सुकमा: पुल निर्माण नहीं होने की वजह से आस-पास के दर्जनों गांव स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. ग्रामीणों की मांग पर प्रशासन ने नदी पर पुल बनाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन इसे नक्सलियों की काली नजर लग गई.
मार्च के महीने में नक्सलियों ने पुल निर्माण में लगी कंपनी को निशाना बनाते हुए मौके पर मौजूद कई वाहन और मशीनों को आग के हवाले कर दिया और उस दिन जो काम बंद हुआ वो आज तक शुरू नहीं हो सका है.
पांच किलोमीटर का करना पड़ता है सफर
चितलनार ग्राम पंचायत में कुल आठ गांव आते हैं और यहां की कुल जनसंख्या ढाई हजार के करीब है. ग्रामीणों को रोजमर्रा की वस्तुओं को जुटाने के लिए पांच किलोमीटर दूर मौजूद पुसपाल जाना पड़ता है. सामान्य दिनों में तो ग्रामीण नदी पार कर किसी तरह से अपने दैनिक उपयोग का सामान ले आते हैं, लेकिन बरसात में हालात बिगड़ जाते हैं.
बदतर हो जाते हैं हालत
बाकी महीनों में तो ग्रामीण किसी तरह से रोजमर्रा का सामान जुटा लेते हैं, लेकिन बरसात में नदी में बाढ़ आ जाती है और हालात बद से बदतर हो जाते हैं. ग्रामीणों को इस दौरान क्या-क्या मुसीबत झेलनी पड़ती है ETV भारत की टीम ने इसका जायजा लिया. इस दौरान ग्रामीण ने बताया कि पुल नहीं होने की वजह से बरसात के तीन महीने इलाके का संपर्क बाहरी दुनिया से कट जाता है.
गांव में नहीं है बुनियादी सुविधाएं
ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों को केवल पुल के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है. गांव की बुनियादी सुविधाओं का हाल भी कमोवेश ऐसा ही है. यहां चल रही सरकार की हर योजना अधूरी है और जनप्रतिनिधि तो मानों कान में तेल डालकर बैठे हों.
कलेक्टर ने दिया आश्वासन
कलेक्टर का कहना है कि बारिश के बाद पुल निर्माण का अधूरा पड़ा काम दोबारा शुरू किया जाएगा. लेकिन सवाल यह उठता है कि जो प्रशासन बरसात के बाद काम शुरू कराने की बात कह रहा है, उसके इस ओर पहले कदम क्यों नहीं उठाया. अगर प्रशासन ने पहले इस ओर ध्यान दिया होता तो शायद आज ग्रमीणों को अपनी जान जोखिम में न डालनी पड़ती.