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SPECIAL: कुपोषण से कैसे मुक्त होगा छत्तीसगढ़, किराये के मकान में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्र - सरकार छत्तीसगढ़

कुपोषण से मुक्ति दिलाने के महिला एवं बाल विकास भले ही लाख दावा कर ले, लेकिन आंगनबाड़ियों की समस्याओं को देखकर लगता है कुपोषण के खिलाफ सरकार कैसे जंग जीतेगी. आंगनबाड़ियों के हालात बद से बदतर नजर आ रहे हैं, कहीं भवन नहीं है, तो कहीं भवन जर्जर हैं.

कुपोषण से कैसे मुक्त होगा छत्तीसगढ़
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Published : Nov 4, 2019, 12:01 AM IST

Updated : Nov 4, 2019, 12:08 AM IST

सुकमा: सरकार छत्तीसगढ़ को कुपोषण से मुक्त करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. कुपोषित बच्चों को अंडे बांटे जा रहे हैं, पौष्टिक आहार दिया जा रहा है, लेकिन सुकमा जिले में हालात इसके बिल्कुल विपरीत है. सरकार के सभी दावें यहां खोखले साबित हो रहे हैं. सुकमा जिले के कोट्ठीगोड़ा, श्रीनगर और बंगाली पारा में किराये के मकानों में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं.

कुपोषण से कैसे मुक्त होगा छत्तीसगढ़

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संतुला बघेल का कहना है कि आंगनबाड़ी भवन पिछले कई वर्षों से जर्जर है. छत से प्लास्टर टूटकर गिरने लगा है. बारिश के मौसम में यहां हालात और बद से बदत्तर हो जाते हैं. आंगनबाड़ी केंद्र में पानी भर जाता है. श्रीनगर स्थित आंगनबाड़ी भवन निर्माण के कुछ ही महीनों में जर्जर हो गया. उसके बाद से आंगनबाड़ी लगाने के लिए कार्यकर्ता को दर-दर भटकना पड़ रहा है.

भवन अधूरा एक कमरे में लग रहे दो आंगनबाड़ी
कलेक्ट्रेट के पीछे वर्ष 2012 से कुमारास नंबर दो बंगाली पारा में आंगनवाड़ी भवन निर्माणाधीन है. भवन अधूरा होने की वजह से केंद्र को पास के आंगनबाड़ी भवन में लगाया जा रहा है. यहां की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निर्मला सोडी ने बताया कि एक साथ दो केंद्रों के संचालन में बहुत परेशानी आती है, दो केंद्रों में कुल 25 बच्चे एक साथ बैठते हैं.

आंगनबाड़ियों में बच्चों की उपस्थिति में आई कमी
जिला मुख्यालय में संचालित कुल आंगनवाड़ी केंद्र 26 हैं. इन आंगनबाड़ी केंद्रों में कुल 1166 बच्चे दर्ज हैं. विभागीय आंकड़ों के अनुसार 19 केंद्रों को पूर्ण बताया जा रहा है. इन केंद्रों को किराए के मकान में या फिर सहायिका के घर संचालित किया जा रहा है. आंगनबाड़ियों में फैली अव्यवस्था के कारण केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति में भारी कमी आई है. प्रति आंगनबाड़ी केंद्र में जहां 15 से 20 बच्चों की संख्या है तो वही वर्तमान में 5 से 6 रह गई है. आंगनबाड़ियों में निर्मित समस्याओं को देखते हुए पालकों ने भी बच्चों को केंद्र भेजना बंद कर दिया है.

प्रशासन की लापरवाही से पिस रहे मासूम
बहरहाल, बदइंतजामी और करप्शन का दीमक यहां के निवासियों के हक पर डाका डाल रहा है, जिसकी वजह से मासूम बच्चों से लेकर गर्भवती महिलाओं को उनके हक की सुविधाएं नहीं मिल पा रही है, जिससे जिले के तकरीबन 212 आंगनबाड़ी केंद्र भगवान भरोसे खुले आसमान के नीचे संचालित हो रहे हैं, जो विकास का दावा करने वाली सरकार के लिए बड़ा सवाल है. ऐसे में कुपोषण से मुक्ति के खिलाफ जंग कैसे जीती जा सकती है.

सुकमा: सरकार छत्तीसगढ़ को कुपोषण से मुक्त करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. कुपोषित बच्चों को अंडे बांटे जा रहे हैं, पौष्टिक आहार दिया जा रहा है, लेकिन सुकमा जिले में हालात इसके बिल्कुल विपरीत है. सरकार के सभी दावें यहां खोखले साबित हो रहे हैं. सुकमा जिले के कोट्ठीगोड़ा, श्रीनगर और बंगाली पारा में किराये के मकानों में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं.

कुपोषण से कैसे मुक्त होगा छत्तीसगढ़

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संतुला बघेल का कहना है कि आंगनबाड़ी भवन पिछले कई वर्षों से जर्जर है. छत से प्लास्टर टूटकर गिरने लगा है. बारिश के मौसम में यहां हालात और बद से बदत्तर हो जाते हैं. आंगनबाड़ी केंद्र में पानी भर जाता है. श्रीनगर स्थित आंगनबाड़ी भवन निर्माण के कुछ ही महीनों में जर्जर हो गया. उसके बाद से आंगनबाड़ी लगाने के लिए कार्यकर्ता को दर-दर भटकना पड़ रहा है.

भवन अधूरा एक कमरे में लग रहे दो आंगनबाड़ी
कलेक्ट्रेट के पीछे वर्ष 2012 से कुमारास नंबर दो बंगाली पारा में आंगनवाड़ी भवन निर्माणाधीन है. भवन अधूरा होने की वजह से केंद्र को पास के आंगनबाड़ी भवन में लगाया जा रहा है. यहां की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निर्मला सोडी ने बताया कि एक साथ दो केंद्रों के संचालन में बहुत परेशानी आती है, दो केंद्रों में कुल 25 बच्चे एक साथ बैठते हैं.

आंगनबाड़ियों में बच्चों की उपस्थिति में आई कमी
जिला मुख्यालय में संचालित कुल आंगनवाड़ी केंद्र 26 हैं. इन आंगनबाड़ी केंद्रों में कुल 1166 बच्चे दर्ज हैं. विभागीय आंकड़ों के अनुसार 19 केंद्रों को पूर्ण बताया जा रहा है. इन केंद्रों को किराए के मकान में या फिर सहायिका के घर संचालित किया जा रहा है. आंगनबाड़ियों में फैली अव्यवस्था के कारण केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति में भारी कमी आई है. प्रति आंगनबाड़ी केंद्र में जहां 15 से 20 बच्चों की संख्या है तो वही वर्तमान में 5 से 6 रह गई है. आंगनबाड़ियों में निर्मित समस्याओं को देखते हुए पालकों ने भी बच्चों को केंद्र भेजना बंद कर दिया है.

प्रशासन की लापरवाही से पिस रहे मासूम
बहरहाल, बदइंतजामी और करप्शन का दीमक यहां के निवासियों के हक पर डाका डाल रहा है, जिसकी वजह से मासूम बच्चों से लेकर गर्भवती महिलाओं को उनके हक की सुविधाएं नहीं मिल पा रही है, जिससे जिले के तकरीबन 212 आंगनबाड़ी केंद्र भगवान भरोसे खुले आसमान के नीचे संचालित हो रहे हैं, जो विकास का दावा करने वाली सरकार के लिए बड़ा सवाल है. ऐसे में कुपोषण से मुक्ति के खिलाफ जंग कैसे जीती जा सकती है.

Intro:सरकार, ऐसे कैसे दूर होगा कुपोषण.... जब जिला मुख्यालय का ही है ऐसा हाल

सुकमा. कुपोषण से मुक्ति दिलाने के महिला एवं बाल विकास विभाग के दावे बेमानी साबित हो रहे हैं. विभाग भले ही दवा कर ले कि कुपोषण के खिलाफ उनकी जंग बदस्तूर जारी है. लेकिन आंगनबाड़ियों में निर्मित समस्याओं से तो ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा है.

बस्तर का सुकमा जिला नक्सलवाद से ग्रस्त है विपरीत परिस्थितियों में काम करने वाले मैदानी कर्मचारियों के लिए उन इलाकों तक शासन की योजनाओं को पहुंचाना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन जब जिला मुख्यालय में ही संचालित केंद्र समस्याओं से ग्रस्त हैं तो दोष किसे दिया जाए.

कुपोषण खिलाफ चल रहे अभियान की जमीनी हकीकत को ईटीवी भारत ने लगातार दिखाया है अंदरूनी इलाकों में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों के भवन कई वर्षों से अधूरे हैं पहुंच विन होने की वजह से भी अभियान धरातल तक नहीं पहुंच पा रहा है लेकिन जब हमने जिला मुख्यालय में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों का जायजा लिया तो यहां अभी विभाग की लापरवाही और उदासीनता नजर आई वाहवाही लूटने के लिए बंद कमरों में बैठकर अधिकारियों ने योजनाएं तो बना दिए लेकिन उसका क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर करना भूल गए.






Body:मुख्यालय में ऐसे हैं आंगनबाड़ियों के हालात...
नौनिहालों को पोषण आहार और उचित संस्कार देकर भविष्य की नीव को सुदृढ़ बनाने के नाम पर सरकार आंगनबाड़ियों का संचालन तो कर रही है पर उनमें सुविधाएं देना भूल गई हैं. अव्यवस्थाओं व आसुविधाओं के बीच चल रहे आंगनबाड़ियों से विभाग सुपोषण की उम्मीद कर रहा है. सुकमा जिला मुख्यालय में संचालित अधिकांश आंगनबाड़ी केंद्र जर्जर हो गए हैं. बारिश में आंगनबाड़ी केंद्र लगाना बहुत मुश्किल हो गया है. हालत इतनी दयनीय हो गए हैं कि नौनिहालों को बैठने के लिए भी केंद्र में जगह नहीं है. बच्चों के लिए यहां ना तो टॉयलेट है और ना ही पीने का स्वच्छ पानी. हालांकि इन आसुविधाओं के बीच आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने कर्तव्य का निर्वहन ईमानदारी से करती नजर आई.


केस 1: मुख्यालय के कोट्ठीगोड़ा में संचालित आंगनबाड़ी भवन पिछले कई वर्षो से जर्जर है. छत से प्लास्टर टूटकर गिरने लगा है. बारिश में यहां फर्श पर पानी भर जाता है. ऐसे में कार्यकर्ता और सहायिका केंद्र खोलने से पहले फर्श पर भरा पानी साफ करती हैं. उसके बाद बच्चों को गीले फर्श पर बैठाती हैं. कार्यकर्ता संतुला बघेल ने बताया कि भवन में नमी के कारण बच्चों की सेहत पर विपरीत असर पड़ने लगा तो बच्चों को आंगन या फिर सूखे जगह बैठा रही हैं. कई बार विभाग को भवन के हालातों से अवगत कराया गया, लेकिन आज तक ना तो भवन की मरम्मत की गई है ना ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था.

केस नंबर दो: 10 बाय 10 के कमरे में लग रहा केंद्र...
शहर के वार्ड क्रमांक छह में संचालित श्रीनगर स्थित आंगनबाड़ी भवन निर्माण के कुछ ही महीनों में जर्जर हो गया. उसके बाद से आंगनबाड़ी लगाने कार्यकर्ता को दर-दर भटकना पड़ रहा है. कुछ महीनों के लिए मस्तान पारा में आंगनबाड़ी केंद्र को लगाया गया. यहां संयुक्त संचालन से बच्चों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. जिसके बाद कार्यकर्ता को श्रीनगर के नयापारा में 10 बाय 10 के छोटे से कमरे में केंद्र संचालित करना पड़ रहा है. करीब 4 साल बीत गए हैं अब तक विभाग ने नए भवन की व्यवस्था नहीं की है .इसी तरह मस्तान पारा और इंदिरा कॉलोनी के भी केंद्र जर्जर हो गए हैं. जहां बच्चों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

केस नंबर 3: भवन अधूरा एक कमरे में लग रहे दो केंद्र...
कलेक्ट्रेट के पीछे वर्ष 2012 से कुमारास नंबर दो बंगाली पारा में आंगनवाड़ी भवन निर्माणाधीन है भवन अधूरा होने की वजह से केंद्र को पास के आंगनबाड़ी भवन में लगाया जा रहा है यहां की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निर्मला सोडी ने बताया कि एक साथ दो केंद्रों के संचालन में बहुत परेशानी आती है दो केंद्रों में कुल 25 बच्चे एक साथ बैठते हैं.


Conclusion:
आंगनबाड़ियों में बच्चों की उपस्थिति में आई कमी...
जिला मुख्यालय में संचालित कुल आंगनवाड़ी केंद्र 26 हैं. इन आंगनबाड़ी केंद्रों में कुल 1166 बच्चे दर्ज हैं. विभागीय आंकड़ों के अनुसार 19 केंद्रों को पूर्ण बताया जा रहा है मतलब यह केंद्र स्वयं के भवन में संचालित हैं. लेकिन यहां भी हालत कुछ ज्यादा ठीक नहीं है. भवन जर्जर हो चुके हैं फर्श से सीमेंट उखड़ने लगी है और छत का प्लास्टर झड़कर गिरने लगा है. वहीं पांच केंद्रों के पास तो खुद का भवन ही नहीं है. इन केंद्रों को किराए के मकान में या फिर सहायिका के घर संचालित किया जा रहा है. आंगनबाड़ियों में फैली अव्यवस्था के कारण केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति में भारी कमी आई है. प्रति आंगनबाड़ी केंद्र में जहां 15 से 20 बच्चों की संख्या है तो वही वर्तमान में 5 से 6 रह गई है. आंगनबाड़ियों में निर्मित समस्याओं को देखते हुए पालकों ने भी बच्चों को केंद्र भेजना बंद कर दिया है.

बाइट 01: संतुला बघेल, आगनबाड़ी कार्यकर्ता
बाइट 02: सकुन्तला ठाकुर, आगनबाड़ी कार्यकर्ता
बाइट 03: पदमा, सहायिका
बाइट 04: निर्मल सोढ़ी, आगनबाड़ी कार्यकर्ता

नोट: कलेक्टर की बाइट रिपोर्टर app से भेजी गई है
Last Updated : Nov 4, 2019, 12:08 AM IST
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