राजनांदगांव : डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी की एक कहानी है, जो जिले के डोंगरगांव से जुड़ी है. कहा जाता है कि मां बम्लेश्वरी के कदम डोंगरगांव पर पड़े थे, तब से ही डोंगरगांव के लोगों की बगलामुखी मां बम्लेश्वरी के प्रति गहरी आस्था है.
डोंगरगांव ब्लॉक के लोगों का मानना है कि बगलामुखी मां बम्लेश्वरी राजाओं के जमाने में डोंगरगांव से बरगांव की ओर जाने वाली बीटीआई के पास की जमीन पर मां के चरण पड़े थे.
- सबसे पहले मां बम्लेश्वरी यहां पधारी थीं, लेकिन इस स्थान पर उनकी सेवा सत्कार सही तरीके से न होने की वजह से माता रानी नाराज होकर यहां से डोंगरगढ़ स्थित पहाड़ी पर विराजमान हो गईं.
- लोगों का कहना है कि, राजाओं के जमाने में स्वप्न में आकर मां बम्लेश्वरी यहां पधारी थीं और यहां उनकी सेवा सत्कार की व्यवस्था को लेकर राजा के सपने में आकर माता ने सब कुछ बताया था.
- रजवाड़ों ने इस मामले पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिसके चलते मां बम्लेश्वरी यहां से नाराज होकर डोंगरगढ़ स्थित पहाड़ी में विराजमान हो गईं.
यहां प्रज्जवलित होती है मां के नाम की ज्योत
मां बम्लेश्वरी के नाराज होकर चले जाने के बाद से यहां के राजाओं के बुरे दिन शुरू हो गए. इस बात की जानकारी होने पर जिस जगह पर मां बम्लेश्वरी पधारी थीं, उस स्थान को सुरक्षित किया गया और फिर इसके बाद यहां पर मां के नाम की आस्था ज्योत प्रज्जवलित की गई. तब से लेकर आज तक यहां मां बम्लेश्वरी के नाम की ज्योत प्रज्जवलित की जाती है.
लोगों में इस स्थान को लेकर बड़ी आस्था है और आसपास के ग्रामीण चैत्र और क्वांर नवरात्र में बड़ी संख्या में यहां पर दर्शन करने पहुंचते हैं.
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डोंगरगढ़ में भी है यही परंपरा
डोंगरगांव के लोगों का कहना है कि, जिस तरीके से बगलामुखी मां बम्लेश्वरी के नाम की आस्था जो यहां पर प्रज्जवलित की जाती है. ठीक उसी तरह एक ज्योति कलश मां के नाम की डोंगरगढ़ में भी प्रज्जवलित की जाती है. ज्योति कलश को लेकर आसपास के लोगों में बड़ी मान्यता है और दोनों नवरात्रों में यहां ज्योति कलश प्रज्जवलित की जाती है.