सूरजपुर: सूरजपुर के तिलसिवा गांव में एक ऐसा शख्स है, जिसे किसी और ने नहीं बल्कि अपनों ने कैद कर रखा. कैदखाने में जिंदगी के दिन गिन रहे युवक का गुनाह सिर्फ इतना है कि वो मानसिक रुप से बीमार है. जिसे अपनों ने इलाज के बजाए घर में जंजीरों से बांध कैद करना मुनासिब समझा.
जब अपनों ने किया कैद: कहानी सूरजपुर के तिलसिवा गांव की है जहां एक युवक छह महीनों से अपने ही घर में कैद की जिंदगी बिताने को मजबूर है वो भी बेड़ियों में. युवक का कसूर सिर्फ इतना भर है कि वो मानसिक रूप से बीमार है. परिवार वाले गरीबी के चलते उसके इलाज का खर्च नहीं उठा सकते. लिहाजा अपने ही खून को उन्होने जंजीरों में जकड़ना बेहतर समझा. घरवालों का कहना है कि युवक मानसिक रुप से बीमार रहता है और कभी-कभी आक्रामक हो जाता है..ऐसे हालात में उसे संभालना काफी मुश्किल और खतरनाक होता है. कई बार तो वो दूसरों पर हमला भी कर देता है. ऐसे हालात में उसे जंजीरों में कैद नहीं किया गया तो वो हमलावर हो उठता है. घरवालों का कहना है कि मानसिक रुप से बीमार राजेश को कई बार डॉक्टरों के पास भी लेकर गए. इलाज भी कराया..गोलियां दवाईयां भी कराई. जब डॉक्टरों से इलाज कराकर परिवार हार गया तो झाड़ फूंक का सहारा भी परिवार वालों ने लिया. लेकिन नतीजा वहीं रहा. मर्ज और परेशानी बढ़ती ही गई. गांव वालों ने भी राजेश के परिजनों से कहा कि वो उसे घर में बंद रखे क्योंकि कई बार वो गांव वालों भिड़ जाता है. ऐसे में मजबूर परिवार वालों ने राजेश को घर में कैद जंजीरों से बांध दिया.
अपनों ने बनाया जिंदगी को जहन्नुम: ऐसा नहीं था कि राजेश जन्म से ही मानसिक बीमार से जूझ रहा था. युवा अवस्था में वो ड्राइवर का काम करता था और परिवार की गाड़ी खीचने में घरवालों की आर्थिक मदद करता था. लेकिन राजेश के भाईयों ने उसे धोखे में रखकर उसके हिस्से की कीमती जमीन को अपने नाम करा लिया. राजेश अपने सगे भाईयों के हाथों मिले इस धोखे को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई. राजेश के दो बेटे हैं जिनकी पढ़ाई इलाज और गरीबी के चक्कर में छूट गई. परिवार के पास जो भी जमा पूंजी थी उसे घर वालों ने इलाज में खर्च कर दिया. आलम ये है कि परिवार के लोग अपना घर चलाने तक के लिए दूसरे के मोहताज बन गए हैं.
जल्द जंजीरों से मिलेगी आजादी: सूरजपुर के तिलसिवा गांव के राजेश की कहानी जब जिले के एसडीएम रवि सिंह को मिली तो उन्होने अपने मातहत अफसरों को राजेश के घर भेजकर पूरी जानकारी जुटाई. फिर राजेश को बिलासपुर अस्पताल में भेजकर इलाज कराने के निर्देश भी जारी किए. जिससे ये उम्मीद एक बूढ़ी मां को फिर से जगी की जरूर एक दिन उसका बेटा राजेश फिर अपनी सामान्य जिंदगी जी सकेगा. परिवार का बोझ भी उठा सकेगा.
रोशन हुआ उम्मीदों का चराग: कोई मां ये नहीं चाहती कि उसके जिगर का टुकड़ा अपनी जिंदगी जंजीरों में कैद होकर बिताए. पर हालात कुछ ऐसे बने जिसने राजेश के मुक्कदर को मुश्किलों से भर दिया. अब जबकी प्रशासन ने खुद राजेश की मदद का बीड़ा उठाने का जिम्मा लिया है. ऐसे में अब बूढ़ी मां की आंखों के एक कोने में उम्मीद की रोशनी दिखाई देने लगी है और ये उम्मीद भी बढ़ी है कि जल्द उसका लाल एक दिन ठीक होकर घर लौटेगा और मां कहकर लिपट जाएगा. तब कहीं जाकर पूरे परिवार को सुकून मिलेगा.