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जानिए क्या है हसदेव अरण्य को बचाने का मामला? जिसे लेकर आदिवासी समाज ने किया रेल रोको आंदोलन - छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज का रेल रोको आंदोलन

छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज परसा कोल खादान के विरोध में साल्ही रेल पुल पर विरोध के लिए उतरे. सर्व आदिवासी समाज ने हसदेव अरण्य को बचाने को रेल रोको आंदोलन किया. (Sarguja Sarv Adivasi Samaj did Rail Stop Movement )

rail stop movement
रेल रोको आंदोलन
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Published : May 20, 2022, 4:03 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: परसा कोल ब्लॉक संचालन के विरोध में अब सर्व आदिवासी समाज भी सड़क पर उतर चुका है. सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सोहन पोटाई हजारों समर्थकों के साथ साल्ही पहुंचे हैं. यहां लोगों ने नेशनल हाइवे 130 और रेलवे ट्रैक पर धरना प्रदर्शन किया है. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष सोहन पोटाई ग्राम साल्ही पहुंच चुके हैं. इनके अतिरिक्त छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल और अन्य संगठनों के लोग भी मौके पर मौजूद हैं. (Sarguja Sarv Adivasi Samaj did Rail Stop Movement )

हसदेव अरण्य को बचाने का मामला

पुलिस प्रशासन द्वारा आवश्यक तैयारियां की है. लगभग 500 की संख्या में पुलिस बल को आंदोलनकारियों को रोकने के लिए तैनात किया गया है. प्रदर्शनकारियों के नेतृत्वकर्ता तथा ग्रामीण ग्राम हरिहरपुर ने धरना स्थल में मौजूद है. दोपहर 1 बजे करीब इन लोगों के द्वारा साल्ही रेलवे पुल एवं एनएच 130 पर प्रदर्शन किया है.

यह भी पढ़ें: हसदेव अरण्य बचाओ: विकास और जीवन के बीच संघर्ष, जंगल बचाने अंतिम लड़ाई चरम पर

क्या है हसदेव अरण्य: छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिले का वो जंगल है, जो मध्यप्रदेश के कान्हा के जंगलों से झारखंड के पलामू के जंगलों को जोड़ता है. यह मध्य भारत का सबसे समृद्ध वन है. हसदेव नदी भी खदान के कैचमेंट एरिया में है. हसदेव नदी पर बना मिनी माता बांगो बांध जिससे बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है. इस जंगल में हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है.

क्यों है खनन से आपत्ति: वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2010 में हसदेव अरण्य में खनन प्रतिबंधित रखते हुये, इसे नो-गो एरिया घोषित किया था. लेकिन बाद में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने अपने ही नियम के खिलाफ जाकर यहां परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला परियोजना को वन स्वीकृति दे दी थी. समिति की स्वीकृति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने निरस्त भी कर दिया था.

भारतीय वन्य जीव संस्थान की चेतावनी: भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पहले से संचालित खदानों को नियंत्रित तरीके से चलाना होगा. इसके साथ ही सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित किया गया. इसके साथ ही इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी है कि अगर खनन परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई, तो मानव हाथी संघर्ष को संभालना लगभग नामुमकिन हो जायेगा.

सरगुजा: परसा कोल ब्लॉक संचालन के विरोध में अब सर्व आदिवासी समाज भी सड़क पर उतर चुका है. सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सोहन पोटाई हजारों समर्थकों के साथ साल्ही पहुंचे हैं. यहां लोगों ने नेशनल हाइवे 130 और रेलवे ट्रैक पर धरना प्रदर्शन किया है. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष सोहन पोटाई ग्राम साल्ही पहुंच चुके हैं. इनके अतिरिक्त छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल और अन्य संगठनों के लोग भी मौके पर मौजूद हैं. (Sarguja Sarv Adivasi Samaj did Rail Stop Movement )

हसदेव अरण्य को बचाने का मामला

पुलिस प्रशासन द्वारा आवश्यक तैयारियां की है. लगभग 500 की संख्या में पुलिस बल को आंदोलनकारियों को रोकने के लिए तैनात किया गया है. प्रदर्शनकारियों के नेतृत्वकर्ता तथा ग्रामीण ग्राम हरिहरपुर ने धरना स्थल में मौजूद है. दोपहर 1 बजे करीब इन लोगों के द्वारा साल्ही रेलवे पुल एवं एनएच 130 पर प्रदर्शन किया है.

यह भी पढ़ें: हसदेव अरण्य बचाओ: विकास और जीवन के बीच संघर्ष, जंगल बचाने अंतिम लड़ाई चरम पर

क्या है हसदेव अरण्य: छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिले का वो जंगल है, जो मध्यप्रदेश के कान्हा के जंगलों से झारखंड के पलामू के जंगलों को जोड़ता है. यह मध्य भारत का सबसे समृद्ध वन है. हसदेव नदी भी खदान के कैचमेंट एरिया में है. हसदेव नदी पर बना मिनी माता बांगो बांध जिससे बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और कोरबा के खेतों और लोगों को पानी मिलता है. इस जंगल में हाथी समेत 25 वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवागमन का क्षेत्र है.

क्यों है खनन से आपत्ति: वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2010 में हसदेव अरण्य में खनन प्रतिबंधित रखते हुये, इसे नो-गो एरिया घोषित किया था. लेकिन बाद में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति ने अपने ही नियम के खिलाफ जाकर यहां परसा ईस्ट और केते बासेन कोयला परियोजना को वन स्वीकृति दे दी थी. समिति की स्वीकृति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने निरस्त भी कर दिया था.

भारतीय वन्य जीव संस्थान की चेतावनी: भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पहले से संचालित खदानों को नियंत्रित तरीके से चलाना होगा. इसके साथ ही सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित किया गया. इसके साथ ही इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी है कि अगर खनन परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई, तो मानव हाथी संघर्ष को संभालना लगभग नामुमकिन हो जायेगा.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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