सूरजपुर: पिलखा पहाड़ से सटे रविंद्रनगर गांव समेत दर्जनभर गांव में शाम ढलते ही खाना और पानी की तलाश में भालू गांव का रुख कर रहे हैं. इसका खामियाजा कभी ग्रामीणों को तो कभी भालुओं को भुगतना पड़ता है.
अब तक शुरू नहीं हुई जामवंत योजना
इस योजना के तहत जंगल में ही भालू के खाने और पानी की व्यवस्था की जानी चाहिए. ऐसे में ग्रामीण और भालूओं के बीच की दूरी भी बनी रहेगी,लेकिन विभाग की अनदेखी के कारण अब तक जामवंत योजना शुरू नहीं हो सकी है. अब भालुओं के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. पूरे मामले में वन विभाग की कार्यशैली पर शुरू से ही सवालिया निशान खड़े किए जा रहे हैं.
भालुओं के अस्तित्व पर खतरा
गांव के लोग भालू के दहशत में जीने को मजबूर हैं, तो दूसरी ओर खाना और पानी के अभाव में भालुओं को रिहायशी इलाके का रुख करना पड़ता है. ऐसे में भालुओ के हमले से कई ग्रामीणों की जान जा चुकी है तो कई घायल हो चुके हैं. इसके चलते ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए कभी भालुओं को नुकसान भी पहुंचा देते है. इसी का नतीजा है कि पिछले 4 सालों में दर्जनभर भालू की संदिग्ध हालत में मौत हुई है. वह भालू के अस्तित्व पर खतरे को बयां कर रही है. ऐसे में स्थानीय लोग भी भालू के अस्तित्व को बचाने के लिए जामवंत योजना की मांग कर चुके हैं.
जब ETV भारत की टीम ने जिले के नए पदस्थ DFO से बात की तब उन्होंने जल्द ही भालू का सर्वे कराकर गणना के बाद शासन स्तर पर जामवंत योजना लागू करने की बात कही.