सबले बढ़िया हे हमर छत्तीसगढ़ी: कानों में रस घोल देते हैं ये शब्द और ये आवाजें
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भाषा अपनी सुंदरता में कई बोलियों का रस घोलती है. यही बोलियां बन जाती हैं हमारी पहचान. हमारी पहचान न खोए इसके लिए जरूरी है इनसे जुड़ा साहित्य संजोया जाए. कहानियां, किस्से, नाटक, कविताओं को किसी तरह जिंदा रखा जाए और यही काम कर रही है हिन्दी कविता और इसके संस्थापक मनीष गुप्ता.
हिन्दी के साथ-साथ उर्दू और अब हमारी छत्तीसगढ़ी को भी सजा, संवार कर जिस खूबसूरती के साथ प्रेजेंट किया जा रहा है, उससे लगता है ये बोली भी देश के कोने-कोने में बसे लोगों के कानों में घुलेगी और लोग कहेंगे 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया.'