नई दिल्ली : देश की एक बडी़ आबादी जो 1 मई से लागू उदार टीकाकरण नीति के तहत कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए संघर्ष कर रही थी, उन्हें एक बड़ी राहत देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को वापस के केद्रीकृत टीकाकरण मॉडल की घोषणा की है. इसके तहत 18 वर्ष की आयु से उपर के सभी भारतीय नागरिकों को सरकारी केंद्रों में मुफ्त कोरोना वैक्सीन दी जाएगी.
यह फैसला पिछले हफ्ते देश की शीर्ष अदालत द्वारा तीखी आलोचना के बाद आया है. सुप्रीम कोर्ट ने 18-44 आयु वर्ग के नागरिकों के लिए केंद्र की टीकाकरण नीति को मनमाना और तर्कहीन करार दिया था. कोर्ट ने राष्ट्रीय टीकाकरण पोर्टल कोविन पर अनिवार्य पंजीकरण के बारे में चिंता जताई और केंद्र द्वारा आवंटित 35,000 करोड़ रुपये बजट का भी विवरण मांगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा, 'आज यह निर्णय लिया गया है कि 25 प्रतिशत टीकाकरण संबंधी कार्य, जो राज्यों के पास है, अब भारत सरकार की जिम्मेदारी होगी. यह प्रणाली अगले दो सप्ताह में लागू हो जाएगी. अगले दो सप्ताह में केंद्र और राज्य मिलकर नए दिशानिर्देशों के अनुसार आवश्यक तैयारी करेंगे.'
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, 'यह सुखद संयोग है कि दो सप्ताह के बाद 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा. 21 जून (सोमवार) से भारत सरकार हर राज्य में 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को मुफ्त टीके उपलब्ध कराएगी.'
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प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि केंद्र देश में उत्पादित कुल टीकों का 75% खरीदेगा और राज्यों को मुफ्त में देगा.
उन्होंने उस प्रणाली के बारे में बताया जिसके तहत केंद्र सरकारी सुविधाओं पर टीकाकरण का खर्च वहन करेगा और कहा, 'इसका मतलब है कि किसी भी राज्य को टीकों पर कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा.'
प्रधानमंत्री ने कहा कि अब भारत सरकार सभी देशवासियों को मुफ्त में टीका उपलब्ध कराएगी, चाहे वह गरीब हो, निम्न मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग, केंद्र सरकार के इस अभियान में सभी को मुफ्त टीका मिलेगा.
हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि जो लोग मुफ्त टीके नहीं चाहते हैं और एक निजी अस्पताल के माध्यम से चाहते हैं, उन्हें एक निजी अस्पताल में टीका लगवाने की अनुमति दी जाएगी और इसके लिए कुल वैक्सीन उत्पादन का एक चौथाई निजी अस्पतालों को दिया जाएगा.
उन्होंने कहा, 'निजी अस्पताल सेवा शुल्क के रूप में 150 रुपये से अधिक नहीं ले सकते हैं, इस प्रणाली की निगरानी राज्यों द्वारा की जाती रहेगी.'
टीका कार्यक्रम में राज्यों ने की बड़ी भूमिका की मांग की: पीएम
प्रधानमंत्री मोदी ने टीकाकरण कार्यक्रम के विकेंद्रीकरण के लिए कुछ राज्यों की मांगों को जिम्मेदार ठहराया, क्योंकि उन्होंने टीकाकरण मानदंड, जैसे कि प्राथमिकता समूह का निर्धारण आदि तय करने में अधिक दखल की मांग की.
प्रधानमंत्री ने कहा कि वहीं कुछ लोगों ने कहा कि किस आयु तक के लोगों को टीका लगेगा यह निर्धारण केंद्र ही क्यों करे? कुछ ने बुजुर्ग लोगों के लिए प्राथमिकता वाले टीकाकरण पर सवाल उठाया. तमाम तरह के दबाव बनाए गए, देश के मीडिया के एक तबके ने भी इसे एक अभियान की तरह चलाया.
उन्होंने कहा कि बहुत विचार-विमर्श के बाद यह तय किया गया था कि अगर राज्य सरकारें कुछ प्रयास करना चाहती हैं तो भारत सरकार को आपत्ति क्यों करें.
प्रधानमंत्री ने कहा, 'राज्यों की इस मांग को देखते हुए, एक प्रयोग के रूप में, 16 जनवरी को शुरू की गई टीकाकरण प्रणाली में बदलाव किया गया था और 1 मई से राज्यों ने अपने तरीके से इसे पूरा करने के प्रयास किए.'
कुछ राज्यों के सामने आने वाली समस्याओं के बारे में बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्यों ने इस तरह के विशाल कार्य की समस्याओं को महसूस किया है.
प्रधानमंत्री ने कहा, 'मई के पहले दो सप्ताह बीतने के साथ ही कुछ राज्यों ने खुले तौर पर कहना शुरू कर दिया कि पहले की व्यवस्था बेहतर थी. कुछ अन्य राज्यों ने भी इस विचार का समर्थन किया. इससे उन राज्यों की राय में भी बदलाव आया जो इस बात की वकालत कर रहे थे कि टीकाकरण का काम राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए.'
प्रधानमंत्री नई उदार टीकाकरण नीति को पलटने के पीछे का कारण बताते हुए कहा, 'यह अच्छा है कि राज्य समय के भीतर समीक्षा की मांग के साथ आगे आए हैं. राज्यों की इस मांग पर हमने यह भी सोचा कि पुरानी व्यवस्था, जो 16 जनवरी से अप्रैल के अंत तक लागू थी, को फिर से लागू किया जाना चाहिए ताकि देशवासियों को समस्या का सामना न करना पड़े और उनका टीकाकरण ठीक से हो सके.'
सुप्रीम कोर्ट ने टीकाकरण नीति पर सवाल उठाया
केंद्र सरकार द्वारा टीकाकरण नीति को पलटने का फैसला देश की शीर्ष अदालत द्वारा तीखी आलोचना के कुछ दिनों के भीतर आया है.
2 जून को, सुप्रीम कोर्ट ने 18-44 साल के समूह के लिए केंद्र की टीकाकरण नीति को 'मनमाना और तर्कहीन' करार दिया.
राष्ट्रीय टीकाकरण पोर्टल कोविन (www.cowin.gov.in) पर अनिवार्य पंजीकरण का मुद्दा भी अदालत के समक्ष उठाया गया क्योंकि यह डिजिटल रूप से निरक्षर लोगों को वैक्सीन प्राप्त करने से वंचित करता है.
कोर्ट का यह अवलोकन इस साल अप्रैल-मई में एक क्रूर दूसरी कोविड लहर के मद्देनजर आया, जिसने इस साल अप्रैल-मई में लगभग 1,69,000 लोगों की जान ले ली, जो पिछले साल मार्च में महामारी की शुरुआत के बाद से देश में कुल कोविड की मौत के आधे से अधिक है.
विपक्षी दलों ने कोविड की दूसरी लहर के पीछे मुख्य कारण टीकाकरण की धीमी गति को जिम्मेदार ठहराया, सरकार पर दो वैक्सीन उत्पादकों को समय पर आदेश में देरी करने का आरोप लगाया, जिसके कारण कई स्थानों पर टीकों की कमी हो गई.
टीकाकरण बजट का अल्प उपयोग
इस महीने की शुरुआत में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने 35,000 करोड़ रुपये के टीकाकरण बजट के उपयोग के बारे में विवरण भी जानना चाहा, जिसे संसद ने मंजूरी दी थी.
ईटीवी भारत ने पिछले महीने टीकाकरण बजट के धीमे उपयोग के बारे में बताया, जो कि चालू वित्त वर्ष के लिए केंद्र सरकार के कुल बजट खर्च का सिर्फ 1% है.
वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा ट्वीट किए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 6 मई तक, सरकार ने दो वित्तीय वर्षों, वित्त वर्ष 2020-21 और वित्त वर्ष 2021-22 में टीकों की खरीद पर केवल 4,744 करोड़ रुपये खर्च किए थे.