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सुकमा: नक्सलियों ने रोका था पुल का निर्माण, 8 गांव के लोग जान जोखिम में डाल करते हैं नदी पार

छिंदगढ़ विकासखंड के चिंतलनार ग्राम पंचायत से सटकर बहने वाली नदी चक्का बुक्क पर हो रहा पुल का निर्माण पिछले कई साल से चल रहा है लेकिन आज तक वो पूरा नहीं हो पाया है.

जान जोखिम में डाल करते हैं नदी पार
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Published : Jul 25, 2019, 12:00 AM IST

सुकमा: पुल निर्माण नहीं होने की वजह से आस-पास के दर्जनों गांव स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. ग्रामीणों की मांग पर प्रशासन ने नदी पर पुल बनाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन इसे नक्सलियों की काली नजर लग गई.

स्टोरी पैकेज

मार्च के महीने में नक्सलियों ने पुल निर्माण में लगी कंपनी को निशाना बनाते हुए मौके पर मौजूद कई वाहन और मशीनों को आग के हवाले कर दिया और उस दिन जो काम बंद हुआ वो आज तक शुरू नहीं हो सका है.

पांच किलोमीटर का करना पड़ता है सफर
चितलनार ग्राम पंचायत में कुल आठ गांव आते हैं और यहां की कुल जनसंख्या ढाई हजार के करीब है. ग्रामीणों को रोजमर्रा की वस्तुओं को जुटाने के लिए पांच किलोमीटर दूर मौजूद पुसपाल जाना पड़ता है. सामान्य दिनों में तो ग्रामीण नदी पार कर किसी तरह से अपने दैनिक उपयोग का सामान ले आते हैं, लेकिन बरसात में हालात बिगड़ जाते हैं.

बदतर हो जाते हैं हालत
बाकी महीनों में तो ग्रामीण किसी तरह से रोजमर्रा का सामान जुटा लेते हैं, लेकिन बरसात में नदी में बाढ़ आ जाती है और हालात बद से बदतर हो जाते हैं. ग्रामीणों को इस दौरान क्या-क्या मुसीबत झेलनी पड़ती है ETV भारत की टीम ने इसका जायजा लिया. इस दौरान ग्रामीण ने बताया कि पुल नहीं होने की वजह से बरसात के तीन महीने इलाके का संपर्क बाहरी दुनिया से कट जाता है.

गांव में नहीं है बुनियादी सुविधाएं
ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों को केवल पुल के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है. गांव की बुनियादी सुविधाओं का हाल भी कमोवेश ऐसा ही है. यहां चल रही सरकार की हर योजना अधूरी है और जनप्रतिनिधि तो मानों कान में तेल डालकर बैठे हों.

कलेक्टर ने दिया आश्वासन
कलेक्टर का कहना है कि बारिश के बाद पुल निर्माण का अधूरा पड़ा काम दोबारा शुरू किया जाएगा. लेकिन सवाल यह उठता है कि जो प्रशासन बरसात के बाद काम शुरू कराने की बात कह रहा है, उसके इस ओर पहले कदम क्यों नहीं उठाया. अगर प्रशासन ने पहले इस ओर ध्यान दिया होता तो शायद आज ग्रमीणों को अपनी जान जोखिम में न डालनी पड़ती.

सुकमा: पुल निर्माण नहीं होने की वजह से आस-पास के दर्जनों गांव स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. ग्रामीणों की मांग पर प्रशासन ने नदी पर पुल बनाने की अनुमति तो दे दी, लेकिन इसे नक्सलियों की काली नजर लग गई.

स्टोरी पैकेज

मार्च के महीने में नक्सलियों ने पुल निर्माण में लगी कंपनी को निशाना बनाते हुए मौके पर मौजूद कई वाहन और मशीनों को आग के हवाले कर दिया और उस दिन जो काम बंद हुआ वो आज तक शुरू नहीं हो सका है.

पांच किलोमीटर का करना पड़ता है सफर
चितलनार ग्राम पंचायत में कुल आठ गांव आते हैं और यहां की कुल जनसंख्या ढाई हजार के करीब है. ग्रामीणों को रोजमर्रा की वस्तुओं को जुटाने के लिए पांच किलोमीटर दूर मौजूद पुसपाल जाना पड़ता है. सामान्य दिनों में तो ग्रामीण नदी पार कर किसी तरह से अपने दैनिक उपयोग का सामान ले आते हैं, लेकिन बरसात में हालात बिगड़ जाते हैं.

बदतर हो जाते हैं हालत
बाकी महीनों में तो ग्रामीण किसी तरह से रोजमर्रा का सामान जुटा लेते हैं, लेकिन बरसात में नदी में बाढ़ आ जाती है और हालात बद से बदतर हो जाते हैं. ग्रामीणों को इस दौरान क्या-क्या मुसीबत झेलनी पड़ती है ETV भारत की टीम ने इसका जायजा लिया. इस दौरान ग्रामीण ने बताया कि पुल नहीं होने की वजह से बरसात के तीन महीने इलाके का संपर्क बाहरी दुनिया से कट जाता है.

गांव में नहीं है बुनियादी सुविधाएं
ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों को केवल पुल के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है. गांव की बुनियादी सुविधाओं का हाल भी कमोवेश ऐसा ही है. यहां चल रही सरकार की हर योजना अधूरी है और जनप्रतिनिधि तो मानों कान में तेल डालकर बैठे हों.

कलेक्टर ने दिया आश्वासन
कलेक्टर का कहना है कि बारिश के बाद पुल निर्माण का अधूरा पड़ा काम दोबारा शुरू किया जाएगा. लेकिन सवाल यह उठता है कि जो प्रशासन बरसात के बाद काम शुरू कराने की बात कह रहा है, उसके इस ओर पहले कदम क्यों नहीं उठाया. अगर प्रशासन ने पहले इस ओर ध्यान दिया होता तो शायद आज ग्रमीणों को अपनी जान जोखिम में न डालनी पड़ती.

Intro:नक्सलियों ने लगाया पुल निर्माण पर रोक, इस वर्ष भी बारिश के तीन माह देश—दुनिया से कट जायेगा जिले का यह गांव... जान जोखिम में डाल करना होगा नदी पार....

सुकमा. माओवाद प्रभावित सुकमा जिला में मूलभूत सुविधायें अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना दूर की कौड़ी साबित हो रही है। आज भी दर्जनों गांव स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के मोहताज हैे। सरकारी तंत्र उन इलाकों तक पहुंचने मेंं नाकाम साबित हो रहा है। ऐसा नहीं है कि प्रशासन इन इलाकों में विकास नहीं करना चाहता लेकिन जिले में चार दशक से हावी माओवाद की समस्या ने शासकीय योजनाओं पर ग्रहण लगा दिया है।

छिंदगढ़ विकासखण्ड के चिंतलनार ग्राम पंचायत के ग्रामीण पिछले कई वर्षों से बुनियादी सुविधाओं के मोहताज हैं। लंबे समय से यहां के लोग गांव के पास बहने वाली नदी चक्का—बुक्क पर पुल की मांग करते आये हैं। शासन ने भी गांव वालों की मांग पर उक्त नदी पर करोड़ों की लागत से पुल की स्वीकृति दी लेकिन माओवादियों की काली नजर ने भी इस बहुप्रतिक्षित पुल पर ग्रहण लगा दिया है। मार्च महिने में माओवादियों ने पुल के निर्माण में खलल डालते हुए मशीनों में आगजनी कर दिया। इसके बाद से दुबारा पुल का काम शुरू नहीं हो सका। नदी पर पुल नहीं बनने के कारण गांव में शासकीय योजनायें नहीं पहुंच पा रही है।

Body:बारिश में जान जोखिम में डाल करते हैं नदी पार...
माओवाद प्रभावित चितलनार ग्राम पंचायत में कुल 8 गांव आते हैं। यहां की कुल जनसंख्या ढाई हाजार के करीब हैे। चितलनार ग्राम पंचायत की सीमा पर चक्का—बुक्क नदी बहती है। सामान्य दिनों में ग्रामीण नदी पार कर किसी तरह अपनी दैनिक उपयोगी सामान की व्यवस्था कर लेते हैं लेकिन बारिश के दिनों में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैे। बारिश में जलस्तर बढ़ जाता है। बावजूद इसके ग्रामीण जान जोखिम में डालकर स्वास्थ्य व राशन के लिए पांच किमी दूर पुसपाल जाते हैं।

पुल बन जाये तो ढाई हाजार लोगों की संवर जायेगी जिंदगी...
बारिश के दिनों में चितलनार गांव के बाशिंदे किस तरह की जिंदगी जीते हैं। इसे जानने ईटीवी भारत की टीम नदी पार कर गांव पहुंची। ईटीवी भारत की टीम ने चितलनार गांव की लाईव रिर्पोटिंग की। ग्रामीण जान जोखिम में डाल नदी पर करते दिखे। ग्रामीण बुधरू अपनी दो वर्षीय बेटी का इलाज कर पत्नी कें साथ गांव लौट रहा था। उससे पूछा की बारिश के दिनों में जब नदी उफान पर रहती है तो वे क्या करते हैं। उसने बताया कि तीन महिने तक वे गांव सेे बाहर नहीं जाते हैें। आपातकालिन स्थिति में नाव के सहारे नदी पार करते हैं। इस दौरान डूबने का डर बना रहता है।

गांव में संचालित प्राथमिक शाला एवं माध्यमिक शाला में पदस्थ शिक्षक संत कुमार उईके और भुपेन्द्र नेताम ने बताया कि पहाड़ी इलाका होने की वजह से हल्की बारिश में ही नदी उफान पर आ जाती है। कई बार ऐसा होता है कि स्कूल जाते वक्त नदी का जलस्तर घुटनो तक रहता है तो वापसी में छाती से उपर नदी बहने लगती है। नदी में बाढ़ की स्थिति में उन्हें तीन से चार दिन गांव में ही गुजारना पड़ता है, या फिर स्कूलें ही बंद करनी पड़ती है। उन्होने बताया कि चितलनार गांव को मुख्यधार से जोड़ने के लिए नदी पर पुल की बेहद जरूरत है।

Conclusion:न सड़क, न पीएम आवास, शौचालय भी है अधूरे...
शासन की हर योजना यहां अधूरी हैे। पंचायत के जनप्रतिनिधी व जिम्मेदारों को भी जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। डेढ़ साल से पंचायत के किसी भी गांव में न सड़क है और न हीं पीएम आवास बने है। ढाई हजार की जनसंख्या वाले गांव में महज एक दर्जन ही शौचालय पूर्ण है। गांव के घेनवा राम नाग बाताते हैं कि गांव में अधिकांश घरों में शौचालय नहीं बने हैं। तीन साल से शौचालय अधूरे पड़े हैं। न सचिव ध्यान देता है और न ही सरपंच। नदी पर पुल नहीं होने की वजह से गांव तक जिला स्तर का अधिकारी भी नहीं आते हैं। जिसके चलते पंचायत के जिम्मेदारों के हौंसले बुलंद है।

कलेक्टर चंदन कुमार ने कहा कि बारिश के बाद पुल का काम शुरू किया जाएगा। वर्तमान में कुछ कारणों से निर्माण कार्य बन्द है। शासन अंतिम व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने ही प्राथमिकता है।

बाइट : चंदन कुमार, सुकमा कलेक्टर

मोजो से शॉट्स और बाइट भेजा है:

बाइट 01: चक्रधर, ( काला शर्ट, पीछे अधूरा मकान)

बाइट 02 : घेनवा राम नाग ( टीशर्ट, पीछे अधूरा शौचालय)

बाइट 03 : बुधरा( लाल गमछा )

बाइट 04 : भूपेंद्र नेताम( ग्रे कलर शर्ट)

बाइट 05 : संतराम उइके( गुलाबी शर्ट)
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