शहीद के आखिरी शब्द: 'मैं रहूं न रहूं, तुम बच्चों का ख्याल रखना...'
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पूर्णिमा एक दशक से सियाराम के जाने का गम सह रहीं हैं. 11 साल पहले सुकमा की कोंटा तहसील के ताड़मेटला में जब नक्सलियों ने खूनी खेल खेला था, तब धमतरी के सातबहना निवासी सियाराम अपना फर्ज निभाते-निभाते शहीद हो गए थे. पूर्णिमा तब से सिर्फ नाम में ही पूरी हैं, सियाराम के बिना उनका जीवन अधूरा है. वो कहती हैं कि जिंदगी बीत रही है. गुजारा हो रहा है. बच्चे बड़े हो गए, पढ़ाई कर रहे हैं. आज वो होते, तो जिंदगी कुछ और होती. तीनों बच्चे भी अपने पिता को याद कर भावुक हो उठते हैं.