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दिल्ली में एक साल में गई 54 हजार लोगों की जान, वायु प्रदूषण बना कारण - ग्रीनपीस की रिपोर्ट

देश के प्रमुख शहरों की जहरीली हवा जानलेवा हो रही है. बढ़ते प्रदूषण के कारण मौतों की संख्या बढ़ रही है. पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में पीएम 2.5 (पर्टिकुलेट मैटर) के कारण सिर्फ दिल्ली में 54 हजार लोगों की जान चली गई. हर दस लाख लोगों में 1800 मौतें वायु प्रदूषण के कारण हो रही हैं. आर्थिक रूप से भी देश को काफी नुकसान हो रहा है.

वायु प्रदूषण
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Published : Feb 22, 2021, 5:20 PM IST

हैदराबाद : हवा में घुलता प्रदूषण जानलेवा हो रहा है. पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस का ताजा अध्धयन चौंकाने वाला है. ग्रीनपीस ने दक्षिणपूर्व एशिया की वायु गुणवत्ता के जो आंकड़े जारी किए हैं उसके अनुसार साल 2020 में खतरनाक पीएम 2.5 (पर्टिकुलेट मैटर) के कारण वायु प्रदूषण से सिर्फ दिल्ली में 54 हजार लोगों की मौत हुई.

अगर देश के पांच बड़े शहरों की बात करें तो 160000 मौंतों का कारण हवा में घुलते प्रदूषण के कण थे. यानी हर दस लाख पर PM2.5 वायु प्रदूषण के कारण 1800 मौतें हुईं.

क्या होता है पीएम 2.5, कितना होना चाहिए

पीएम 2.5 (पर्टिकुलेट मैटर) हवा में घुलने वाले छोटे कण हैं. इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी कम होता है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने से धुंध बढ़ जाती है. सांस लेने में दिक्कत होती है. पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 60 एमजीसीएम होता है.

WHO की निर्धारित सीमा से लगभग छह गुना ज्यादा प्रदूषण

अध्धयन में कहा गया है कि दिल्ली में वायु प्रदूषक स्तर 10 ग्राम / मी3 वार्षिक औसत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की निर्धारित सीमा से लगभग छह गुना अधिक है. अन्य भारतीय शहरों में भी हालात चिंताजनक हैं.

आर्थिक नुकसान
आर्थिक नुकसान

मुंबई की बात करें तो यहां साल 2020 में अनुमानित 25,000 परिहार्य मौतों के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया गया है. प्रदूषित हवा के कारण बेंगलुरु में करीब 12000, चेन्नई और हैदराबाद में 11-11 हजार, लखनऊ में 6700 मौतों का अनुमान है.

वहीं, अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण से अनुमानित आर्थिक नुकसान 8.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर (58,895 करोड़ रुपये) था, जो दिल्ली की वार्षिक जीडीपी का 13 प्रतिशत है.

वायु प्रदूषण से संबंधित आर्थिक नुकसान का आंकलन

वायु प्रदूषण से संबंधित आर्थिक नुकसान का आंकलन करने के लिए एक ऑनलाइन उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है जो दुनिया के प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण के वास्तविक समय के स्वास्थ्य प्रभाव और आर्थिक लागत को ट्रैक करता है.

वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को दिखाने के लिए ग्रीनपीस का जो दृष्टिकोण को है उसे 'इच्छा से भुगतान' (willingness-to-pay) कहा जाता है. इस दृष्टिकोण के तहत एक खोया हुआ जीवन वर्ष या दिव्यांगता के साथ एक वर्ष को उस धन में परिवर्तित किया जाता है, जिसे लोग नकारात्मक परिणाम से बचने के लिए भुगतान करना चाहते हैं.

लॉकडाउन के बावजूद ये स्थिति चिंताजनक

देश में इस साल लॉकडाउन के कारण हवा की गुणवत्ता अपेक्षाकृत बेहतर है. ऐसे में ग्रीनपीस का अध्धयन बड़ी चिंता का कारण है कि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो परिणाम और गंभीर होंगे. समय की जरूरत अक्षय ऊर्जा को तेजी से बढ़ाने, जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन को समाप्त करने और टिकाऊ और सुलभ परिवहन प्रणाली को बढ़ावा देने की है.

समय रहते सरकार को कदम उठाने होंगे

जलवायु के लिए अभियान चलाने वाले ग्रीनपीस इंडिया के अविनाश चंचल का कहना है कि 'सख्त लॉकडाउन के कारण इस वर्ष अपेक्षाकृत बेहतर वायु गुणवत्ता रिकॉर्ड करने के बावजूद वायु प्रदूषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है, जिसने हमारी अर्थव्यवस्था को भी काफी प्रभावित किया है. सरकारों को इसके लिए सख्त कदम उठाने होंगे. पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए निवेश करना होगा तभी स्थाई समाधान निकलेगा.'

पढ़ें-Delhi Air Pollution: वायु की गुणवत्ता खराब स्थिति में बरकरार

उनका कहना है कि 'जब हम स्वच्छ ऊर्जा के बजाय जीवाश्म ईंधन चुनते हैं, तो हमारा स्वास्थ्य दांव पर लगाया जाता है. प्रदूषित हवा से कैंसर और स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों की संभावना बढ़ जाती है, अस्थमा के हमलों में स्पाइक और कोविड 19 लक्षणों की गंभीरता बिगड़ती है.'

हैदराबाद : हवा में घुलता प्रदूषण जानलेवा हो रहा है. पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस का ताजा अध्धयन चौंकाने वाला है. ग्रीनपीस ने दक्षिणपूर्व एशिया की वायु गुणवत्ता के जो आंकड़े जारी किए हैं उसके अनुसार साल 2020 में खतरनाक पीएम 2.5 (पर्टिकुलेट मैटर) के कारण वायु प्रदूषण से सिर्फ दिल्ली में 54 हजार लोगों की मौत हुई.

अगर देश के पांच बड़े शहरों की बात करें तो 160000 मौंतों का कारण हवा में घुलते प्रदूषण के कण थे. यानी हर दस लाख पर PM2.5 वायु प्रदूषण के कारण 1800 मौतें हुईं.

क्या होता है पीएम 2.5, कितना होना चाहिए

पीएम 2.5 (पर्टिकुलेट मैटर) हवा में घुलने वाले छोटे कण हैं. इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी कम होता है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने से धुंध बढ़ जाती है. सांस लेने में दिक्कत होती है. पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 60 एमजीसीएम होता है.

WHO की निर्धारित सीमा से लगभग छह गुना ज्यादा प्रदूषण

अध्धयन में कहा गया है कि दिल्ली में वायु प्रदूषक स्तर 10 ग्राम / मी3 वार्षिक औसत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की निर्धारित सीमा से लगभग छह गुना अधिक है. अन्य भारतीय शहरों में भी हालात चिंताजनक हैं.

आर्थिक नुकसान
आर्थिक नुकसान

मुंबई की बात करें तो यहां साल 2020 में अनुमानित 25,000 परिहार्य मौतों के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया गया है. प्रदूषित हवा के कारण बेंगलुरु में करीब 12000, चेन्नई और हैदराबाद में 11-11 हजार, लखनऊ में 6700 मौतों का अनुमान है.

वहीं, अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण से अनुमानित आर्थिक नुकसान 8.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर (58,895 करोड़ रुपये) था, जो दिल्ली की वार्षिक जीडीपी का 13 प्रतिशत है.

वायु प्रदूषण से संबंधित आर्थिक नुकसान का आंकलन

वायु प्रदूषण से संबंधित आर्थिक नुकसान का आंकलन करने के लिए एक ऑनलाइन उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है जो दुनिया के प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण के वास्तविक समय के स्वास्थ्य प्रभाव और आर्थिक लागत को ट्रैक करता है.

वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को दिखाने के लिए ग्रीनपीस का जो दृष्टिकोण को है उसे 'इच्छा से भुगतान' (willingness-to-pay) कहा जाता है. इस दृष्टिकोण के तहत एक खोया हुआ जीवन वर्ष या दिव्यांगता के साथ एक वर्ष को उस धन में परिवर्तित किया जाता है, जिसे लोग नकारात्मक परिणाम से बचने के लिए भुगतान करना चाहते हैं.

लॉकडाउन के बावजूद ये स्थिति चिंताजनक

देश में इस साल लॉकडाउन के कारण हवा की गुणवत्ता अपेक्षाकृत बेहतर है. ऐसे में ग्रीनपीस का अध्धयन बड़ी चिंता का कारण है कि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो परिणाम और गंभीर होंगे. समय की जरूरत अक्षय ऊर्जा को तेजी से बढ़ाने, जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन को समाप्त करने और टिकाऊ और सुलभ परिवहन प्रणाली को बढ़ावा देने की है.

समय रहते सरकार को कदम उठाने होंगे

जलवायु के लिए अभियान चलाने वाले ग्रीनपीस इंडिया के अविनाश चंचल का कहना है कि 'सख्त लॉकडाउन के कारण इस वर्ष अपेक्षाकृत बेहतर वायु गुणवत्ता रिकॉर्ड करने के बावजूद वायु प्रदूषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है, जिसने हमारी अर्थव्यवस्था को भी काफी प्रभावित किया है. सरकारों को इसके लिए सख्त कदम उठाने होंगे. पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए निवेश करना होगा तभी स्थाई समाधान निकलेगा.'

पढ़ें-Delhi Air Pollution: वायु की गुणवत्ता खराब स्थिति में बरकरार

उनका कहना है कि 'जब हम स्वच्छ ऊर्जा के बजाय जीवाश्म ईंधन चुनते हैं, तो हमारा स्वास्थ्य दांव पर लगाया जाता है. प्रदूषित हवा से कैंसर और स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों की संभावना बढ़ जाती है, अस्थमा के हमलों में स्पाइक और कोविड 19 लक्षणों की गंभीरता बिगड़ती है.'

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