नई दिल्ली : 'मैं उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने इस पुरस्कार की कल्पना की और उन लोगों का भी जिन्होंने इसे मुझे देने का फैसला किया. मैं जानता हूं कि इस धरती मुझसे अधिक योग्य लोग हैं जो इस पुरस्कार के हकदार हैं. फिर भी मुझे इस पुरस्कार के लिए योग्य माना गया है. मैं यह भी जानता ही हूं कि मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी थोड़ा बहुत हासिल किया है उसका एक हिस्सा भी कई अन्य महिलाओं और पुरुषों के सहयोग के बिना हासिल नहीं किया जा सकता. उन सभी को धन्यवाद... जिन्होंने मेरी मदद की है... यहां मैं आपके साथ अपनी 'कृषि की विचारधारा' के बारे में व्यक्तिगत जानकारी साझा करना चाहता हूं.'
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Deeply saddened by the demise of Dr. MS Swaminathan Ji. At a very critical period in our nation’s history, his groundbreaking work in agriculture transformed the lives of millions and ensured food security for our nation. pic.twitter.com/BjLxHtAjC4
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— Narendra Modi (@narendramodi) September 28, 2023
यह मार्टिन लूथर किंग ही थे जिन्होंने एक बार कहा था: "पूरी दुनिया, इसमें हर-एक जीवन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है... दुनिया पारस्परिक संबंधों का यह एक ऐसा नेटवर्क जिसमें होना हर-एक व्यक्ति के लिए अपरिहार्य है... सुबह का नाश्ता खत्म करते ही आप आधी से अधिक दुनिया पर निर्भर हो चुके होते हैं...
इसी तरह से हमारे ब्रह्मांड की संरचना हुई है, यही इसका परस्पर संबंधित गुण है. जब तक हम सभी वास्तविकताओं की परस्पर संबंधित संरचना के इस बुनियादी तथ्य को नहीं पहचानते, तब तक हमें धरती पर शांति नहीं मिलेगी."
खेती से बल्कि कृषि -संस्कृति जितनी अधिक वैश्विक परस्पर निर्भरता मानवीय आवश्यकता के किसी भी अन्य क्षेत्र में नहीं है. फिर भी शहरी जनता शायद ही कभी इस बात का सम्मान करती है कि हम इस दुनिया में हरे पौधों और उनकी खेती करने वाले किसानों के मेहमान है.
अनुभव बताता है कि जो देश किसानों और खेती को हल्के में लेते हैं. उन्हें देर-सबेर दुख ही मिलता है. फिर भी राष्ट्रीय विकास योजनाओं में कृषि क्षेत्र की प्राथमिकता स्थापित करने वाले कई आत्ममुग्ध योजनाकारों और राजनीतिक नेताओं में आत्मसंतुष्टि बढ़ती जा रही है. उन्हें जो सुरक्षा महसूस होती है वह झूठी है. हमारे पास खाद्य उत्पादन के मोर्चे पर आराम करने का समय नहीं है, जैसा कि मेरे अच्छे दोस्त डॉ. नॉर्मन बोरलॉग अक्सर हमें याद दिलाते हैं.
सच है, खाद्यान्न, दूध पाउडर और मक्खन का वैश्विक भंडार प्रतिदिन बढ़ रहा है. लेकिन इसके साथ ही भूखे पेट सोने वाले बच्चों, महिलाओं और पुरुषों की संख्या भी बढ़ रही है. हमारे सभी बौद्धिक, तकनीकी, वित्तीय और आध्यात्मिक संसाधन इस सदियों पुरानी विडंबना का समाधान खोजने में क्यों विफल रहे हैं? क्यों?
संभवतः सुकरात ने हमें इसका उत्तर दिया था. सुकरात ने कहा कि कोई भी व्यक्ति राजनेता बनने के योग्य नहीं है यदि वह गेहूं की समस्या से अनभिज्ञ है. यदि राजनेता जो राष्ट्रीय नीतियों और प्राथमिकताओं को निर्धारित करते हैं, वे सभी खाद्य उत्पादन और समान वितरण की जरूरत से परिचित हो जाएंगे, तो भूख को जल्द ही अतीत की समस्या बनाया जा सकता है अन्यथा यह संभव नहीं होगा...
भूख और उसके वास्तविक कारण गरीबी का उन्मूलन मानवीय एजेंडे में सबसे ऊपर होना चाहिए. दुर्भाग्य से, इथियोपियाई अकाल जैसे सबसे बड़े संकट के समय को छोड़कर, अच्छी तरह से पोषित लोग अन्य लोगों की भूख के बारे में बहुत चिंतित नहीं दिखते हैं. अधिकांश लोग डरते हैं कि यदि दूसरों को अधिक मिलेगा, तो मुझे कम मिलेगा. हमें एक वैश्विक परिवार के विचार को अपनाने की जरूरत है. हमें यह समझना होगा कि मानव प्रजाति का अस्तित्व सभी लोगों के साथ और जिस धरती पर हम रहते हैं, उसके साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध पर निर्भर करता है.
हम दृष्टिकोण और व्यवहार में यह परिवर्तन कैसे ला सकते हैं? यदि हम वास्तव में भूख को खत्म करने के बारे में गंभीर हैं, तो हमें आर्थिक हितों, सामाजिक-राजनीतिक हितों और कभी-कभी सरासर अज्ञानता या उदासीनता पर काबू पाना होगा. ये वो तत्व हैं जो मिलकर एक राजनीतिक इच्छाशक्ति बनाते हैं जो गारंटी देती है कि गरीब गरीब ही रहेंगे.
इस तरह के रवैये की जड़ें कई और विविध हैं, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि मुख्य जड़ डर है, सत्ता और संसाधनों को साझा करने का डर. इसलिए हमें यह दिखाने की जरूरत है कि कमजोरों को मजबूत बनने में मदद करने से पूरा समुदाय एकजुट होता है. अहम सवाल है कि हम साथी रहवासियों में आर्थिक और सामाजिक विकलांगता वाले अन्य लोगों के लिए चिंता कैसे उत्पन्न कर सकते हैं? कैसे? क्या हम इस चिंता को सार्थक कार्रवाई में बदल सकते हैं..
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हर समय सभी लोगों के लिए पोषण सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए, मैं आपको तीन ऐसे क्षेत्रों के बारे में बताता हूं जहां हर जगह के लोग एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं और उन्हें काम करना चाहिए.
(यह एम. एस. स्वामीनाथन के भाषण का अनुवादित और संपादित अंश है. पूरा भाषण यहां पढ़ा जा सकता है....
https://www.worldfoodprize.org/documents/filelibrary/images/laureates/1987_swaminathan/SKM_C454e19040911340_83965D8A27BA8.pdf