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ETV भारत ने बस्ते से आजादी दिलाने वाले जिन गुरुजी से मिलाया था, उन्हें अवार्ड मिला है

भैयाथान ब्लॉक के छोटे से गांव रूनियांडीह के शासकीय पूर्व माध्यमिक स्कूल में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं घर से अपने साथ किताबें लेकर नहीं आते हैं. अगर उनके हाथ में कुछ होता है, तो केवल एक रफ नोटबुक और पेन.

School of Surajpur
School of Surajpur
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Published : Jul 18, 2019, 4:52 PM IST

Updated : Nov 27, 2019, 2:41 PM IST

सूरजपुर: भैयाथान ब्लॉक के छोटे से गांव रूनियांडीह के शासकीय पूर्व माध्यमिक स्कुल में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं घर से अपने साथ किताबें लेकर नहीं आते हैं. अगर उनके हाथ में कुछ होता है, तो केवल एक रफ नोटबुक और पेन. ये आइडिया जनरेट करने वाले हेडमास्टर साहब सीमांचल त्रिपाठी को 'टीचर ग्लोबल अवार्ड' मिला है.

बस्ते के बोझ से मिली आजादी, पढ़ाई के नए तरीके से 'क्रांति' ला दी

साथ में किताबें नहीं लाते छात्र-छात्राएं
अब आप सोच रहे होंगे कि भला बिना किताबों से पढ़ाई कैसे होती है, हम आपको बता दें कि स्कूल में एडमिशन लेने के साथ ही छात्र-छात्राओं को किताबों के दो सेट दिए जाते हैं, जिसमें से एक सेट छात्र अपने साथ घर ले जाते हैं और दूसरे सेट को स्कूल में ही रख दिया जाता है.

क्यों कम नहीं हो सकता बस्तों का बोझ
स्कूल के हेडमास्टर ने बताया कि, अमेरिका जैसे अमीर देश एक किताब को दो से तीन बार उपयोग में लाते हैं, तो फिर भारत बच्चों के कंधों से किताबों का बोझ कम करने के लिए नए प्रयोग कैसे नहीं कर सकता.

प्रभारी शिक्षा अधिकारी ने की तारीफ
स्कूल के हेडमास्टर का कहना है कि इस व्यवस्था को एक्सपेरीमेंट के तौर पर शुरू किया गया है और सफल होने पर इसे दूसरे स्कूलों में भी इम्लीमेंट किया जाएगा. रुनियाडीह स्कूल की इस पहल को गांव के लोग ही नहीं प्रभारी शिक्षा अधिकारी से भी खूब तारीफ मिली है.

काबिल-ए-तारीफ है स्कूल का प्रयोग
हम भी बस यही दुआ करेंगे हेडमास्टर साहब का ये प्रयोग सफलता की बुलंदिया हासिल करे और वो दिन जल्द आए जब इस स्कूल की तरह भारत का हर स्कूल बैग लेस हो और नौनिहालों को बस्ते से बोझ से आजादी मिले.

सूरजपुर: भैयाथान ब्लॉक के छोटे से गांव रूनियांडीह के शासकीय पूर्व माध्यमिक स्कुल में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राएं घर से अपने साथ किताबें लेकर नहीं आते हैं. अगर उनके हाथ में कुछ होता है, तो केवल एक रफ नोटबुक और पेन. ये आइडिया जनरेट करने वाले हेडमास्टर साहब सीमांचल त्रिपाठी को 'टीचर ग्लोबल अवार्ड' मिला है.

बस्ते के बोझ से मिली आजादी, पढ़ाई के नए तरीके से 'क्रांति' ला दी

साथ में किताबें नहीं लाते छात्र-छात्राएं
अब आप सोच रहे होंगे कि भला बिना किताबों से पढ़ाई कैसे होती है, हम आपको बता दें कि स्कूल में एडमिशन लेने के साथ ही छात्र-छात्राओं को किताबों के दो सेट दिए जाते हैं, जिसमें से एक सेट छात्र अपने साथ घर ले जाते हैं और दूसरे सेट को स्कूल में ही रख दिया जाता है.

क्यों कम नहीं हो सकता बस्तों का बोझ
स्कूल के हेडमास्टर ने बताया कि, अमेरिका जैसे अमीर देश एक किताब को दो से तीन बार उपयोग में लाते हैं, तो फिर भारत बच्चों के कंधों से किताबों का बोझ कम करने के लिए नए प्रयोग कैसे नहीं कर सकता.

प्रभारी शिक्षा अधिकारी ने की तारीफ
स्कूल के हेडमास्टर का कहना है कि इस व्यवस्था को एक्सपेरीमेंट के तौर पर शुरू किया गया है और सफल होने पर इसे दूसरे स्कूलों में भी इम्लीमेंट किया जाएगा. रुनियाडीह स्कूल की इस पहल को गांव के लोग ही नहीं प्रभारी शिक्षा अधिकारी से भी खूब तारीफ मिली है.

काबिल-ए-तारीफ है स्कूल का प्रयोग
हम भी बस यही दुआ करेंगे हेडमास्टर साहब का ये प्रयोग सफलता की बुलंदिया हासिल करे और वो दिन जल्द आए जब इस स्कूल की तरह भारत का हर स्कूल बैग लेस हो और नौनिहालों को बस्ते से बोझ से आजादी मिले.

Intro:एंकर- सूरजपुर जिले मे जहां शिक्षा का हाल बेहाल है,,,वही रुनियाडिह गांव के पुर्व माध्यमिक स्कुल मे एक नई पहल कर बैग लैस स्कुल बनाया गया है,,,जहां छात्र छात्राओ को बैग के बोझ से मुक्त कर पुरे सूरजपुर ही नही छत्तीसगढ मे भी नई पहल है,,,पेश है एक रिपोर्ट,,,,

Body: तस्वीरो में दिख रहा ये नजारा जिले के भैयाथान ब्लाॅक के एक छोटे से गांव रूनियांडीह के शासकिय पूर्व माध्यमीक स्कुल का है,,,, जहां बच्चे अपने हांथें में एक कापी और पेन लेकर आते है,,,,जहां स्कुल मे ही सभी बच्चो को पुस्तके उपलब्ध कराया जाता है ,,,और अभ्यास पुस्तिका मे नोट करवाकर घर पर पुरा करना होता है,,,,जहां एक सेट पुस्तके घर पर होती है,,वही स्कुल के प्रधानध्यापक ने विदेश के शिक्षा व्यवस्था से प्रेरित होकर बताया की अमेरिका जैसा अमिर देष जब एक किताब को 2 से 3 बार उपयोग मे लाते है तो भारत जैसा देष जो प्रगति की ओर है वो एक नई शुरुआत कर बच्चो के कंधो से पुस्तको के बोझ को कम कर पुस्तको के प्रति रुचि बढाने के लिए एक नई पहल क्यो नही कर सकता। ,,,जहां प्रधानपाठक अपने स्कुल में इस पहल को एक एक्सपेरिमेंट के रुप मे देखते है ,,,जहां बच्चो के शिक्षा मे सुधार होने पर दुसरे स्कुलो मे भी बैगलैस कि पहल कराने कि बात किए,,,, सरकारी स्कुल में इस प्रकार की व्यवस्था अपने आप में एक मिसाल कायम किया है,,,जो प्रदेश मे अब तक संभवत कही भी लागु नहीं है ,,,जिसे सूरजपुर के प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी ने भी सराहा है,,,और बच्चो के कंधो से बोझ कम कर किताबो के प्रति रुचि बढाने और बेहतर शिक्षा के लिए ऐसे पहल को आने वाले दिनो मे दुसरे स्कुलो मे भी प्रयोग करने कि बात करते नजर आए,,,

Conclusion:जहां छोटे से गांव के सरकारी स्कुल के प्रधानाध्यापक ने एक नया प्रयोग कर सफलता पुर्वक एक बैगलैस स्कुल बना दिया,,,जहां आज बच्चो को पढाई मे काफी सहुलियत हो रही है तो दुसरी ओर बच्चो के कंधो से किताबो के बोझ से निजाद दिलाना सराहनीय कदम है,,,,

बाईट-1--पिंकी राजवाडे,,,छात्रा
बाईट-2-सीमांचल त्रिपाठी,,,,प्रधानाध्यापक,,,
बाईट-3-अजय मिश्रा प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी,,,सूरजपुर


अख्तर अली,,,ईटीव्ही भारत ,,,सूरजपुर
Last Updated : Nov 27, 2019, 2:41 PM IST
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