राजनांदगांव : छत्तीसगढ़ दशकों से नक्सलवाद का दंश झेलता आ रहा है..आए दिन नक्सली हमलों और क्रूरता की खबरें सामने आती रहती हैं. लेकिन इसी बीच कुछ ऐसी कहानियां भी हमें मिलती हैं, जो ये कहती हैं कि सालों का अंधेरा शायद एक दिन रोशनी में बदलेगा. ये कहानियां कहती हैं कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली भी सामान्य जिंदगी जीने की इच्छा रखते हैं. प्रदेश में एंटी नक्सल ऑपरेशन के बढ़ते दबाव और छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण करने वाले इस नक्सल दंपति की भी अपनी एक अलग ही दास्तां है.
पति गैंद सिंह को नक्सल संगठन में काम करने के दौरान अपनी SLR रायफल से इतना प्यार था कि उसने प्रमोशन के दौरान मिली AK-47 को भी ठुकरा दिया था. वहीं पत्नी रमशीला धुर्वे घायल नक्सलियों का ऑपरेशन करने के साथ ही ग्रामीणों का भी इलाज करती थी. खैर दोनों ने अब लाल आतंक के दामन छोड़ मुख्य धारा से जुड़ने का फैसला लिया है.
नक्सलियों के साथ-साथ ग्रामीणों का भी किया इलाज
आत्मसमर्पित महिला नक्सली रामशिला धुर्वे साल 2010 में मोहला LOS में शामिल हुई थी. इसके बाद 2011 से 2017 तक डीके एसजेडीसी के जोनल मेडिकल टीम में वह कार्यरत रही. जहां दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के अंतर्गत जहां भी नक्सली मुठभेड़ में घायल और बीमार कैडरों का इलाज करने की जरूरत पड़ती थी, तो रमशीला को यह जिम्मेदारी दी जाती थी... साथ ही रमशीला वनांचल क्षेत्रों में ग्रामीणों के लिए 'डॉक्टर दीदी' से कम नहीं थी...उसने कई ग्रामीणों के ऑपरेशन तक किए हैं.
मोहला-औंधी एरिया कमेटी सचिव था गैंद सिंह
आत्मसमर्पित नक्सली गैंद सिंह कोवाची 2009 के अंत में मानपुर डिवीजन के डीवीसी कमलाकर की टीम में शामिल हुआ था, जहां साल 2009 से 2012 तक डीवीसी टीम के कमांडर सुनील आचला के साथ काम किया. इसके बाद औंधी एलओएस का डिप्टी कमांडर बनाए जाने के बाद वह लगातार नक्सल मूवमेंट में सक्रिय रहा. 2019 से मोहला-औंधी एरिया कमेटी सचिव बनाए जाने के बाद लगातार संगठन में सक्रिय रहा.
समाज की मुख्यधारा में आने का फैसला
आत्मसमर्पित नक्सलियों ने बताया कि आंध्र प्रदेश कैडर के नक्सली उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रहे थे. जिससे वे परेशान थे, वहीं छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति ने उन्हें काभी प्रभावित किया,जिसके बाद उन्होंने नक्सलवाद का रास्ता छोड़ समाज की मुख्यधारा में आने के लिए आत्मसमर्पण किया है.