शिमला: वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक युद्ध हुआ और नापाक पड़ोसी का एक हिस्सा टूट कर बांगलादेश बना. इस युद्ध का शिमला से गहरा नाता है. ब्रिटिशकालीन भारत की समर कैपिटल के ऐतिहासिक भवन बानर्स कोर्ट में शिमला समझौता हुआ था. पांच दशक का समय हो गया है इस समझौते से किस देश को क्या मिला, ये हमेशा से बहस का विषय रहा है. अभी भी इस समझौते को लेकर भारत में लाभ-हानि का गुणा-भाग होता रहता है, लेकिन इस ऐतिहासिक समझौते से जुड़ी बातें जुलाई महीने में फिर से स्मरण हो आती हैं.
2 जुलाई 1972 का ऐतिहासिक दिन: शिमला समझौते के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर के साथ शिमला आई थीं. दोनों देशों के बीच समझौता कभी हां, कभी न के बीच झूल रहा था. इसी बीच, दो जुलाई की रात को 12 बजकर 40 मिनट पर बानर्स कोर्ट इमारत में कूट शब्द गूंजे-लड़का हो गया लड़का. दरअसल, जब दोनों देशों के प्रतिनिधि असमंजस में थे तो ये तय किया गया कि अगर समझौता हो गया तो उक्त कूट शब्द बोले जाएंगे. खैर, आइए जानते हैं कि शिमला समझौते के दौरान मीडिया में क्यों बेनजीर का क्रेज था. इंदिरा गांधी का मूड कैसा था? आखिर ऐसा क्या हुआ कि शिमला समझौते के समय एक मीडिया कर्मी से पेन मांगा गया?
जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ बेनजीर भुट्टो आई शिमला: वर्ष 1972 में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टों के साथ शिमला आए तो भारत और विदेश का मीडिया बेनजीर के पीछे लग गया. अखबारों की सुर्खियों में बेनजीर की पोशाक, उसका हेयर स्टाइल व लुक अधिक देखने को मिला. मीडिया के एक सेक्शन ने तो ये सलाह भी दे डाली कि जुल्फिकार अली चाहिए कि वो बेनजीर को भारत में पाकिस्तान का राजदूत बना दे. वहीं, बाद में पाकिस्तान की पीएम बनी बेनजीर ने उस शिमला यात्रा का ब्यौरा अपनी किताब डॉटर ऑफ ईस्ट में किया है. बेनजीर ने अपनी किताब में कुछ पन्ने शिमला समझौते और अपने अनुभवों के बारे में समर्पित किए हैं.
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बेनजीर को मिली थी अपने पिता की खास सलाह: पाकिस्तान के पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी बेटी को शिमला दौरे में कैसे बिहेव करना है, इसके लिए खास सलाहें दी थीं। जुल्फिकार अली ने कहा था कि शिमला पहुंचकर बहुत अधिक हंसना मत, नहीं तो लोग कहेंगे कि पाकिस्तान के फौजी भारत की गिरफ्त में हैं और तुम हंस रही हो. पिता ने ये भी सलाह दी कि अधिक निराश या हताश भी मत दिखना, ताकि लोग ये न समझें कि पाकिस्तान का मनोबल गिरा हुआ है. परेशान बेनजीर ने पिता से पूछा कि फिर मुझे कैसे व्यवहरा करना है?
बेनजीर ने इंदिरा को कहा-अस्सलाम अलैकुम: कई दौर की बातचीत के बाद शिमला समझौते के आसार बने तो जुलाई माह में जुल्फिकार अली भुट्टो का शिमला दौरा तय हुआ. उस समय बेनजीर भुट्टो अपने अब्बा के साथ चौपर के जरिए चंडीगढ़ से शिमला पहुंची थी. शिमला के अनाडेल मैदान में हैलीकॉप्टर लैंड हुआ. अपनी किताब डॉटर ऑफ ईस्ट में बेनजीर भुट्टो लिखती हैं कि इंदिरा गांधी ने साड़ी पहनी थी और साड़ी के ऊपर उन्होंने रेनकोट लिया था. बेनजीर ने इंदिरा गांधी से अभिवादन के तौर पर अस्सलाम अलैकुम कहा तो इंदिरा गांधी ने नमस्ते के रूप में उसका जवाब दिया. शिमला में बेनजीर जहां भी जाती, मीडिया उनके पीछे लग जाता. इंदिरा गांधी के आदेश पर बेनजीर भुट्टो को शिमला में खरीदारी की व्यवस्था की गई थी. बेनजीर ने एक बार शिमला में भीड़ के सामने अभिवादन के लिए अपना हाथ हिलाया तो जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने अखबार में छपी फोटो दिखाई और कहा कि तुम मुसोलिनी जैसी नजर आती हो. बेनजीर ने लिखा है कि लोग उनके कपड़ों, स्टाइल और फैशन के बारे में बातें करते थे. उस समय मीडिया में बेनजीर का एक इंटरव्यू आया तो उसमें भी फैशन पर अधिक बात हुई.
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जब आई समझौते की घड़ी तो अटके कई रोड़े: दो जुलाई 1972 का दिन था. जुल्फिकार अली अपनी बेटी बेनजीर के पास आए और बोले-चलो, हम कल घर जा रहे हैं. बेनजीर चौंक गई और पूछा, बिना समझौते किए? इस पर पिता ने कहा-हां बिना समझौते किए. जुल्फिकार भुट्टो बेनजीर से बोले, मैं भारत का थोपा हुआ फैसला मानने की जगब बिना समझौते के पाकिस्तान लौटना पसंद करूंगा. फिर देर शाम जुल्फिकार अली भुट्टो बेनजीर के कमरे में आए और बोले कि मैं एक और कोशिश कर रहा हूं. इंदिरा गांधी भी उस दिन तनाव में थीं. खैर, ऊहापोह में 2 जुलाई का दिन बीत गया और फिर रात आ गई.
राजभवन में गूंजा लड़का हुआ है लड़का: मीडिया को भी लगा कि अब समझौता नहीं होगा. तब मीडिया वाले भी अपने-अपने रहने के स्थान पर चले गए. फिर न जाने क्या हुआ कि अचानक रात को हलचल हुई कि समझौता होने वाला है. तब मीडिया बानर्स कोर्ट की तरफ दौड़ी. बानर्स कोर्ट ही अब हिमाचल का राजभवन है. खैर, वहां बड़ी देर तक समझौते का मसौदा बनता रहा और तैयार किए गए दस्तावेज इंदिरा गांधी व जुल्फिकार अली भुट्टो को दिखाए जाते रहे. उधर, बेनजीर भी अपने कमरे में बेचैन हो रही थी. तभी एक पाकिस्तानी पत्रकार ने आइडिया दिया कि यदि समझौता हो जाता है तो हम ये कहेंगे कि लड़का हुआ है लड़का. अगर समझौता न हुआ तो कहेंगे कि लड़की हुई है. जुल्फिकार अली भुट्टो ने बेनजीर से कहा था कि जब समझौता हो तो तुम भी उसी कमरे में रहना. ये एक ऐतिहासिक पल होगा, लेकिन जब समझौता हुआ तो बेनजीर बानर्स कोर्ट के ऊपरी कक्ष में थी. तभी नीचे लड़का हुआ है लड़का, का स्वर गूंजने लगा.
मीडियाकर्मी ने दी थी इंदिरा गांधी को पेन: इससे पता चल गया कि समझौता हो गया है. ये रात 12 बजकर चालीस मिनट की बात है. जिस टेबुल पर समझौता हुआ, वो अभी भी राजभवन में है. उस टेबल पर कपड़ा भी नहीं था. यहां तक कि समझौते पर हस्ताक्षर के लिए इंदिरा गांधी को पेन भी शिमला के एक मीडिया कर्मी ने दिया था. शिमला में समझौता तो हो गया, लेकिन अभी भी ये टीस भारत में है कि पाकिस्तान अपने 93 हजार जंगी कैदी भी छुड़ा ले गया और जमीन भी वापिस ले ली. अब बानर्स कोर्ट में हिमाचल का राजभवन है और शिमला समझौते वाला टेबल अभी भी मौजूद है. इस टेबुल को आगंतुक बड़े अचरज से देखते हैं. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से लेकर अन्य वीवीआईपी इस टेबुल और समझौते की तस्वीरें देखते हैं.
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