सुकमा: जिस सड़क को मौत के साए में बनाया गया था, जिस रोड की सुरक्षा में दिन रात तैनात रहते थे जवान. जिस रास्ते के सहारे तत्कालीन सरकार ने किया था अपना बखान, पहली ही बरसात में निकल गई उसकी जान. ये तस्वीरें छिंदगढ़ ब्लॉक के कुन्ना को कुंदनपाल से जोड़ने वाली सड़क की है. ग्यारह किलोमीटर इस सड़क को मूर्त रूप देने में पांच करोड़ से ज्यादा का खर्च आया था.
पहली ही बरसात में सड़क का हाल कुछ ऐसा हो गया कि, इससे बड़ी गाड़ी नहीं जा सकती. ग्रामीणों ने बताया, जून की पहली बारिश में ही सड़क खराब होने लगी थी. सड़क में गड्ढे हुए तो ठेकेदार ने सीमेंट कंक्रीट से भर दिया. लेकिन वह भी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी और धीरे-धीरे सड़क उखड़ने लगी.
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22 प्रतिशत अधिक दर में लिया सड़क का काम
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) सड़क से कुंदन पाल होते हुए कुन्ना तक 10.88 किलोमीटर सड़क तीन पार्ट में एक ही कंस्ट्रक्शन कंपनी मैसर्स जाकिर हुसैन ने बनाई गई थी. शुरुआत में सड़क की लागत 5 करोड़ 73 लाख थी. लेकिन ठेकेदार की लागत से 22 फीसदी ज्यादा दर पर सड़क का काम मिला था. वहीं जिम्मेदार कंस्ट्रक्शन कंपनी को लगभग चार करोड़ रुपए का भुगतान करने की बात कह रहे हैं.
ग्रामीणों में भारी नाराजगी
सड़क के खराब होने से ग्रामीणों में भारी नाराजगी है. ग्रामीण बताते हैं कि वो पिछले कई साल से गांव में पक्की सड़क की मांग कर रहे हैं. साल 2017 में समाधान शिविर के दौरान कुंदनपाल पहुंचे तत्कालीन कलेक्टर जय प्रकाश मौर्य से भी ग्रामीणों ने सड़क निर्माण कराने की गुहार लगाई थी. कलेक्टर ने ग्रामीणों को सड़क बनाने का आश्वासन भी दिया, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने घोषणा करते हुए केंद्रीय विशेष सहायता फंड से करोड़ों रूपए की स्वीकृति दी थी.
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पुलिस जवानों ने जान पर खेलकर दी थी सुरक्षा
तत्कालीन सीएम की घोषणा के बाद सड़क का निर्माण कराना प्रशासन के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. चूंकि सड़क धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आती है. कुन्ना में फोर्स का कैंप खोला गया, तब कहीं जाकर सड़क बनने की उम्मीद जगी थी. सड़क निर्माण के दौरान डीआरजी के जवान ने सुरक्षा दिया और लंबे इंतजार के बाद कुंदनपाल और कुन्ना के बीच सड़क बनकर तैयार हुई थी.
जवानों की मेहनत पर फिरा पानी
जिले का 90 प्रतिशत इलाका नक्सल प्रभावित है. पिछले चार दशकों से नक्सलवाद के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी सुविधा लोगों तक नहीं पहुंच पाती है. ऐसे में जवान अपनी जान जोखिम में डालकर बनाई जा रही सड़कें चंद महीनों में उखड़ती जा रही हैं. कलेक्टर ने इस मामले में जांच की बात कही है. अब सवाल यह उठता है कि क्या उखड़ी हुई सड़क की मरम्मत के लिए दोबारा जवानों की जान दांव पर लगाई जाएगी?
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बोर्ड पर भी अधूरी जानकारी
करोड़ों की लागत से बनी सड़क की जानकारी देने के लिए कार्यस्थल पर लगाए गए बोर्ड में आधी अधूरी जानकारी है. बोर्ड में ठेकेदार ने सिर्फ निर्माण एजेंसी, योजना, कार्य का नाम, लागत, अनुबंध क्रमांक लिखा है. इनमें न कार्य प्रारंभ की तिथि लिखी हुई है और ना ही पूर्णता की तिथि. सड़क की लंबाई के अलावा सड़क से जुड़ी तकनीकी जानकारी का भी उल्लेख बोर्ड में नहीं है.
'सड़क अभी अधूरी है'
कलेक्टर चंदन कुमार ने इस पूरे मामले की जांच कराने की बात कही है. उन्होंने बताया कि सड़क की शिकायत के बाद टेक्निकल टीम को भेजा है. कलेक्टर ने बताया कि दो-तीन जगहों पर सड़क उखड़ गई है. उन्होंने बताया कि अभी सड़क का काम पूरा नहीं हुआ है. 400 मीटर का काम बचा है. सड़क में टेक्निकल खामियां है तो संबधित निर्माण एजेंसी को निर्देशित किया है कि वो समय रहते सुधार कर ले.