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गुजरात हाई कोर्ट के फैसले से बच्ची को मिले जैविक माता-पिता

एक सरोगेट बच्ची का मामला गुजरात उच्च न्यायालय के इस फैसले के साथ समाप्त हो गया. इस फैसले से जैविक पेरेंट्स का संघर्ष भी खत्म हो गया.

A surrogate baby girl case Biological father struggles ended with this Highcourts decision
गुजरात हाई कोर्ट के फैसले से सरोगेट बच्ची को मिले जैविक माता- पिता
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Published : Jun 28, 2022, 10:13 AM IST

Updated : Jun 28, 2022, 12:43 PM IST

अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को दो दिन की बच्ची की कस्टडी पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. अदालत के एक फैसले के अनुसार बच्ची के जैविक पिता को अब उसकी कस्टडी मिलेगी. गुजरात उच्च न्यायालय ने पुलिस को सरोगेट बच्ची को उसके जैविक पिता को प्रदान करने के आदेश दिये.

क्या है पूरा मामला: अभी हाल ही में गुजरात हाई कोर्ट के सामने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में पिता ने नवजात बच्ची की कस्टडी का अनुरोध किया था. हालांकि, तथ्य यह है कि इस बच्चे को सरोगेट मदर के माध्यम से जन्म दिया गया. सरोगेट मां को पुलिस की निगरानी में रखा जा रहा था. पुलिस द्वारा बच्चे को जैविक पिता को सौंपने से इंकार करने पर अदालत का रूख किया गया था. सरोगेट मां बच्चे को देने के लिए तैयार थी लेकिन पुलिस हिरासत में होने के कारण वो ऐसा नहीं कर सकी. याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क देते हुए पूरा मामला पेश किया कि चूंकि पेरेंट्स के पास सितंबर 2021 में एक सरोगेट बच्चा था, लेकिन नए सरोगेसी नियम दिसंबर 2021 में पारित किए गए थे. ऐसे में इस मामले में नए नियम लागू नहीं होते हैं.

सरोगेसी अधिनियम का हवाला: इसके अतिरिक्त सरोगेट मां और पेरेंट्स के बीच समझौते के अनुसार बच्चे के जन्म के तुरंत बाद याचिकाकर्ता को शिशु की कस्टडी दी जानी थी. सरोगेसी अधिनियम में एक बच्चे को अपने मूल माता-पिता के साथ रहने की अवधि के बारे में कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए इस मामले में बच्चे को उसके जैविक माता-पिता को दिया जाना चाहिए.

तत्काल हस्तांतरण का आदेश: गुजरात उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाया कि बच्चे के जैविक माता-पिता को बच्चे की तत्काल हिरासत मिलनी चाहिए. सरोगेट मां और जैविक पिता के बीच हुए समझौते के अनुसार बच्चे की कस्टडी को तुरंत स्थानांतरित कर दिया जाएगा. इस मामले में उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि निर्णय पूरी तरह से उपयुक्त है. गुजरात उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि बच्ची की कस्टडी बच्ची के प्राकृतिक माता-पिता को सौंप दिया जाए.

सरोगेट महिला को हिरासत में क्यों लिया: मामले की बारीकियों की गहन जांच से पता चला कि राजस्थान का रहने वाला अजमेर दंपति बच्चे पैदा करने के लिए सरोगेसी का इस्तेमाल करना चाहता था क्योंकि दंपति बच्चे पैदा करने में असमर्थ थे. ऐसे में वे एक महिला से मिले. दंपति उस महिला के गर्भ से बच्चा चाहते थे. सरोगेसी से महिला गर्भवती हुई. किशोर अधिनियम के तहत एक शिकायत के बाद पुलिस ने महिला को फरवरी 2022 में हिरासत में लिया. इसके बाद महिला ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल में जेल में बच्चे को जन्म दिया.

ये भी पढ़ें- Maharashtra Political Crisis: शिंदे गुट को SC से बड़ी राहत, डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर रोक, सभी पक्षों से मांगा जवाब

जैविक पिता हाई कोर्ट पहुंचे : जैविक पेरेंट्स और सरोगेट मां के बीच किए गए अनुबंध की शर्तों के अनुसार प्रसव के तुरंत बाद बच्चे की कस्टडी जैविक पेरेंट्स को मिलनी चाहिए थी. क्योंकि सरोगेट मां पुलिस हिरासत में थी, पुलिस ने उसे बच्ची की कस्टडी नहीं दी. बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में अंतिम सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि सात दिन के शिशु को उसके जैविक माता-पिता को सौंप दिया जाना चाहिए.

अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को दो दिन की बच्ची की कस्टडी पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. अदालत के एक फैसले के अनुसार बच्ची के जैविक पिता को अब उसकी कस्टडी मिलेगी. गुजरात उच्च न्यायालय ने पुलिस को सरोगेट बच्ची को उसके जैविक पिता को प्रदान करने के आदेश दिये.

क्या है पूरा मामला: अभी हाल ही में गुजरात हाई कोर्ट के सामने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में पिता ने नवजात बच्ची की कस्टडी का अनुरोध किया था. हालांकि, तथ्य यह है कि इस बच्चे को सरोगेट मदर के माध्यम से जन्म दिया गया. सरोगेट मां को पुलिस की निगरानी में रखा जा रहा था. पुलिस द्वारा बच्चे को जैविक पिता को सौंपने से इंकार करने पर अदालत का रूख किया गया था. सरोगेट मां बच्चे को देने के लिए तैयार थी लेकिन पुलिस हिरासत में होने के कारण वो ऐसा नहीं कर सकी. याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क देते हुए पूरा मामला पेश किया कि चूंकि पेरेंट्स के पास सितंबर 2021 में एक सरोगेट बच्चा था, लेकिन नए सरोगेसी नियम दिसंबर 2021 में पारित किए गए थे. ऐसे में इस मामले में नए नियम लागू नहीं होते हैं.

सरोगेसी अधिनियम का हवाला: इसके अतिरिक्त सरोगेट मां और पेरेंट्स के बीच समझौते के अनुसार बच्चे के जन्म के तुरंत बाद याचिकाकर्ता को शिशु की कस्टडी दी जानी थी. सरोगेसी अधिनियम में एक बच्चे को अपने मूल माता-पिता के साथ रहने की अवधि के बारे में कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए इस मामले में बच्चे को उसके जैविक माता-पिता को दिया जाना चाहिए.

तत्काल हस्तांतरण का आदेश: गुजरात उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाया कि बच्चे के जैविक माता-पिता को बच्चे की तत्काल हिरासत मिलनी चाहिए. सरोगेट मां और जैविक पिता के बीच हुए समझौते के अनुसार बच्चे की कस्टडी को तुरंत स्थानांतरित कर दिया जाएगा. इस मामले में उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि निर्णय पूरी तरह से उपयुक्त है. गुजरात उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि बच्ची की कस्टडी बच्ची के प्राकृतिक माता-पिता को सौंप दिया जाए.

सरोगेट महिला को हिरासत में क्यों लिया: मामले की बारीकियों की गहन जांच से पता चला कि राजस्थान का रहने वाला अजमेर दंपति बच्चे पैदा करने के लिए सरोगेसी का इस्तेमाल करना चाहता था क्योंकि दंपति बच्चे पैदा करने में असमर्थ थे. ऐसे में वे एक महिला से मिले. दंपति उस महिला के गर्भ से बच्चा चाहते थे. सरोगेसी से महिला गर्भवती हुई. किशोर अधिनियम के तहत एक शिकायत के बाद पुलिस ने महिला को फरवरी 2022 में हिरासत में लिया. इसके बाद महिला ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल में जेल में बच्चे को जन्म दिया.

ये भी पढ़ें- Maharashtra Political Crisis: शिंदे गुट को SC से बड़ी राहत, डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर रोक, सभी पक्षों से मांगा जवाब

जैविक पिता हाई कोर्ट पहुंचे : जैविक पेरेंट्स और सरोगेट मां के बीच किए गए अनुबंध की शर्तों के अनुसार प्रसव के तुरंत बाद बच्चे की कस्टडी जैविक पेरेंट्स को मिलनी चाहिए थी. क्योंकि सरोगेट मां पुलिस हिरासत में थी, पुलिस ने उसे बच्ची की कस्टडी नहीं दी. बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में अंतिम सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि सात दिन के शिशु को उसके जैविक माता-पिता को सौंप दिया जाना चाहिए.

Last Updated : Jun 28, 2022, 12:43 PM IST
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