कोयम्बटूर: गांधीपुरम, कोयम्बटूर, सोमनूर रूट पर बस को सहजता से चलाकर शर्मिला ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि महिलाएं किसी भी तरह से पुरुषों से कमजोर नहीं हैं. लोग बस स्टॉप के पास से गुजरते हुए जब शर्मिला को देखते हैं तो बधाई देकर ही आगे बढ़ते हैं. गांधीपुरम बस स्टेशन पर शर्मिला के साथ सेल्फी लेने के लिए हमेशा भीड़ लग जाती है, जो अब वहां की नई स्टार हैं.
ईटीवी भारत के रिपोर्टर श्रीनिसुब्रमण्यम से शर्मिला ने बात करते हुए बताया कि उनके पिता एक ऑटो चालक हैं और उन्होंने ही शर्मिला को इसके लिए प्रोत्साहित किया है. इससे पहले शर्मिला अपने पिता द्वारा चलाए जा रहे एलपीजी ऑटो को चलाया करती थीं.
शर्मिला का शुरु से ही ड्राइवर बनने का सपना था, उन्होंने इसी के कारण बड़े वाहन का ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किया. वह इस पुरुष प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती थीं.
वे कहती हैं, "समाज में कई लोग ड्राइवर को अच्छी नजर से नहीं देखते हैं, लेकिन मुझे इस काम में दिलचस्पी है." "जब मैं सातवीं कक्षा में थी तब मुझे ड्राइविंग में दिलचस्पी हो गई थी. अगर आपके घर पर भी अगर आप के घर वाले कहते हैं कि जो करना है करो, तो आपके सपने को हरी झंडी मिल जाती है."
शर्मिला कहती हैं कि मैंने अभी बस चलाना शुरु किया है, लेकिन मैं 2019 से कोयम्बटूर में ऑटो चला रही हूं. मुझे हैवी व्हीकल लाइसेंस दिलाने में मेरे पिता की महत्वपूर्ण भूमिका हैं. वह कहते थे कि मैं गर्व से कहना चाहता हूं कि मेरी बेटी कोयम्बटूर की पहली महिला बस ड्राइवर है.
शर्मिला कहती हैं कि इस खाकी कमीज को पहनने के बाद भले ही हजार लोग हजार तरह की बातें कहें, मुझपर इसका कोई असर नहीं होगा. अपना ड्राइविंग प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, शर्मिला ने सरकारी नौकरी की प्रतीक्षा नहीं की और वीवी ट्रांसपोर्ट नामक एक निजी कंपनी द्वारा पेश किए गए अवसर पर काम करना शुरु कर दिया.
शर्मिला द्वारा चलाई जा रही बस में यात्रा करने वाली एक कॉलेज छात्रा ने कहा, "आमतौर पर मैंने केवल पुरुषों को ही बस चलाते देखा है, अब यह आश्चर्य की बात है कि एक युवती इसे चला रही है. वहीं, शर्मिला दूसरों के लिए मिसाल हैं. उसने महिला ड्राइवर को बताया कि वह आसानी से उनके पास आ सकती है और अपने बस स्टॉप पर उतरने तक रुक सकती है.
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