कवर्धा में धूमधाम से मनाया गया भोजली पर्व
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कवर्धा में धूमधाम से भोजली पर्व मनाया गया. रक्षाबंधन के दूसरे दिन भोजली पर्व को मनाया जाता है. कवर्धा के पंडरिया में बड़े उत्साह के साथ लोगों ने इसे मनाया. यहां भारी संख्या में ग्रामीण जुटे, महिलाएं भी जुटीं और उन्होंने प्रभात फेरी भी निकाली. महिलाएं जस गीत गाते हुए भोजली अपने माथे पर रखकर उसका विसर्जन करने पहुंचीं. उसके बाद लोगों ने एक दूसरे से गले मिलकर भोजली पर्व की बधाई दी. छत्तीसगढ़ में कई तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. इसमें भोजली पर्व भी शामिल है. भोजली पर्व अगस्त के महीने में मनाया जाता है. भोजली एक पौधा है. भोजली को हर कोई देवी का रूप मानता है. भोजली पर्व में अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस पौधे की पूजा की जाती है. इस पर्व को सभी लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. भोजली बोने के लिए सबसे पहले कुम्हार के घर से खाद और मिट्टी लाई जाती है. खाद मिट्टी के कुम्हार द्वारा पकाए गए बर्तनों और दीयों से बची हुई राख कहलाती है. भोजली पर्व का नियम है कि कुम्हार के घर से खाद और मिट्टी लानी चाहिए. इसके बाद महतो के घर से चुरकी और तुकनी लाई जाती है.इस त्योहार पर वे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. गेहूं को सुबह पानी में भिगोया जाता है, फिर शाम को गेहूं को निकालकर उसकी चुरकी और तुकनी में डाल दिया जाता है. फिर इस टोकरी में गेहूँ की खाद डाली जाती है. पांच दिनों के भीतर गेहूं से पौधे (भोजली) निकल कर बड़े हो जाते हैं. नौ दिनों तक भोजली के रूप में देवताओं की पूजा और प्रार्थना करते हैं. लोगों का मानना है कि नौ दिनों तक भोजली की पूजा करने से देवता गांव की रक्षा करेंगे. भजन-कीर्तन के नौ दिनों के दौरान लोक गीत गाए जाते हैं. इन्हें भोजली गीत कहा जाता है. इस तरह कवर्धा में भोजली का पर्व मनाया गया.