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Karnataka election 2023 : चुनाव से पहले जनता से वादों की झड़ी कहीं राज्य के खजाने पर भारी ना पड़ जाये... पढ़ें विशेष रिपोर्ट

प्रदेश के चुनावी अखाड़े में पार्टियों का प्रचार अभियान पूरे जोर पर है. तीन दिन बाद मतदान होने हैं. राजनीतिक दल अपने प्रचार अभियान के अंतिम चरण में हैं. प्रदेश में तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने वोट पाने के लिए जनता को काफी कुछ मुफ्त या डायरेक्ट भत्ते के रूप में देने का वादा किया है. आइये जानते हैं प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पड़ेगा...

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Published : May 7, 2023, 7:45 AM IST

बेंगलुरु (कर्नाटक) : राज्य में चुनावी अखाड़े में महासंग्राम अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है. प्रमुख राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने घोषणापत्र में मुफ्त सेवाएं और भत्ते देने के वादे करते रहे हैं. किसी भी पार्टी के सत्ता में आने के बाद उनके किये वादों का कर्नाटक की अर्थव्यवस्था क्या असर होगा. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

वोट के वोदों की भरमार, कोई पार्टी पीछे नहीं : तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस ने जनता को लुभाने के लिए काफी कुछ मुफ्त या डायरेक्ट भत्ते के रूप में देने का वादा किया है. उनकी मंशा इन वादों के सहारे सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की है. हालांकि, विशेषज्ञों की राय है कि राजनीतिक दलों द्वारा घोषित इस तरह के वादों के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था में काफी उथल-पुथल मच जायेगा.

इस तरह मुफ्त या डायरेक्ट भत्ते के रूप में जनता को सुविधायें देने से राज्य के खजाने को तगड़ा झटका लगेगा. उनका मानना है कि देश के अन्य राज्यों तक कर्नाटक भी अभी तक कोविड के बाद की आर्थिक परिस्थितियों से उबर नहीं पाया है. उस पर ये चुनावी घोषणाएं राज्य की अर्थव्यवस्था को और मुश्किल में डाल देंगी. विशेषज्ञों को चिंता है कि भविष्य की सरकार को जनता से किये वादों को पूरा करने के लिए राज्य में विकास योजनाओं में पूंजीगत व्यय से समझौता करना पड़ेगा.

कांग्रेस सत्ता में आई तो राज्य के खजाने पर कितना पड़ेगा : कांग्रेस ने इस बार अपने मेनिफेस्टो में छह बड़े वादे किये हैं. उनमें से शीर्ष तीन वादों की कुल लागत पर एक नज़र डालें तो हमे पता चलता है कि राज्य के लोगों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने में राज्य सरकार पर सालाना 25,800 करोड़ रु. बोझ राजकोष पर पड़ेगा. इसी तरह, बीपीएल कार्डधारक के परिवार की कामकाजी महिला को प्रति माह 2,000 रुपये देने से राज्य सरकार के खजाने पर 30 हजार करोड़ को बोझ पड़ेगा. बता दें कि प्रदेश में इस समय 1.28 करोड़ बीपीएल कार्डधारक हैं.

कांग्रेस ने सरकारी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा का भी वादा किया है. अनुमान है कि इस योजना से सालाना 3,000 करोड़ रुपये से अतिरिक्त बोझ राज्य सरकार पर पड़ेगा. हालांकि, सरकारी बस में यात्रा करने वाली महिलाओं की कुल संख्या के आधार पर इस परियोजना की सही लागत का पता चलेगा. जानकारों का मानना है कि सिर्फ इन तीन योजनाओं से ही सरकारी खजाने पर अनुमानित 58,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

बीजेपी सत्ता में आयी तो कितना अतिरिक्त बोझ पड़ेगा : मुफ्त या डायरेक्ट भत्ते के रूप में देने के वादे करने में बीजेपी भी पीछे नहीं है. महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा ने बीपीएल ने परिवार को आधा लीटर नंदिनी दूध मुफ्त देने का वादा किया है. आधा लीटर नंदिनी दूध की कीमत 20 रुपये है. बता दें कि राज्य में कुल बीपीएल कार्ड धारक परिवारों की की संख्या 1.28 करोड़ है. प्रतिदिन आधा लीटर नंदिनी दूध उपलब्ध कराने वाली इस योजना से सरकारी खजाने पर सालाना करीब 8,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

क्या है खजाने की स्थिति : राज्य के बजट में 2022-23 में 14699 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे का जिक्र किया था. कांग्रेस की गृह लक्ष्मी योजना से सरकारी खजाने पर सालाना 30,000 करोड़ रु. बोझ पड़ेगा. जिससे पूंजीगत व्यय जो 46,955 करोड़ रुपये होता है. 16,300 करोड़ रुपये रह जायेगा. इसके अलावा, राजस्व घाटा भी बढ़ेगा. अर्थशास्त्रियों ने कहा कि पूंजीगत व्यय के लिए धन की कमी बुनियादी विकास को प्रभावित करेगी. मध्यम अवधि की वित्तीय योजना 2022-26 के अनुसार, कुल राजस्व संग्रह का 90% निश्चित व्यय की ओर जाएगा.

राज्य की वित्तीय सेहत पर मुफ्त के वादों के प्रभाव को समझने के लिए उनकी तुलना राज्य के राजकोषीय घाटे और जीएसडीपी से की जानी चाहिए. अधिनियम के अनुसार राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3% की सीमा के भीतर होना चाहिए. 2023-24 के लिए कर्नाटक की अनुमानित जीएसडीपी 23.33 लाख करोड़ रुपये है. राजकोषीय घाटा 60,531 करोड़ रहने का अनुमान है. वहीं कांग्रेस के वादों के कारण सरकारी खजाने पर लगभग 58,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. यह कुल राजकोषीय घाटे का 95.81% होगा. ऐसे ही भाजपा के सिर्फ घोषणाओं की अनुमानित लागत ही करीब 12,000 करोड़ रुपये होगी. यानी यह कुल राजकोषीय घाटे का करीब 19 फीसदी होगा.

जनता पर बढ़ सकता है कर का बोझ : इतनी बड़ी राशि को कवर करने के लिए सरकार को और ऋण लेना पड़ सकता है. इसके अलावा, इसका बोझ किसी ना किसी तरह से जनता पर भी टैक्स के रूप में पड़ेगा. वित्त विभाग के अधिकारियों का मानना ​​है कि अकेले लागत में कटौती के माध्यम से इस तरह की योजनाओं को नहीं चलाया जा सकता. इन योजनाओं की लागत को कवर करने के लिए लोगों को अतिरिक्त कर देना होगा. अधिकारियों ने कहा कि सरकार को ऋण लेना होगा और कर भी बढ़ाना पड़ सकता है. साल 2023-24 में कर्नाटक राज्य का कर्ज करीब 5,64,896 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है.

पढ़ें : Karnataka election 2023 : भाजपा के खिलाफ 'रेट कार्ड' विज्ञापनों पर निर्वाचन आयोग ने कर्नाटक कांग्रेस को नोटिस जारी किया

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बेंगलुरु (कर्नाटक) : राज्य में चुनावी अखाड़े में महासंग्राम अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है. प्रमुख राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने घोषणापत्र में मुफ्त सेवाएं और भत्ते देने के वादे करते रहे हैं. किसी भी पार्टी के सत्ता में आने के बाद उनके किये वादों का कर्नाटक की अर्थव्यवस्था क्या असर होगा. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

वोट के वोदों की भरमार, कोई पार्टी पीछे नहीं : तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस ने जनता को लुभाने के लिए काफी कुछ मुफ्त या डायरेक्ट भत्ते के रूप में देने का वादा किया है. उनकी मंशा इन वादों के सहारे सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की है. हालांकि, विशेषज्ञों की राय है कि राजनीतिक दलों द्वारा घोषित इस तरह के वादों के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था में काफी उथल-पुथल मच जायेगा.

इस तरह मुफ्त या डायरेक्ट भत्ते के रूप में जनता को सुविधायें देने से राज्य के खजाने को तगड़ा झटका लगेगा. उनका मानना है कि देश के अन्य राज्यों तक कर्नाटक भी अभी तक कोविड के बाद की आर्थिक परिस्थितियों से उबर नहीं पाया है. उस पर ये चुनावी घोषणाएं राज्य की अर्थव्यवस्था को और मुश्किल में डाल देंगी. विशेषज्ञों को चिंता है कि भविष्य की सरकार को जनता से किये वादों को पूरा करने के लिए राज्य में विकास योजनाओं में पूंजीगत व्यय से समझौता करना पड़ेगा.

कांग्रेस सत्ता में आई तो राज्य के खजाने पर कितना पड़ेगा : कांग्रेस ने इस बार अपने मेनिफेस्टो में छह बड़े वादे किये हैं. उनमें से शीर्ष तीन वादों की कुल लागत पर एक नज़र डालें तो हमे पता चलता है कि राज्य के लोगों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने में राज्य सरकार पर सालाना 25,800 करोड़ रु. बोझ राजकोष पर पड़ेगा. इसी तरह, बीपीएल कार्डधारक के परिवार की कामकाजी महिला को प्रति माह 2,000 रुपये देने से राज्य सरकार के खजाने पर 30 हजार करोड़ को बोझ पड़ेगा. बता दें कि प्रदेश में इस समय 1.28 करोड़ बीपीएल कार्डधारक हैं.

कांग्रेस ने सरकारी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा का भी वादा किया है. अनुमान है कि इस योजना से सालाना 3,000 करोड़ रुपये से अतिरिक्त बोझ राज्य सरकार पर पड़ेगा. हालांकि, सरकारी बस में यात्रा करने वाली महिलाओं की कुल संख्या के आधार पर इस परियोजना की सही लागत का पता चलेगा. जानकारों का मानना है कि सिर्फ इन तीन योजनाओं से ही सरकारी खजाने पर अनुमानित 58,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

बीजेपी सत्ता में आयी तो कितना अतिरिक्त बोझ पड़ेगा : मुफ्त या डायरेक्ट भत्ते के रूप में देने के वादे करने में बीजेपी भी पीछे नहीं है. महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा ने बीपीएल ने परिवार को आधा लीटर नंदिनी दूध मुफ्त देने का वादा किया है. आधा लीटर नंदिनी दूध की कीमत 20 रुपये है. बता दें कि राज्य में कुल बीपीएल कार्ड धारक परिवारों की की संख्या 1.28 करोड़ है. प्रतिदिन आधा लीटर नंदिनी दूध उपलब्ध कराने वाली इस योजना से सरकारी खजाने पर सालाना करीब 8,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

क्या है खजाने की स्थिति : राज्य के बजट में 2022-23 में 14699 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे का जिक्र किया था. कांग्रेस की गृह लक्ष्मी योजना से सरकारी खजाने पर सालाना 30,000 करोड़ रु. बोझ पड़ेगा. जिससे पूंजीगत व्यय जो 46,955 करोड़ रुपये होता है. 16,300 करोड़ रुपये रह जायेगा. इसके अलावा, राजस्व घाटा भी बढ़ेगा. अर्थशास्त्रियों ने कहा कि पूंजीगत व्यय के लिए धन की कमी बुनियादी विकास को प्रभावित करेगी. मध्यम अवधि की वित्तीय योजना 2022-26 के अनुसार, कुल राजस्व संग्रह का 90% निश्चित व्यय की ओर जाएगा.

राज्य की वित्तीय सेहत पर मुफ्त के वादों के प्रभाव को समझने के लिए उनकी तुलना राज्य के राजकोषीय घाटे और जीएसडीपी से की जानी चाहिए. अधिनियम के अनुसार राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3% की सीमा के भीतर होना चाहिए. 2023-24 के लिए कर्नाटक की अनुमानित जीएसडीपी 23.33 लाख करोड़ रुपये है. राजकोषीय घाटा 60,531 करोड़ रहने का अनुमान है. वहीं कांग्रेस के वादों के कारण सरकारी खजाने पर लगभग 58,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. यह कुल राजकोषीय घाटे का 95.81% होगा. ऐसे ही भाजपा के सिर्फ घोषणाओं की अनुमानित लागत ही करीब 12,000 करोड़ रुपये होगी. यानी यह कुल राजकोषीय घाटे का करीब 19 फीसदी होगा.

जनता पर बढ़ सकता है कर का बोझ : इतनी बड़ी राशि को कवर करने के लिए सरकार को और ऋण लेना पड़ सकता है. इसके अलावा, इसका बोझ किसी ना किसी तरह से जनता पर भी टैक्स के रूप में पड़ेगा. वित्त विभाग के अधिकारियों का मानना ​​है कि अकेले लागत में कटौती के माध्यम से इस तरह की योजनाओं को नहीं चलाया जा सकता. इन योजनाओं की लागत को कवर करने के लिए लोगों को अतिरिक्त कर देना होगा. अधिकारियों ने कहा कि सरकार को ऋण लेना होगा और कर भी बढ़ाना पड़ सकता है. साल 2023-24 में कर्नाटक राज्य का कर्ज करीब 5,64,896 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है.

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