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ज्ञानवापी पर सीएम योगी के बयान के बाद BHU के इतिहासकार बोले- दूसरी सदी से मिलता है मंदिर का वर्णन - वाराणसी ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी केस

ज्ञानवापी (Varanasi Gyanvapi Shringar Gauri Case) पर चल रहा विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. हाल ही में सीएम योगी के बयान के बाद मामले ने और तूल पकड़ लिया है. संत समाज के लोग सीएम योगी के बयान का समर्थन कर चुके हैं. BHU के इतिहासकार भी सीएम के पक्ष में हैं.

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Published : Aug 1, 2023, 9:50 PM IST

बीएयचू के इतिहासकारों ने भी ज्ञानवापी पर अपने विचार रखे.

वाराणसी : काशी के ज्ञानवापी विवाद को लेकर हर दिन नई तस्वीर सामने आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मामले पर बयान देते हुए इसे ऐतिहासिक गलती बताया. अब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहासकारों ने भी बड़ा दावा किया. उन्होंने कहा है कि इतिहास इस बात का गवाह है कि ज्ञानवापी मामले पर ऐतिहासिक गलती ही नहीं बल्कि गुनाह किया गया है. यहां हिंदू मंदिर के हर साक्ष्य मिलते हैं.

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर मंदिर-मस्जिद का विवाद जोर पकड़ रहा है. इस बार ज्ञानवापी को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्ष कोर्ट में गए हैं. मामले में सुनवाई जारी है. कभी सर्वे का आदेश आता है तो कभी आदेश पर स्टे लगा दिया जाता है. इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान ने इस मामले को और भी हवा दे दी है. उनके इस बयान के बाद वाराणसी के तमाम इतिहासकार उनके पक्ष में खड़े हो गए हैं. उन्होंने ज्ञानवापी पर मस्जिद बनाने को ऐतिहासिक पाप करार दिया है.

सीएम योगी ने दिया था ये बयान : सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 'अगर हम उसको मस्जिद कहेंगे तो फिर विवाद होगा. मुझे लगता है कि भगवान ने जिसको दृष्टि दी है, वो देखे न. त्रिशूल मस्जिद के अन्दर क्या कर रहा है. हमने तो नहीं रखे हैं न. ज्योतिर्लिंग है, देव प्रतिमाएं हैं. पूरी दीवारें चिल्ला-चिल्लाकर क्या कह रही हैं?, मुझे लगता है कि ये प्रस्ताव मुस्लिम समाज की तरफ से आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है और उस गलती के लिए हम चाहते हैं समाधान हो.'

ज्ञानवापी का इतिहास कई सच्चाई समेटे हुए है.
ज्ञानवापी का इतिहास कई सच्चाई समेटे हुए है.

शिव के यहां आने के मिलते हैं तथ्य : BHU के इतिहासकार प्रो. पीबी राणा ने बताया कि, ज्ञानवापी सर्वे के दौरान जो अंदर से वस्तुएं मिलीं, उनका जिक्र इतिहास में होता है, लेकिन यदि हम पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताओं को देखें तो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में शिव के यहां आने के तथ्य मिलते हैं. जब शिव काशी में आए तो उनका रूप ईशानेश्वर के रूप में था. उसी समय ज्ञानवापी कूप की स्थापना हुई. उसके बाद ह्वेन सांग ने भी अपनी यात्रा के दौरान वाराणसी के मुक्तेश्वर क्षेत्र का वर्णन किया है. उसके बाद अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में अलग-अलग इतिहासकारों में ज्ञानवापी का वर्णन किया है.

किताबों में मंदिर को गिराने का उल्लेख है.
किताबों में मंदिर को गिराने का उल्लेख है.



1669 में ही मस्जिद बना दिया गया : प्रो. पीबी राणा ने बताया कि वैज्ञानिक दृष्टि से जो हमारा सर्वे है, उसमें यह पता चलता है कि मंदिर उसी जगह था, जहां आज मस्जिद बताई जा रही है. 1420 के लगभग में वह पोर्शन के रूप में बन गया था. 1450 के आसपास उसे गिरा दिया. पहले रजिया का मंदिर बना, 1426 और फिर 1440-45 में इस मंदिर की मरम्मत की गई. 1556 में अकबर के कार्यकाल में पूरा मंदिर बना था, इसके बाद 1669 में इसे गिरवा दिया गया था. 1669 में ही मस्जिद बना दिया गया. इससे पहले भी कई प्रयास हुए थे, लेकिन यहां पर हुए आंदोलन के चलते नहीं गिराया जा सका था.

ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.
ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.

1832 में तैयार हुआ था परिसर का मैप : प्रो. पीबी राणा ने बताया कि साल 1936 में वह जगह बंद की गई और 1952 में एक्ट पास हुआ था. जहां तक श्रृंगार गौरी की बात होती है तो वहां पर कोई मूर्ति नहीं बल्कि चिह्न था. वह अभी भी पीछे की दीवार पर पूरा का पूरा दिखाई देता है. इस परिसर का सर्वे 1822 में हुआ और 1832 में मैप तैयार हुआ. वह पहला मैप था जो पूरी डिजाइन की बात करता है. उसके आधार पर 1937 में मुकदमा दायर हुआ उसमें सारा डिजाइन छपा हुआ था. इससे सिद्ध हो रहा है कि पूरा का पूरा मंदिर था.

ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.
ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.

कमीशन की सर्वे रिपोर्ट में मिले हिन्दुओं के प्रतीक : वाराणसी कमीशन की सर्वे रिपोर्ट में जो चीजें मिली हैं. इतिहासकार कहते हैं कि वह इसे मंदिर साबित करते हैं. सर्वे में मिली चीजों में मस्जिद के भीतर हाथी का सूंड, त्रिशूल, पान, घंटियां शामिल हैं. इसके साथ ही मुख्य गुंबद के नीचे स्वास्तिक का चिह्न मिला है. मस्जिद के पहले गेट के पास तीन डमरू के चिह्न मिले हैं. उत्तर-पश्चिम दिशा में 15-15 फीट का एक तहखाना दिखा है. उसके ऊपर मलबा पड़ा हुआ था. उन मलबों के पत्थरों पर मंदिर जैसी आकृतियां दिखी हैं. इसके साथ ही बाहर विराजमान नंदी और अंदर मिले कुंड के बीच की दूरी 83 फीट 3 इंच है. इसी कुंड में एक शिवलिंग की आकृति का पत्थर भी है, जिसे स्थापित शिवलिंग बताया जा रहा है.

इतिहासकार ज्ञानवापी को मस्जिद ही मानते हैं.
इतिहासकार ज्ञानवापी को मस्जिद ही मानते हैं.

मआसिर-ए-आलमगीरी में मंदिर तोड़ने की घटना का वर्णन : वाराणसी BHU के दूसरे इतिहासकार प्रो. राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि इतिहास कहता है कि वहां पर मस्जिद थी ही नहीं. 1710 में साकी मुस्तैद खां ने मआसिर-ए-आलमगीरी नामक किताब लिखी थी. वह औरंगजेब का दरबारी इतिहासकार था. उसी ने लिखा कि आदि विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करा दिया गया था. इससे बड़ा प्रमाण क्या चाहिए. औरंगजेब ने एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें कहा था कि तुरंत मंदिर को तोड़ दिया जाए. उसके दारोगा ने चिट्ठी लिखी कि हमने मंदिर तोड़ दी है.

इतिहास में दर्ज हैं कई प्रमाण.
इतिहास में दर्ज हैं कई प्रमाण.

मंदिर नहीं टूटा तो बना दिया मस्जिद का गुंबद : प्रो. राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि चिट्ठी लिखने के बाद दारोगा ने आनन-फानन में कम से कम 100 हाथी मंगाए. मंदिर तोड़ने की कोशिश की, लेकिन मंदिर को तोड़ नहीं पाए. उसके बाद मंदिर के ऊपर मस्जिद का गुंबद बना दिया. अब सभी जगहों पर कहीं देवी मिल रही हैं, कहीं देवता, कहीं गणेश जी, कहीं गौरी जी, कहीं पार्वती जी मिल रही हैं. शिव जी का पूरा परिवार कहीं न कहीं से निकलता चला जा रहा है. इतिहासकार ने कहा कि वह मंदिर ही था और मंदिर ही रहेगा. वह तो नाम से ही मंदिर है. संस्कृत में किस मस्जिद का नाम ज्ञानवापी रखा जाएगा. ज्ञानवापी का मतलब है ज्ञान का कुंआ.

यह भी पढ़ें : 2 अगस्त को वापस लौटेगी ASI की टीम, हाईकोर्ट के आदेश के बाद अधिकारी अपने जिलों में हुए रवाना

'मंदिर को तोड़ना ऐतिहासिक पाप है' : प्रो. राजीव श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान पर कहा कि यह ऐतिहासिक गलती नहीं ऐतिहासिक महाभूल है. ऐतिहासिक पाप है यह. इसे तो जानबूझकर किया गया था. इनसे हर्जाना भी वसूला जाना चाहिए, इतने दिनों तक जबरदस्ती कब्जा करके रखा गया है. जब पैगंबर मोहम्मद कह रहे हैं कि हम दूसरों के धर्मस्थल पर अपनी मस्जिद नहीं बना सकते तो ये लोग कैसे मुसलमान हैं जो जबरदस्ती कब्जा करके रखे हैं. यह अंजुमन इस्लामिया का मामला है. हजारों-लाखों मुसलमान सीएम योगी के बयान के पक्ष में हैं.

यह भी पढ़ें : ज्ञानवापी के एएसआई सर्वे को लेकर बोले शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती, सांच को आंच नहीं

बीएयचू के इतिहासकारों ने भी ज्ञानवापी पर अपने विचार रखे.

वाराणसी : काशी के ज्ञानवापी विवाद को लेकर हर दिन नई तस्वीर सामने आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मामले पर बयान देते हुए इसे ऐतिहासिक गलती बताया. अब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहासकारों ने भी बड़ा दावा किया. उन्होंने कहा है कि इतिहास इस बात का गवाह है कि ज्ञानवापी मामले पर ऐतिहासिक गलती ही नहीं बल्कि गुनाह किया गया है. यहां हिंदू मंदिर के हर साक्ष्य मिलते हैं.

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर मंदिर-मस्जिद का विवाद जोर पकड़ रहा है. इस बार ज्ञानवापी को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्ष कोर्ट में गए हैं. मामले में सुनवाई जारी है. कभी सर्वे का आदेश आता है तो कभी आदेश पर स्टे लगा दिया जाता है. इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान ने इस मामले को और भी हवा दे दी है. उनके इस बयान के बाद वाराणसी के तमाम इतिहासकार उनके पक्ष में खड़े हो गए हैं. उन्होंने ज्ञानवापी पर मस्जिद बनाने को ऐतिहासिक पाप करार दिया है.

सीएम योगी ने दिया था ये बयान : सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 'अगर हम उसको मस्जिद कहेंगे तो फिर विवाद होगा. मुझे लगता है कि भगवान ने जिसको दृष्टि दी है, वो देखे न. त्रिशूल मस्जिद के अन्दर क्या कर रहा है. हमने तो नहीं रखे हैं न. ज्योतिर्लिंग है, देव प्रतिमाएं हैं. पूरी दीवारें चिल्ला-चिल्लाकर क्या कह रही हैं?, मुझे लगता है कि ये प्रस्ताव मुस्लिम समाज की तरफ से आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है और उस गलती के लिए हम चाहते हैं समाधान हो.'

ज्ञानवापी का इतिहास कई सच्चाई समेटे हुए है.
ज्ञानवापी का इतिहास कई सच्चाई समेटे हुए है.

शिव के यहां आने के मिलते हैं तथ्य : BHU के इतिहासकार प्रो. पीबी राणा ने बताया कि, ज्ञानवापी सर्वे के दौरान जो अंदर से वस्तुएं मिलीं, उनका जिक्र इतिहास में होता है, लेकिन यदि हम पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताओं को देखें तो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में शिव के यहां आने के तथ्य मिलते हैं. जब शिव काशी में आए तो उनका रूप ईशानेश्वर के रूप में था. उसी समय ज्ञानवापी कूप की स्थापना हुई. उसके बाद ह्वेन सांग ने भी अपनी यात्रा के दौरान वाराणसी के मुक्तेश्वर क्षेत्र का वर्णन किया है. उसके बाद अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में अलग-अलग इतिहासकारों में ज्ञानवापी का वर्णन किया है.

किताबों में मंदिर को गिराने का उल्लेख है.
किताबों में मंदिर को गिराने का उल्लेख है.



1669 में ही मस्जिद बना दिया गया : प्रो. पीबी राणा ने बताया कि वैज्ञानिक दृष्टि से जो हमारा सर्वे है, उसमें यह पता चलता है कि मंदिर उसी जगह था, जहां आज मस्जिद बताई जा रही है. 1420 के लगभग में वह पोर्शन के रूप में बन गया था. 1450 के आसपास उसे गिरा दिया. पहले रजिया का मंदिर बना, 1426 और फिर 1440-45 में इस मंदिर की मरम्मत की गई. 1556 में अकबर के कार्यकाल में पूरा मंदिर बना था, इसके बाद 1669 में इसे गिरवा दिया गया था. 1669 में ही मस्जिद बना दिया गया. इससे पहले भी कई प्रयास हुए थे, लेकिन यहां पर हुए आंदोलन के चलते नहीं गिराया जा सका था.

ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.
ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.

1832 में तैयार हुआ था परिसर का मैप : प्रो. पीबी राणा ने बताया कि साल 1936 में वह जगह बंद की गई और 1952 में एक्ट पास हुआ था. जहां तक श्रृंगार गौरी की बात होती है तो वहां पर कोई मूर्ति नहीं बल्कि चिह्न था. वह अभी भी पीछे की दीवार पर पूरा का पूरा दिखाई देता है. इस परिसर का सर्वे 1822 में हुआ और 1832 में मैप तैयार हुआ. वह पहला मैप था जो पूरी डिजाइन की बात करता है. उसके आधार पर 1937 में मुकदमा दायर हुआ उसमें सारा डिजाइन छपा हुआ था. इससे सिद्ध हो रहा है कि पूरा का पूरा मंदिर था.

ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.
ज्ञानवापी में कई चिन्ह बतौर प्रमाण मौजूद हैं.

कमीशन की सर्वे रिपोर्ट में मिले हिन्दुओं के प्रतीक : वाराणसी कमीशन की सर्वे रिपोर्ट में जो चीजें मिली हैं. इतिहासकार कहते हैं कि वह इसे मंदिर साबित करते हैं. सर्वे में मिली चीजों में मस्जिद के भीतर हाथी का सूंड, त्रिशूल, पान, घंटियां शामिल हैं. इसके साथ ही मुख्य गुंबद के नीचे स्वास्तिक का चिह्न मिला है. मस्जिद के पहले गेट के पास तीन डमरू के चिह्न मिले हैं. उत्तर-पश्चिम दिशा में 15-15 फीट का एक तहखाना दिखा है. उसके ऊपर मलबा पड़ा हुआ था. उन मलबों के पत्थरों पर मंदिर जैसी आकृतियां दिखी हैं. इसके साथ ही बाहर विराजमान नंदी और अंदर मिले कुंड के बीच की दूरी 83 फीट 3 इंच है. इसी कुंड में एक शिवलिंग की आकृति का पत्थर भी है, जिसे स्थापित शिवलिंग बताया जा रहा है.

इतिहासकार ज्ञानवापी को मस्जिद ही मानते हैं.
इतिहासकार ज्ञानवापी को मस्जिद ही मानते हैं.

मआसिर-ए-आलमगीरी में मंदिर तोड़ने की घटना का वर्णन : वाराणसी BHU के दूसरे इतिहासकार प्रो. राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि इतिहास कहता है कि वहां पर मस्जिद थी ही नहीं. 1710 में साकी मुस्तैद खां ने मआसिर-ए-आलमगीरी नामक किताब लिखी थी. वह औरंगजेब का दरबारी इतिहासकार था. उसी ने लिखा कि आदि विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करा दिया गया था. इससे बड़ा प्रमाण क्या चाहिए. औरंगजेब ने एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें कहा था कि तुरंत मंदिर को तोड़ दिया जाए. उसके दारोगा ने चिट्ठी लिखी कि हमने मंदिर तोड़ दी है.

इतिहास में दर्ज हैं कई प्रमाण.
इतिहास में दर्ज हैं कई प्रमाण.

मंदिर नहीं टूटा तो बना दिया मस्जिद का गुंबद : प्रो. राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि चिट्ठी लिखने के बाद दारोगा ने आनन-फानन में कम से कम 100 हाथी मंगाए. मंदिर तोड़ने की कोशिश की, लेकिन मंदिर को तोड़ नहीं पाए. उसके बाद मंदिर के ऊपर मस्जिद का गुंबद बना दिया. अब सभी जगहों पर कहीं देवी मिल रही हैं, कहीं देवता, कहीं गणेश जी, कहीं गौरी जी, कहीं पार्वती जी मिल रही हैं. शिव जी का पूरा परिवार कहीं न कहीं से निकलता चला जा रहा है. इतिहासकार ने कहा कि वह मंदिर ही था और मंदिर ही रहेगा. वह तो नाम से ही मंदिर है. संस्कृत में किस मस्जिद का नाम ज्ञानवापी रखा जाएगा. ज्ञानवापी का मतलब है ज्ञान का कुंआ.

यह भी पढ़ें : 2 अगस्त को वापस लौटेगी ASI की टीम, हाईकोर्ट के आदेश के बाद अधिकारी अपने जिलों में हुए रवाना

'मंदिर को तोड़ना ऐतिहासिक पाप है' : प्रो. राजीव श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान पर कहा कि यह ऐतिहासिक गलती नहीं ऐतिहासिक महाभूल है. ऐतिहासिक पाप है यह. इसे तो जानबूझकर किया गया था. इनसे हर्जाना भी वसूला जाना चाहिए, इतने दिनों तक जबरदस्ती कब्जा करके रखा गया है. जब पैगंबर मोहम्मद कह रहे हैं कि हम दूसरों के धर्मस्थल पर अपनी मस्जिद नहीं बना सकते तो ये लोग कैसे मुसलमान हैं जो जबरदस्ती कब्जा करके रखे हैं. यह अंजुमन इस्लामिया का मामला है. हजारों-लाखों मुसलमान सीएम योगी के बयान के पक्ष में हैं.

यह भी पढ़ें : ज्ञानवापी के एएसआई सर्वे को लेकर बोले शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती, सांच को आंच नहीं

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