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surajpur navratri 2022 खोपा धाम में पूजे जाते हैं दानव, बलि की प्रथा आज भी है कायम

surajpur navratri 2022 देश प्रदेश के सभी मंदिरों में भक्तों का ताता लगा है, वहीं सूरजपुर जिले का खोपा धाम जहां एक दानव की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दरबार से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता है. मन्नत पूरी होने पर यहां बकरे, मुर्गे की बलि दी जाती है. साथ ही शराब चढ़ाई जाती है. कैसा है यह धाम और क्या है इसकी मान्यता आइये जानते हैं.

खोपा धाम में पूजे जाते हैं दानव
खोपा धाम में पूजे जाते हैं दानव
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Published : Sep 30, 2022, 12:03 PM IST

Updated : Oct 2, 2022, 1:53 PM IST

सूरजपुर : खोपा धाम में श्रद्धालुओं की भीड़, मन्नत के लिए बांधे गए नारियल और धागे और पूजा पाठ का माहौल, इस स्थान पर किसी देवी देवता की नहीं बल्कि दानव की पूजा हो रही (Demons are worshiped in temple of surajpu) है. इस दानव का नाम है बाकासुर. जिसे स्थानीय लोग दानव देवता के नाम से भी जानते है. इनकी स्थापना खोपा गांव में की गई है इसलिए इस धाम को खोपा धाम भी कहा जाता (surajpur khopa dham) है. यह आसपास के इलाके ही नहीं बल्कि और कई प्रदेशों के भी आस्था का केन्द्र है. यहां लोग अपनी मान्यता लेकर आते हैं और मनचाहा मुराद पाकर जाते हैं.

खोपा धाम में पूजे जाते हैं दानव

बाकासुर दानव की खोपा धाम में पूजा : इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है बताया जाता है कि बाकासुर नाम का दानव खोपा गांव के बगल से गुजरती रेण नदी में रहते थे. गांव के एक बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर वहां गांव के बाहर एक स्थान पर रहने लगे और अपनी पूजा के लिए उन्होंने बैगा जाति के लोगों को ही स्वीकृति प्रदान की.यही वजह है कि यहां पूजा कोई पंडित नहीं बल्कि आदिवासी जनजाति बैगा ही कराते हैं. तब से लेकर आज तक यह स्थल आस्था का केन्द्र बना हुआ है. यहां की पूजा का तरीका भी अलग है. पहले यहां नारियल तेल और सुपाड़ी के साथ पूजा कर अपनी मन्नत मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर यहां बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. इस स्थान में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी. लेकिन अब आधुनिकता में महिलाएं भी भारी संख्या में इस पवित्र स्थल पर जाकर पूजापाठ करती हैं. इस स्थान में पिछले कई सौ सालों से पूजा हो रही है. लेकिन आज तक यहां मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है. इसकी भी अपनी अलग कहानी है.

क्यों नहीं बनाया गया है मंदिर : जानकारों के अनुसार खोपा देवता ने स्थापित होने से पहले ही यह बात कह दी थी मेरा मंदिर ना बनाया जाए ताकि मैं चार दीवारी में कैद होने के बजाए स्वतंत्र रह सकूं.साथ ही इस स्थान की मान्यता है कि यहां का प्रसाद महिलाएं ना ही खा सकती हैं और ना ही प्रसाद को घर ले जाया जा सकता है. पिछले कई सौ वर्षों से यह श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है. यहां हर समय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. छत्तीसगढ़ सहित तमाम प्रदेशों के श्रद्धालु भी यहां अपनी मन्नत मांगने आते हैं. मन्नत पूरी होने पर बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाते हैं.

ये भी पढ़ें -Navratri 2022 नवरात्रि में पारंपरिक व्यंजनों की रेसिपी

श्रद्धालुओं की माने तो इस दर से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता है. यहां के बैगा पूजारी भूत-प्रेत और बुरी साया से बचाने का दावा भी करते हैं. यहां भूत-प्रेत से छुटकारा पाने वाले की भी लंबी लाइन लगी रहती है.पुरानी कहावत है ‘‘मानो तो देव नहीं तो पत्थर’’ यह कहावत खोपा धाम के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है. यहां दानव पर आम लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि इनकी मन मांगी मुरादें पूरी हो रही है. सब मिलकर यह कब कहा जा सकता है की आस्था में इतनी शक्ति होती है कि वह पत्थर में भी जान डाल सकती है.surajpur navratri 2022

सूरजपुर : खोपा धाम में श्रद्धालुओं की भीड़, मन्नत के लिए बांधे गए नारियल और धागे और पूजा पाठ का माहौल, इस स्थान पर किसी देवी देवता की नहीं बल्कि दानव की पूजा हो रही (Demons are worshiped in temple of surajpu) है. इस दानव का नाम है बाकासुर. जिसे स्थानीय लोग दानव देवता के नाम से भी जानते है. इनकी स्थापना खोपा गांव में की गई है इसलिए इस धाम को खोपा धाम भी कहा जाता (surajpur khopa dham) है. यह आसपास के इलाके ही नहीं बल्कि और कई प्रदेशों के भी आस्था का केन्द्र है. यहां लोग अपनी मान्यता लेकर आते हैं और मनचाहा मुराद पाकर जाते हैं.

खोपा धाम में पूजे जाते हैं दानव

बाकासुर दानव की खोपा धाम में पूजा : इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है बताया जाता है कि बाकासुर नाम का दानव खोपा गांव के बगल से गुजरती रेण नदी में रहते थे. गांव के एक बैगा जाति के युवक से प्रसन्न होकर वहां गांव के बाहर एक स्थान पर रहने लगे और अपनी पूजा के लिए उन्होंने बैगा जाति के लोगों को ही स्वीकृति प्रदान की.यही वजह है कि यहां पूजा कोई पंडित नहीं बल्कि आदिवासी जनजाति बैगा ही कराते हैं. तब से लेकर आज तक यह स्थल आस्था का केन्द्र बना हुआ है. यहां की पूजा का तरीका भी अलग है. पहले यहां नारियल तेल और सुपाड़ी के साथ पूजा कर अपनी मन्नत मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर यहां बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है. इस स्थान में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी. लेकिन अब आधुनिकता में महिलाएं भी भारी संख्या में इस पवित्र स्थल पर जाकर पूजापाठ करती हैं. इस स्थान में पिछले कई सौ सालों से पूजा हो रही है. लेकिन आज तक यहां मंदिर का निर्माण नहीं कराया गया है. इसकी भी अपनी अलग कहानी है.

क्यों नहीं बनाया गया है मंदिर : जानकारों के अनुसार खोपा देवता ने स्थापित होने से पहले ही यह बात कह दी थी मेरा मंदिर ना बनाया जाए ताकि मैं चार दीवारी में कैद होने के बजाए स्वतंत्र रह सकूं.साथ ही इस स्थान की मान्यता है कि यहां का प्रसाद महिलाएं ना ही खा सकती हैं और ना ही प्रसाद को घर ले जाया जा सकता है. पिछले कई सौ वर्षों से यह श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है. यहां हर समय श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. छत्तीसगढ़ सहित तमाम प्रदेशों के श्रद्धालु भी यहां अपनी मन्नत मांगने आते हैं. मन्नत पूरी होने पर बकरा, मुर्गा और शराब का प्रसाद चढ़ाते हैं.

ये भी पढ़ें -Navratri 2022 नवरात्रि में पारंपरिक व्यंजनों की रेसिपी

श्रद्धालुओं की माने तो इस दर से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता है. यहां के बैगा पूजारी भूत-प्रेत और बुरी साया से बचाने का दावा भी करते हैं. यहां भूत-प्रेत से छुटकारा पाने वाले की भी लंबी लाइन लगी रहती है.पुरानी कहावत है ‘‘मानो तो देव नहीं तो पत्थर’’ यह कहावत खोपा धाम के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है. यहां दानव पर आम लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि इनकी मन मांगी मुरादें पूरी हो रही है. सब मिलकर यह कब कहा जा सकता है की आस्था में इतनी शक्ति होती है कि वह पत्थर में भी जान डाल सकती है.surajpur navratri 2022

Last Updated : Oct 2, 2022, 1:53 PM IST
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