नई दिल्ली: चुनाव के दौरान मतदाताओं को मुफ्त में उपहार देने के वादे संबंधी मामले में आम आदमी पार्टी (आप) ने भी सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है . इससे पहले बीजेपी के एक सदस्य ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को मुफ्त में उपहार देने के वादे पर प्रतिबंध लगाने को लेकर अदालत में याचिका दायर की है. आम आदमी पार्टी ने तर्क दिया है कि याचिका 'लोगों के कल्याण के लिए अपील के बजाय जाति और सांप्रदायिक अपीलों पर निर्भर एक अलग, पांडित्यपूर्ण प्रकार की राजनीति के हितों को आगे बढ़ाने' के लिए है.
आप की याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने भाजपा के साथ अपने संबंधों को छुपाया है और अक्सर तुच्छ जनहित याचिका दायर करने को लेकर उनकी खिंचाई होती है. उपाध्याय की याचिका के खिलाफ अपना पक्ष रखते हुए, आप ने कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 के तहत एक मौलिक अधिकार है और इसमें रैन बसेरा, मुफ्त बिजली मुफ्त शिक्षा और मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करके गरीबों के उत्थान के लिए चुनावी भाषण और वादे शामिल हैं.
आप ने विभिन्न समाजवादी और कल्याणकारी कार्यक्रमों की घोषणा करने के लिए राज्य के आधार के रूप में संविधान के निर्देशक सिद्धांतों का भी हवाला दिया है. इसने तर्क दिया कि लोगों को दिए जाने वाले मुफ्त उपहारों को विनियमित करने के बजाय, नौकरशाहों, राजनीतिक वर्गों और औद्योगिक घरानों को दिए जाने वाले लाभों पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए.
याचिका में कहा गया, 'जब भी यह कॉर्पोरेट क्षेत्र की सहायता करने और अमीरों को और समृद्ध करने की बात आती है तो केंद्र ने सरकारी खजाने से महत्वपूर्ण मात्रा में खर्च किया है या छोड़ दिया है. इससे राजकोषीय नुकसान हुआ है. उदाहरण के लिए, पिछले कुछ वर्षों में, बड़े व्यवसायों के पक्ष में करों और शुल्कों से संबंधित विभिन्न नीतियों में संशोधन किया गया है.'
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इस मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत में सीजेआई एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ कर रही है. केंद्र सरकार ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका का समर्थन किया था और अदालत ने भी कहा था कि नियमन की जरूरत है. अदालत ने मामले को देखने और कुछ उपाय सुझाने के लिए सरकार, उसके संगठनों और विभिन्न हितधारकों के साथ एक निकाय के गठन का आदेश दिया था.