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शारीरिक नहीं, मानसिक अपंगता ही असफलता का कारण है: नीरज वर्मा

सरगुजा के अंबिकापुर में रहने वाले नीरज वर्मा पेशे से लेक्चरर हैं और वे दोनों पैरों से दिव्यांग भी हैं. उन्होंने 12वीं के बाद नौकरी करते हुए PHD भी कर ली और आज लोगों के लिए वो एक मिसाल हैं. ETV भारत से खास बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि शारीरिक अपंगता इंसान को असफल नहीं करती, बल्कि मानसिक अपंगता ही असफलता का कारण है.

sarguja neeraj verma story
दिव्यांग नीरज वर्मा का सफर
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Published : Jun 14, 2020, 3:13 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: कहते हैं जब भगवान किसी इंसान में शारिरिक कमियां देता है, तो उन कमियों के साथ ही उन्हें कई कलाओं और हुनर से भी नवाजता है. छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले के अंबिकापुर में रहने वाले नीरज वर्मा के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को कमजोरी नहीं समझी, बल्कि इसे वरदान समझकर अपने हौसलों को नई उड़ान दी. ETV भारत से नीरज ने खास बातचीत की जिसमें उन्होंने अपने जीवन की सफर के बारे में बताया.

नीरज वर्मा का सफर

5 मई 1974 को अंबिकापुर के एक संपन्न परिवार में जन्मे नीरज वर्मा के सामने न तो आर्थिक संकट थी और न ही नौकरी करने की कोई मजबूरी. उनके पिता शासकीय सेवक थे, इस वजह से अपने बेटे के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सारी व्यवस्थाएं कर दी थी. संपन्न परिवार में जन्म लेने के बाद भी नीरज का स्वाभिमान और दृढ़ संकल्प ऊपर था. दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बाद भी उन्होंने कभी ये नहीं सोचा कि वह जीवनभर अपने पिता के धन की मदद से जिएंगे. उन्हें अपनी स्वतंत्र पहचान बनानी थी.

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दोनों पैरों से दिव्यांग हैं नीरज

जिला प्रशासन के कई प्रोजेक्ट में किया काम

जीवन में नीरज का उद्देश्य सिर्फ खुद का विकास करना ही नहीं, बल्कि देश और समाज के भले में भी योगदान देना था. 12वीं पास करने के बाद ही नीरज ने सरकारी नौकरी ज्वाइन कर ली. पेशे से लेक्चरर नीरज ने जिला प्रशासन के लिए साक्षर भारत मिशन के तहत कई प्रोजेक्ट तैयार किए, जिसके लिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया गया. 12वीं क्लास से लेकर पीएचडी करने तक के सफर में नीरज ने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की और न ही अपनी उम्मीदों को कम होने दिया. इसके बाद काम करते हुए उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखी. वर्तमान में भी जिला प्रशासन ने मतदाता जागरूकता कार्यक्रम में नीरज को SWEEP से भी जोड़ रखा है. जरूरत पड़ने पर नीरज वहां भी अपनी सेवाएं देते हैं.

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नीरज को मिल चुके हैं कई अवॉर्ड

कई लेखों के साथ लिख डाली किताब

नौकरी करते-करते ही उन्होंने हिंदी साहित्य और संस्कृत से एमए की पढ़ाई की. इसके साथ ही पीएचडी की उपाधी भी हासिल कर ली और नीरज से हो गए डॉक्टर नीरज. वे कई लेख भी लिख चुके हैं, जो कई बड़े अखबारों में प्रकाशित हो चुके हैं. नीरज ने अपनी एक पुस्तक भी लिख डाली है, जिसका नाम 'हिंदी का सांस्कृतिक भूगोल' है. नीरज का साहित्य से गहरा लगाव है, जो उन्हें और भी कुछ अलग करने की प्रेरणा देता है.

sarguja neeraj verma story
नीरज ने लिखी है किताब

'खुद में विश्वास करने की जरूरत'

जब एक ओर पढ़े लिखे शारीरिक रूप से समर्थ युवा बेरोजगारी का हवाला देकर खुद की खामियों को छिपाते फिरते हैं, तब इस तरह के लोगों की जीवनी एक आदर्श कहानी का रूप ले लेती है. ETV भारत से बातचीत करते हुए नीरज ने बताया कि आज का युवा चाहता है कि सारी चीजें आसानी से हो जाए. युवा सिर्फ सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहे हैं. नीरज का कहना है कि आज देश में कई क्षेत्र हैं, जिसमें काम किया जा सकता है. जरूरत है तो बस खुद में विश्वास करने की.

पढ़ें-मिसाल: ANM रजनी बनीं उम्मीद की किरण, लॉकडाउन में अकेले कराए 23 सुरक्षित प्रसव

उन्होंने कहा कि खुद में अगर कुछ बनने का जुनून और लगन हो, तो हर वह चीज की जा सकती जिसे लोग नामुमकीन कहते हैं. नीरज का कहना है कि शारीरिक अपंगता इंसान को असफल नहीं करती, बल्कि मानसिक अपंगता ही असफलता का कारण है. युवाओं से अपील करते हुए वे कहते हैं कि अपने लक्ष्य पर डटे रहें सफलता अवश्य मिलेगी.

सरगुजा: कहते हैं जब भगवान किसी इंसान में शारिरिक कमियां देता है, तो उन कमियों के साथ ही उन्हें कई कलाओं और हुनर से भी नवाजता है. छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले के अंबिकापुर में रहने वाले नीरज वर्मा के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को कमजोरी नहीं समझी, बल्कि इसे वरदान समझकर अपने हौसलों को नई उड़ान दी. ETV भारत से नीरज ने खास बातचीत की जिसमें उन्होंने अपने जीवन की सफर के बारे में बताया.

नीरज वर्मा का सफर

5 मई 1974 को अंबिकापुर के एक संपन्न परिवार में जन्मे नीरज वर्मा के सामने न तो आर्थिक संकट थी और न ही नौकरी करने की कोई मजबूरी. उनके पिता शासकीय सेवक थे, इस वजह से अपने बेटे के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने सारी व्यवस्थाएं कर दी थी. संपन्न परिवार में जन्म लेने के बाद भी नीरज का स्वाभिमान और दृढ़ संकल्प ऊपर था. दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बाद भी उन्होंने कभी ये नहीं सोचा कि वह जीवनभर अपने पिता के धन की मदद से जिएंगे. उन्हें अपनी स्वतंत्र पहचान बनानी थी.

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दोनों पैरों से दिव्यांग हैं नीरज

जिला प्रशासन के कई प्रोजेक्ट में किया काम

जीवन में नीरज का उद्देश्य सिर्फ खुद का विकास करना ही नहीं, बल्कि देश और समाज के भले में भी योगदान देना था. 12वीं पास करने के बाद ही नीरज ने सरकारी नौकरी ज्वाइन कर ली. पेशे से लेक्चरर नीरज ने जिला प्रशासन के लिए साक्षर भारत मिशन के तहत कई प्रोजेक्ट तैयार किए, जिसके लिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया गया. 12वीं क्लास से लेकर पीएचडी करने तक के सफर में नीरज ने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की और न ही अपनी उम्मीदों को कम होने दिया. इसके बाद काम करते हुए उन्होंने आगे की पढ़ाई जारी रखी. वर्तमान में भी जिला प्रशासन ने मतदाता जागरूकता कार्यक्रम में नीरज को SWEEP से भी जोड़ रखा है. जरूरत पड़ने पर नीरज वहां भी अपनी सेवाएं देते हैं.

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नीरज को मिल चुके हैं कई अवॉर्ड

कई लेखों के साथ लिख डाली किताब

नौकरी करते-करते ही उन्होंने हिंदी साहित्य और संस्कृत से एमए की पढ़ाई की. इसके साथ ही पीएचडी की उपाधी भी हासिल कर ली और नीरज से हो गए डॉक्टर नीरज. वे कई लेख भी लिख चुके हैं, जो कई बड़े अखबारों में प्रकाशित हो चुके हैं. नीरज ने अपनी एक पुस्तक भी लिख डाली है, जिसका नाम 'हिंदी का सांस्कृतिक भूगोल' है. नीरज का साहित्य से गहरा लगाव है, जो उन्हें और भी कुछ अलग करने की प्रेरणा देता है.

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नीरज ने लिखी है किताब

'खुद में विश्वास करने की जरूरत'

जब एक ओर पढ़े लिखे शारीरिक रूप से समर्थ युवा बेरोजगारी का हवाला देकर खुद की खामियों को छिपाते फिरते हैं, तब इस तरह के लोगों की जीवनी एक आदर्श कहानी का रूप ले लेती है. ETV भारत से बातचीत करते हुए नीरज ने बताया कि आज का युवा चाहता है कि सारी चीजें आसानी से हो जाए. युवा सिर्फ सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहे हैं. नीरज का कहना है कि आज देश में कई क्षेत्र हैं, जिसमें काम किया जा सकता है. जरूरत है तो बस खुद में विश्वास करने की.

पढ़ें-मिसाल: ANM रजनी बनीं उम्मीद की किरण, लॉकडाउन में अकेले कराए 23 सुरक्षित प्रसव

उन्होंने कहा कि खुद में अगर कुछ बनने का जुनून और लगन हो, तो हर वह चीज की जा सकती जिसे लोग नामुमकीन कहते हैं. नीरज का कहना है कि शारीरिक अपंगता इंसान को असफल नहीं करती, बल्कि मानसिक अपंगता ही असफलता का कारण है. युवाओं से अपील करते हुए वे कहते हैं कि अपने लक्ष्य पर डटे रहें सफलता अवश्य मिलेगी.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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