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जागो सरकार! अस्तित्व खो रहे रियासतकालीन मंदिर, कहीं बन न जाए कहानी

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Published : Oct 10, 2019, 3:32 PM IST

Updated : Oct 10, 2019, 3:38 PM IST

सरगुजा रियासत में बने कई प्राचीन मंदिर प्रशासन की अनदेखी के चलते जर्जर हो रहे हैं. इन धरोहरों को बचाने के लिए स्थानीय लोग चंदा जुटाकर मंदिर की देखभाल कर रहे हैं.

रियासतकालीन मंदिर

सूरजपुर: छत्तीसगढ़ मंदिरों के लिए प्रसिध्द है. यहां हर जिले में मंदिरों की अपनी अलग गाथा सुनने को मिल जाएगी. आस्था के प्रतीक कई मंदिर यहां सदियों से स्थापित हैं. इसी क्रम में सूरजपुर के 11 मंदिर प्राचीन समय से ही अपनी कहानी बयां कर रहे हैं. राजघरानों के लिए मशहूर सरगुजा संभाग में रियासतकालीन कई मंदिर आज भी उन रियासतों की पहचान बयां कर रहे हैं.

पैकेज.

प्रतापपुर में 13वीं शताब्दी के समय राजा लाल बिंदेश्वर प्रसाद सिंह ने नगर में 13 मंदिर बनाए थे, जिसे आज भी दूर-दूर से लोग देखने आते हैं, लेकिन बदलते दौर में मंदिरों की नगरी कहलाने वाला प्रतापपुर से राजमहल के ईंटों का नामोनिशान मिटने लगा है. जहां 13 मंदिर हुआ करते थे, वहीं अब सिर्फ में 11 मंदिर ही रह गए हैं. कई मंदिर रखरखाव के अभाव में खंडित हो गए.

मंदिरों की है अपनी मान्यताएं

नगर स्थित शिव मंदिर में प्राकृतिक रूप से निकलने वाले पानी से सालभर खेती के लिए पानी की आपूर्ति होती है. भैरव मंदिर में शाम होते ही आरती के साथ ही भैरवदेव के वाहक स्वान (कुत्ते) मंदिर में चिल्लाने लगते हैं. मंदिर के पास पक्के तालाब के अंदर कई सुरंग होने की किवदंतिया भी सुनने को मिलती हैं.

मंदिरों की नगरी है प्रतापपुर

अंग्रेजों के शासन काल में प्रतापपुर सरगुजा की राजधानी के नाम से जाना जाता था. प्रतापपुर नगर पंचायत मंदिरों की नगरी के नाम से जाना जाता था.

स्थानीय नागरिक कर रहे मंदिरों की देखरेख

प्राचीन मंदिरों के नाम से विख्यात प्रतापपुर को अपनी पहचान बचाने के लिए प्रशासन की अनदेखी से जुझना पड़ रहा है. मंदिरों की देख-रेख के लिए प्रशासन से कोई अनुदान न मिलने पर स्थानीय लोग साल 1985 से मंदिर समिति बनाकर चंदा इकट्ठा कर मंदिरों के रख रखाव में जुटे हैं. वहीं नगर पंचायत के उपअभियंता ने जानकारी के अभाव की बात कर पक्के तालाब के सौंदर्यीकरण पर उच्च अधिकारियों से चर्चा करने की बात की है.

सूरजपुर: छत्तीसगढ़ मंदिरों के लिए प्रसिध्द है. यहां हर जिले में मंदिरों की अपनी अलग गाथा सुनने को मिल जाएगी. आस्था के प्रतीक कई मंदिर यहां सदियों से स्थापित हैं. इसी क्रम में सूरजपुर के 11 मंदिर प्राचीन समय से ही अपनी कहानी बयां कर रहे हैं. राजघरानों के लिए मशहूर सरगुजा संभाग में रियासतकालीन कई मंदिर आज भी उन रियासतों की पहचान बयां कर रहे हैं.

पैकेज.

प्रतापपुर में 13वीं शताब्दी के समय राजा लाल बिंदेश्वर प्रसाद सिंह ने नगर में 13 मंदिर बनाए थे, जिसे आज भी दूर-दूर से लोग देखने आते हैं, लेकिन बदलते दौर में मंदिरों की नगरी कहलाने वाला प्रतापपुर से राजमहल के ईंटों का नामोनिशान मिटने लगा है. जहां 13 मंदिर हुआ करते थे, वहीं अब सिर्फ में 11 मंदिर ही रह गए हैं. कई मंदिर रखरखाव के अभाव में खंडित हो गए.

मंदिरों की है अपनी मान्यताएं

नगर स्थित शिव मंदिर में प्राकृतिक रूप से निकलने वाले पानी से सालभर खेती के लिए पानी की आपूर्ति होती है. भैरव मंदिर में शाम होते ही आरती के साथ ही भैरवदेव के वाहक स्वान (कुत्ते) मंदिर में चिल्लाने लगते हैं. मंदिर के पास पक्के तालाब के अंदर कई सुरंग होने की किवदंतिया भी सुनने को मिलती हैं.

मंदिरों की नगरी है प्रतापपुर

अंग्रेजों के शासन काल में प्रतापपुर सरगुजा की राजधानी के नाम से जाना जाता था. प्रतापपुर नगर पंचायत मंदिरों की नगरी के नाम से जाना जाता था.

स्थानीय नागरिक कर रहे मंदिरों की देखरेख

प्राचीन मंदिरों के नाम से विख्यात प्रतापपुर को अपनी पहचान बचाने के लिए प्रशासन की अनदेखी से जुझना पड़ रहा है. मंदिरों की देख-रेख के लिए प्रशासन से कोई अनुदान न मिलने पर स्थानीय लोग साल 1985 से मंदिर समिति बनाकर चंदा इकट्ठा कर मंदिरों के रख रखाव में जुटे हैं. वहीं नगर पंचायत के उपअभियंता ने जानकारी के अभाव की बात कर पक्के तालाब के सौंदर्यीकरण पर उच्च अधिकारियों से चर्चा करने की बात की है.

Intro:सूरजपुर जिले में आस्था के रूप में कई प्राचीन मंदिर और स्थल मौजूद है जो हमेशा से ही जिज्ञासा का केंद्र रहता है लेकिन सूरजपुर का प्रतापपुर नगर पंचायत का इतिहास वहां की मौजूद 11 मंदिरे बयां करती हैं लेकिन तेरहवीं शताब्दी कि मंदिरों का प्रशासनिक उदासीनता नगर वासियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है


Body:सरगुजा संभाग तो राजघरानों के नाम से आज भी अस्तित्व में है सरगुजा संभाग का प्राचीन क्षेत्र प्रतापपुर 13वीं शताब्दी में खुद ही एक रियासत हुआ करता था मानता के अनुसार यहां के राजा लाल बिंदेश्वर प्रसाद सिंह ने उसी काल में अपने नगर में 13 मंदिर बनाए जो आज भी आस्था का केंद्र है और सरगुजा समेत कई राज्यों के लोग यहां पूजा के लिए आते हैं बीतते समय के साथ सियासत भी बदलते गया और आधुनिकता के दौर में मंदिरों की नगरी कहलाने वाला प्रतापपुर से राजमहल के ईटों का नामोनिशान मिट गया तो 13 मंदिरों में केवल 11 मंदिर ही रह गई उसमें भी कई मंदिर रखरखाव के अभाव में खंडित होने के दौर पर हैं नगर मैं स्थित कई मंदिर हैं जो मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध हैं जहां नगर का शिव मंदिर से 12 महीने निकलने वाली पानी से दर्जन भर गांव की खेती होती है तो वही नगर के भैरव मंदिर में शाम होते ही आरती के साथ ही भैरव देव के वाहक स्वान( कुत्ते) मंदिर के बाहर पहुंच आरती के समय चिल्लाने लगते हैं तो वही पक्की तालाब के अंदर कई सुरंग होने की कहानियां प्रसिद्ध है प्रतापपुर नगर 13वीं शताब्दी में जहां खुद की विरासत हुआ करता था वही अंग्रेजों के शासन काल में प्रतापपुर सरगुजा स्टेट की राजधानी के नाम से पहचाना जाता था जहां पुराने इतिहास को संजोए प्रतापपुर नगर पंचायत मंदिरों की नगरी के नाम से अपनी पहचान बनाए हुए हैं ऐसे ही मंदिरों के रखरखाव के लिए प्रशासन के पहल ना करने का पर स्थानीय लोगों की 1985 से स्थानीय मंदिर समिति बनाकर चंदा इकट्ठा कर मंदिरों में रख रखाव में जुटे हुए हैं लेकिन प्रशासनिक पहल की आस पर नजरें टिकी हुई है वही नगर पंचायत के नव पदस्थ उप अभियंता ने जानकारी के अभाव की बात कर पक्की तलाब के सुंदरीकरण पर उच्च अधिकारियों से चर्चा करने की बात की


Conclusion:बाहरहाल पर्यटन के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने वाले शासन प्रशासन के इतिहास को सुलझाए प्रतापपुर नगर के मंदिरों पर बनी उदासीनता समझ से परे हैं लेकिन लोगों की आस्था प्रतापपुर नगर के मंदिरों के लिए आज भी बेहद है

बाईट - अभिषेक कुमार ,,,उप अभियंता नगर पंचायत प्रतापपुर
बाईट - पंडित दीपक दुबे,,, पुजारी
बाईट - कंचन सोनी ,,,,अध्यक्ष स्थानीय मंदिर समिति
बाईट - अजीत शरण सिंह,,,, स्थानी नेता
Last Updated : Oct 10, 2019, 3:38 PM IST
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