रायपुर :आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव (Azaadi ka amrit mahotsav ) मनाया जा रहा है. इस खास मौके पर हम आपको ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर के आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका (woman freedom fighter of chhattisgarh) निभाई. जिस तरह से पुरुषों ने इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, उसी तरह छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने भी इस आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आजादी के अमृत महोत्सव के खास मौके पर ईटीवी भारत आपको छत्तीसगढ़ की ऐसी महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में बताने जा रहा है, जिन्होंने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका (Nari Shakti of chhattisgarh ) निभाई.
केकती बाई : केकती बाई ने महात्मा गांधी के आन्दोलन में बढ़ चढ़कर हिसा लिया था. वे स्वतंत्रता सेनानी और छत्तीसगढ़ निर्माण के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल की माता थी. केकती बाई बहुत कम उम्र में विधवा हो गई थी. उन्होंने अपने बच्चे खूबचंद बघेल को बड़े जतन से पाला था. उन्होंने अपने बेटे को रायपुर से पढ़ाई कराने के बाद नागपुर मेडिकल कॉलेज में भेजा था. उस दौरान नागपुर में अखिल भारतीय अधिवेशन आयोजित हुआ था. जिसमें खूबचंद बघेल भी शामिल हुए थे. जब वह घर आते तो उनकी मां केकती बाई भी महात्मा गांधी के बारे में सुनकर प्रभावित होती थी. 1930 में स्वाधीनता आंदोलन के दौरान केकती बाई ने भी बढ़ चढ़कर योगदान दिया. वे डॉक्टर राधाबाई के साथ मिलकर काम करतीं, छुआछूत मिटाने जैसे कामों में उनका बहुत बड़ा योगदान था.
रोहिणी बाई परगनिहा : देश के स्वाधीनता आंदोलन में रोहिणी बाई परगनिहा का विशेष योगदान रहा. 1931 में रोहिणी बाई जब 12 साल की थी तब वे पहली बार जेल गई थीं. डॉक्टर राधाबाई की टोली में रोहिणी बाई 10 साल की उम्र में शामिल हो गई थी. सत्याग्रह करने वाले लोगों में सबसे छोटा होने के कारण उन्हें लोगों का ढेर सारा प्यार मिलता और वह हमेशा सत्याग्रह के दौरान झंडा लेकर आगे चलती और नारे लगाती. इतिहासकार बताते हैं कि रोहिणी बाई कम उम्र की होने के बावजूद भी सत्याग्रह में बढ़ चढ़कर भाग लेती थी. विदेशी सामानों के बहिष्कार के दौरान जब महिलाओं की टोली पुलिस चौकी के सामने से गुजर रही थी, उस दौरान ब्रिटिश सरकार के लोग रोहिणी बाई के हाथ से झंडा छीनने लगे. लेकिन 12 साल की रोहिणी ने झंडे को कसकर पकड़े रखा. ब्रिटिश जवान ने उन्हें घसीटा. उन्हें डंडे से पीटने लगे लेकिन उनके हाथों से झंडा नहीं छूटा. जब महात्मा गांधी रायपुर आए थे, उस दौरान सत्याग्रह को आर्थिक मदद करने के लिए रोहिणी बाई घरों में जाकर चंदा इकट्ठा करती थीं. रोहिणी और उनकी महिला साथियों ने मिलकर उस दौरान लगभग 11 हजार रुपए इकट्ठे किए थे. अपने हाथों से रोहिणी बाई ने उन पैसों से भरी थैली को गांधी जी को सौंपा था. महात्मा गांधी जब छत्तीसगढ़ आए थे, उस दौरान रोहिणी बाई उनके साथ सत्याग्रह में शामिल रहीं. वे महात्मा गांधी के साथ बलौदाबाजार, भाटापारा, महासमुंद, धमतरी, कुरूद गईं थी. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान साल 1942 में रोहिणी बाई को जेल जाना पड़ा. उस दौरान डॉ. राधाबाई के साथ मंटोरा बाई, भगवती बाई, जैसी महिलाएं जेल में थी. उस समय रायपुर जेल में 24 महिलाएं थीं. उस दौरान एक महिला सेनानी की जेल में ही मौत हो गई थी. जेल में इन महिलाओं ने कई यातनाओं को सहा.
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क्या है इतिहासकार का कहना : इतिहास की प्रोफेसर डॉ. शम्पा चौबे ने बताया " देश को आजाद कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जो आंदोलन चल रहे थे, उन आंदोलनों में छत्तीसगढ़ की महिलाओं का भी योगदान रहा. वे छत्तीसगढ़ में रहकर ही यह आंदोलन कर रही थीं. महात्मा गांधी ने एक बात कही थी, जिसका पूरा पालन यहां की महिलाओं के आंदोलन करते हुए भाव में दिखाई पड़ता है. महात्मा गांधी कहते थे कि अहिंसा हमारे जीवन का ध्यान मंत्र है. यह कहना होगा कि देश का भविष्य स्त्रियों के हाथ में है. छत्तीसगढ़ की महिलाएं इसी भावना से सत्य और अहिंसा को सामने रखकर स्वतंत्रता आंदोलन में लगी हुई थी."