सरगुजा: एक समय में सरगुजा एक समृद्ध रियासत हुआ करती थी. यहां के शासकों ने कई जन सुविधाओं की योजनाएं यहां संचालित रखी थी. इसके साथ और भी कई खासियत थी, जो सरगुजा रियासत को विश्व में पहचान दिलाती थी. यहां के तत्कालीन महाराज रामानुज शरण सिंहदेव विश्व के सबसे उत्कृष्ट शिकारी थे. घायल गैंडे के आतंक से परेशान अफ्रीकन देशों ने सरगुजा महाराज से गैंडे को मारने मदद मांगी थी और महाराज ने अफ्रीका जाकर उस गैंडे को मारा था. खुंखार घायल बाघों को मारने की जिम्मेदारी भी इनको ही दी गई थी. विश्व में सबसे अधिक बाघ मारने का रिकार्ड इन्हीं के नाम है. लेकिन मारे गये बाघों की संख्या को लेकर स्थिति अस्पष्ट रहती है. कोई 1170 बाघ बताता है, तो कहीं 17 सौ से अधिक बाघ मारने की बात कही जाती है.
सबसे अधिक मारे बाघ: फिलहाल सरगुजा के रूलिंग चीफ महाराज रामानुज शरण सिंहदेव के कीर्तिमानों की जनकारी के लिए सरगुजा राजपरिवार के जानकार गोविंद शर्मा से ईटीवी भारत ने बातचीत की. उन्होंने बताया, "सरगुजा के महाराज रामानुज शरण सिंहदेव 1895 में जन्में. 1965 में उनका निधन हुआ. वो विश्व विख्यात शिकारी थे. विश्व के टॉप टेन हंटरों में वो आजीवन एक नंबर पर रहे. विश्व में सबसे ज्यादा आदमखोर बाघों को मारने का विश्व कीर्तिमान उन्हीं के नाम है. किवदंती है कि वो 11 सौ से ऊपर बाघ मारे हैं. हालांकि कई जगहों में 1752 से ऊपर बाघ मारने का रिकॉर्ड है."
वहशी गैंडे का आतंक: गोविंद शर्मा कहते हैं, "एक दुर्दांत गैंडा था. अफ्रीका में यूनीक पीस था, उसको विश्व भर के कोई शिकारी नहीं मार सकते थे. उसको प्रसंगवश किसी शिकारी ने घायल कर दिया था. तो वो गैंडा वहसी हो गया था. अफ्रीका में बहुत आतंक मचा दिया था. युगांडा, केन्या, तंजानिया सब सटे हुये टेरेटरी हैं, रेडियल डिस्टेंस में जाकर वो उन जगहों पर आतंक मचा दिया था, लोगों का जीना दूभर हो गया था. तब ब्रिटिश गवर्मेंट ने तय किया कि सरगुजा के महाराजा उसे मारे क्योंकि विश्व भर के शिकारियों में सरगुजा महाराज नंबर वन पर चल रहे थे तो वही उसे मार सकते हैं."
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ब्रिटिश गवर्मेंट ने शिकार के लिए भेजा प्लेन:गोविंद शर्मा ने बताया कि "सरगुजा महाराज ने कहा कि हम मार देंगे. तब इनका एक स्पेशल गन शायद ये 350 कैलिबर का गन था. उस समय ब्रिटिश गवर्मेंट से हवाई जहाज आया. अम्बिकापुर का गांधी स्टेडियम, जो पहले पोलो ग्राउंड और सरगुजा स्टेट का हवाई अड्डा भी था. सरगुजा महाराज के बेटे का पर्शनल प्लेन था. जिसको उन्होंने चीन के युद्ध के समय भारत सरकार को डोनेट कर दिया था. इस ग्राउंड में प्लेन आया और महाराज को लेकर गया. वहां अफ्रीका में महाराज को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया था. विश्व भर के शिकारी वहां तंबू लगाकर जमा हो गये थे. तब ना बोलने वाले सिनेमा की शूटिंग भी हुई."
चक्रवर्ती हुये थे घायल: शिकार के लिये गैंडे को हाका करके वहां लाया गया. गैंडे को घायल करने वाला शिकारी भी वहां था. प्रोटोकॉल के अनुसार महाराज ने उन्हें फायर करने को कहा. गैंडे को मारते वक्त गोली उसकी पीठ पर लगी और गेंडा जीप से टकराया और फुटबॉल की तरह वो खेलता रहा. उस समय अम्बिकापुर के डॉ. जी.सी. चक्रवर्ती बैठे थे, उनके हाथ में खरोंच आ गया तो वो चीखे. जिसके बाद महाराज को गुस्सा आ गया और उन्होंने जीप की खिड़की का कांच तोड़कर बाहर निकल गये और गैंडे के साथ संघर्ष करते हुये, उन्होंने 350 कैलिबर की गन से फायर कर दिया.
बिना बोलने वाली फिल्म बनी: गोली लगते ही गैंडा उछला और सरगुजा महाराज के उपर आ गिरा. धूल का गुबार छा गया सब लोगों ने सोंचा की सरगुज़ा महाराज तो गये. लेकिन जैसे ही धूल छटी तो सरगुजा महाराज गैंडे के नीचे से निकल रहे थे. तब अफ्रीकन हबशियों ने महाराज को कंधे पर उठा लिया और जुलूस निकाल दिया. फिर ब्रिटिश गवर्मेंट ने भी उनका सम्मान किया और इस पूरी घटना को बिना बोलने वाली फिल्म बनाई गई थी. जिसे न्यूज रील के रूप में उस समय में पूरे देश मे दिखाया गया था.