ऑस्ट्रेलिया में एक टेनिस की प्रतियोगिता देखने पहुंची सानिया की कुर्सी के आगे टेबल पर तिरंगा रखा हुआ था. सानिया उसी टेबल पर तिरंगे के बगल में पैर रखकर बैठी हुईं थी और यह तस्वीर काफी वायरल हुई थी.
- क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर
सचिन तेंदुलकर का नाम देखकर शायद आप चौंक जाए लेकिन यह सच है- सचिन भी तिरंगे को अपमानित करने के चक्कर में फंस चुके हैं. क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन ने 2010 में अपना बर्थडे सेलीब्रेट किया लेकिन उनसे एक गलती हो गई. दरअसल, उन्होंने जो बर्थडे केक काटा था वह तिरंगे की डिजाइन का बना हुआ था- अब ऐसे में तिरंगे को काटना भारतवासियों को नागवार गुजरा.
- अभिनेत्री और होस्ट मंदिरा बेदी
पॉपुलर टीवी होस्ट मंदिरा बेदी भी इस लिस्ट में शामिल हैं. दरअसल, मंदिरा तिरंगे वाली साड़ी पहनकर विवादों में घिर गईं. एक इवेंट के दौरान मंदिरा जब तिरंगे वाली साड़ी पहनकर आईं, तो वहां मौजूद सभी लोग शॉक्ड रह गए. उनकी साड़ी में ऊपर से लेकर नीचे तक तिरंगा बना हुआ था. ऐसे में वो भी निशाने पर आ गईं, क्योंकि किसी भी शख्स को कमर के नीचे तिरंगा पहनने की इजाजत नहीं है.
- सदी के महानायक अमिताभ बच्चन
इंडिया द्वारा वर्ल्ड कप जीतने पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और उनके बेटे अभिनेता अभिषेक इतना खुश हो गए कि उन्होंने बड़ा सा तिरंगा झंडा अपने शरीर पर लपेट लिया. बस फिर क्या, लोगों का गुस्सा फिर फूटा और उनकी कड़ी आलोचना हुई.
- मल्लिका शेरावत का तिरंगा कांड
अभिनेत्री मल्लिका शेरावत का तिरंगा कांड तो आप सभी को याद होगा. फिल्म डर्टी पालिटिक्स के पोस्टर में मल्लिका के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं और वह सिर्फ तिरंगे को लपेटे कार पर बैठी थीं. यह पोस्टर काफी विवादित रहा, यही नहीं इस मामले में उनके खिलाफ केस भी फाइल किया गया.
- किंग खान भी फंस चुके हैं विवाद में
बॉलीवुड के बादशाह कहे जाने वाले शाहरुख खान भी तिरंगे का अपमान करके आलोचना झेल चुके हैं. दरअसल, 2011 में इंडिया द्वारा वर्ल्ड कप जीतने पर शाहरुख अपनी गाड़ी लेकर रोड पर जश्न मनाने निकल पड़े. लेकिन शाहरुख हाथ में तिरंगा लिए थे, जोकि उल्टा हो गया था.