सरगुजा: लॉकडाउन में स्कूलों को बंद रखने और ऑनलाइन क्लॉसेस के बढ़ते दबाव पर प्रदेश के स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपना तर्क दिया है. सिंहदेव कोरोना के संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए स्कूलों को बंद रखने के पक्ष में तो हैं, लेकिन बच्चों की पढ़ाई बंद करने के पक्ष में नही हैं. मंत्री टीएस सिंहदेव का मानना है कि बच्चों के सामने 2 तरह के विकल्प हैं, या तो किताबें ले लें और घर में पढ़ाई करें या स्कूलों की ऑनलाइन क्लॉसेस कराएं. इसके अलावा उन्होंने पैरेंट्स से भी हेल्प करने को कहा है. उन्होंने बताया कि दोनों ही विकल्प बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अच्छे हैं. उन्होंने बताया कि देश में एकदम से पढ़ाई बंद करने का फैसला नहीं लिया गया है.
बच्चों को समय दें पैरेंट्स
उन्होंने बताया कि बहुत से पैरेंट्स ऐसे हैं जो बच्चों की स्कूल बंद होने से उन्हें उतना समय नहीं दे पा रहे हैं, जितना देना चाहिए और ऐसा होना नहीं चाहिए. लेकिन फिर भी स्कूलों को न खोलने का फैसला लिया गया है, क्योंकि बच्चों को नहीं समझाया जा सकता कि उनको स्कूलों में एक दूसरे के संपर्क में आने से कैसे रोकें. इसलिए बेहतर ऑप्शन है कि या तो स्कूल की किताबें बच्चों को घर में दें या ऑनलाइन पढ़ाई कराएं.
स्कूल चार्ज नहीं कर सकता सालभर की फीस
दूसरी तरफ ऑनलाइन पढ़ाई को फीस वसूली से भी जोड़कर देखा जा रहा है. जिसपर मंत्री टीएस सिंहदेव ने थोड़ा अलग तर्क दिया है. उन्होंने बताया की स्कूलों में अलग-अलग तरीके से फीस ली जाती है. कुछ स्कूल हर महीने की फीस लेते हैं तो कुछ साल भर की फीस का शुल्क निर्धारित कर 3 से 4 भाग में फीस जमा कराते हैं.
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टीचर्स और स्टाफ को देनी होती है फीस
उन्होंने बताया कि स्कूल एक साल की फीस चार्ज नहीं करता है, बल्कि 10 महीने की ही फीस ली जाती है. उन्होंने कहा कि अब समझने की जरूरत है कि अगर कोई स्कूल 10 महीने की फीस लेकर ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा दे रहा है, तो उस पर फीस न लिए जाने का दबाव बनाना सही नहीं होगा. क्योंकि हमें दूसरे पहलू को भी देखना होगा, स्कूल में काम करने वाले टीचर सहित अन्य स्टाफ जिनकी सैलरी तो स्कूलों को हर हाल में देनी होगी, फिर चाहे वो स्कूल में बच्चों को पढ़ाएं या न पढ़ाएं.
बच्चों का साल सुरक्षित करें
मंत्री सिंहदेव ने कहा कि बच्चों का साल बरबाद न होने दें. लिहाजा बेहतर विकल्प यहीं होगा कि लोग अपने बच्चों को थोड़ा टाइम ऑनलाइन तो थोड़ा टाइम किताबों से खुद पढ़ाएं. जिससे जीरो ईयर जैसी स्थिति न बने और बच्चों का एक साल सुरक्षित रह सके.