सुकमा: वो पुलिस के सामने गुहार लगाता रहा कि उसका नक्सल संगठन से कोई वास्ता नहीं है. वह अपनी बीमार पत्नी और बच्चों की दुहाई देता रहा. पुलिस के सामने गिड़गिड़ाते कहता रहा कि उसका नक्सलियों से कोई कनेक्शन नहीं. लेकिन पुलिस ने उसकी एक न सुनी. बिना जांच पड़ताल किए निर्दोष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. मामला सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित गांव मिनपा का है. जहां पुलिस की चूक से 42 वर्षीय पोड़ियाम भीमा को निर्दोष होते हुए भी बेवजह 9 माह जेल में काटने पड़े. पुलिस ने स्थायी गिरफ्तारी वारंट तामील कराने के चक्कर में एक जैसे नाम पर निर्दोष को जेल भेजा दिया. मामले का खुलासा तब हुआ जब प्रकरण के मूल आरोपी खुद ही कोर्ट पहुंचकर सरेंडर कर दिया. (Sukma innocent tribal go to jailed )
9 माह बाद कोर्ट ने जेल में बंद ग्रामीण को निर्दोष पाया और उसे रिहा कर दिया. इस मामले में कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक सुकमा को दोषियों के खिलाफ लापरवाही के मामले में अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के निर्देश दिये हैं. ग्राम मिनपा निवासी पोड़ियाम भीमा को चिंतागुफा पुलिस ने 5 जुलाई 2021 को गिरफ्तार किया था. (Court order to Sukma Superintendent of Police )
क्या है मामला: प्रकरण क्रमांक 135/2016 के तहत मिनपा निवासी कुंजाम देवा, कवासी हिड़मा, करटम दुला, पोड़ियाम कोसा, पोड़ियाम जोगा, पोड़ियाम भीमा और कवासी हिड़मा पर आरोप है कि 28 अक्टूबर 2014 को ग्राम रामाराम स्थित बड़े तालाब के पास सुरक्षाकर्मियों की हत्या करने की मंशा से फायरिंग किया गया. मामले में चिंतागुफा थाने में सभी आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया. 28 जनवरी 2016 को चिंतागुफा पुलिस ने सभी आरोपियोंं को गिरफ्तार कर न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुकमा के समक्ष प्रस्तुत किया. कोर्ट ने सभी आरोपियों को निर्दोष मानते हुए 29 जनवरी 2016 को जमानत पर मुक्त कर दिया. जमानत पर रिहा होने के बाद लंबे समय तक आरोपियों ने कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई. नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से वे पेशी में हाजिर नहीं हो सके. अभियुक्तगण के द्वारा न्यायालय में उपस्थित नहीं होने पर 4 फरवरी 2021 को अभियुक्त कुंजाम देवा, कवासी हिड़मा, करटम दुला, पोड़ियाम कोसा, पोड़ियाम जोगा, कवासी हिड़मा और पोड़ियाम भीमा के खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया. (Negligence of police department in Sukma )
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ऐसे हुआ खुलासा: दंतेवाड़ा न्यायालय की तरफ से मिनपा निवासी कुंजाम देवा समेत 7 अभियुक्तोंं के खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था. जिसमें पोड़ियाम भीमा भी शामिल है. स्थायी गिरफ्तारी वारंट के परिपालन में पुलिस ने ग्राम मिनपा के ही पोड़ियाम भीमा को 5 जुलाई 2021 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जेल भेजने से पहले पुलिस ने गिरफ्तारी पत्रक की ठीक से तस्दीक नहीं की. 3 मार्च 2022 को प्रकरण क्रमांक 135/2016 का मूल आरोपी पोड़ियाम भीमा निवासी पदीपारा मिनपा अपने अन्य 6 साथियों के साथ दंतेवाड़ा न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया. अपर सत्र न्यायाधीश (नक्सल कोर्ट) कमलेश कुमार जुर्री ने न्यायालय के समक्ष सरेंडर आरोपी का गिरफ्तारी पत्रक में उल्लेखित पहचान चिन्ह का मिलान किया. जिसमेंं दाहिने सीने में तिल एवं पीठ में चोट के निशान देखा गया, जो गिरफ्तारी पत्रक से मिलान हो रही थी.
छत्तीसगढ़ के कमजोर पुलिस तंत्र की मिली सजा: सुकमा जिले के मिनपा गांव के 42 साल के पोड़ियाम भीमा की कहानी छत्तीसगढ़ के पुलिसिया तंत्र की हर खामी को बयान करती है. पुलिस की एक छोटी सी चूक ने पोड़ियाम भीमा और उसके परिवार को आर्थिक और मानसिक रूप से कमजोर कर दिया. पोड़ियाम भीमा ने बताया कि वनोपज और खेतीबाड़ी कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है. घर में पत्नी के बीमार होने की वजह से दो बच्चों की देखरेख भी उसकी जिम्मेदारी है. 2 जुलाई 2021 को शाम करीब 6 बजे मिनपा में खुले नये कैंप से कुछ सीआरपीएफ जवानों के साथ पुलिस उसके घर पहुंची. बीना कुछ कहे जिस हाल में था वैसे ही उसे उठा ले गई. कैंप पहुंचने के बाद उससे उसका नाम और पता पूछा गया. पूछताछ के दौरान पुलिस जवानों ने नक्सलियों का साथ देने का आरोप लगाते हुए उसके साथ मारपीट की. तब पता चला कि पुलिस उसे नक्सली समझ रही है. इसके बाद उसे चिंतागुफा लाया गया. यहां से दंतेवाड़ा कोर्ट में पेशकर जेल भेज दिया गया. इधर पोड़ियाम भीमा के जेल चले जाने के बाद परिजनों का बुरा हाल हो गया. आर्थिक तंगी के साथ मानसिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी.
प्रकरण क्रमांक 135/2016 के अधिवक्ता बिचेम पोंदी ने बताया कि "ग्रामीण आदिवासी शिक्षा के अभाव में कानून की जानकारी नहीं रखते हैं. इस कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बचाव नहीं कर पाते हैं. वहीं दूसरी ओर हर गांव में एक नाम व सरनेम के एक से अधिक व्यक्ति होते हैं. ऐसे में किसी अपराध में गिरफ्तार कर जेल भेजने के पहले पुलिस अधिकारी को बारीकी से उसका तस्दीक करना चाहिए. जांच अधिकारी के लापरवाही का परिणाम पोडियम भीमा लगभग एक वर्ष तक निर्दोष होकर भी जेल में भुगता है. यह तब पता चला जब इसी नाम का मूल आरोपी ने कोर्ट के सामने सरेंडर किया. जिसके बाद बिना वजह से जेल में भुगत रहे निर्दोष पोडियम भीमा को तत्काल रिहा किया गया है. जांच अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई कर कोर्ट को अवगत कराने का आदेश पुलिस अधीक्षक सुकमा को दिया गया है.