रायपुर: छत्तीसगढ़ में लगभग डेढ़ वर्ष के बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गई है. प्रदेश में सक्रिय सभी राजनीतिक दल अभी से आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनाने में जुट गई है. सत्ताधारी कांग्रेस अपनी सरकार द्वारा किए गए जनहित के कार्यों को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी में है. वही प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी 2018 में मिले भारी हार की समीक्षा और उन गलतियों में सुधार कर प्रदेश की सत्ता हासिल करने की कवायद में जुट गई है. राजनीतिक प्रेक्षक भी यह मानते हैं कि अगर बीजेपी को प्रदेश की सत्ता फिर से हासिल करनी है तो उसे 2018 में हुई गलतियों से सीख लेकर रणनीति बनानी पड़ेगी.
2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जनघोषणा पत्र ने पलटा पासा: छत्तीसगढ़ में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में रहा. प्रदेश में 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत के साथ सत्ता हासिल हुई. वहीं बीजेपी को महज 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. बता दें कि 2018 विधानसभा चुनाव के लिए 2 चरणों में मतदान किया गया था. जिसके नतीजे कांग्रेस के पक्ष में गए. कांग्रेस ने 90 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं 15 साल सत्ता पर काबिज रही भाजपा को महज 15 सीटें मिली. जेसीसीजे के खाते में 5 और बहुजन समाज पार्टी के खाते में 2 सीटें आई थी. छत्तीसगढ़ में वोट शेयर के आधार पर कांग्रेस को 43 फ़ीसदी मत मिले , जबकि बीजेपी के पक्ष में 33 फ़ीसदी वोट आए थे.
भाजपा के 2018 विधानसभा चुनाव में हार की ये हैं पांच वजहें
2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में बीजेपी को मिली भारी हार के विषय में राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा का कहना है " ऐसे पांच महत्वपूर्ण बिंदु है जिस वजह से 2018 विधानसभा चुनाव में 15 साल सत्ता पर काबिज रही भाजपा को ना चुनकर लोगों ने कांग्रेस को चुना."
• डॉ रमन सिंह के खिलाफ एंटीइनकंबेंसी : राजनीति के जानकार बाबूलाल शर्मा ने कहा "भाजपा ने छत्तीसगढ़ में 15 साल में जो काम किए थे उसको लेकर भाजपा में काफी ओवर कॉन्फिडेंस था. भाजपा का जो ओवरकॉन्फिडेंस था उसको लेकर जनता में काफी असंतोष रहा. चुनाव से पहले रमन सिंह के खिलाफ माहौल दिख रहा था जिसका रुख 2018 एग्जिट पोल में भी दिखाई दिया था"
• आखिरी 5 सालों में अफसरशाही रही हावी : वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा ने कहा " भाजपा के पहले के 10 सालों में भाजपा का नियंत्रण अपने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों पर अच्छा खासा रहा. लेकिन आखिरी के 5 सालों में भाजपा ओवरकॉन्फिडेंट नज़र आई". शर्मा के मुताबिक "यही वजह थी कि अधिकारियों और कर्मचारियों में उनकी पकड़ कमजोर पड़ गई. अधिकारी मनमानी करने लगे जिसका लोगों पर गलत असर हुआ"
• कमांडो के घिरे होने से रमन सिंह की लोगों से बनी दूरी : राजनीति के जानकार बाबूलाल शर्मा ने बताया " भाजपा के हाथ से सत्ता छिन जाने के बाद अभी भी डॉ रमन सिंह कमांडो से घिरे रहते हैं. जिस वजह से आम लोगों से उनकी दूरी अभी भी बनी हुई है. प्रदर्शन और धरना के दौरान भी पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह हमेशा कमांडो से घिरे रहते हैं. जिससे आम लोगों के साथ साथ भाजपा कार्यकर्ताओं की भी रमन सिंह से दूरी बनी रहती है।" शर्मा के मुताबिक "भाजपा जब सत्ता मे थी तो इससे भी ज्यादा डॉ रमन सिंह सुरक्षाकर्मियों के घेरे में रहते थे जिससे उनकी दूरी आम जनता से बढ़ गई."
• नान घोटालों और अन्य आरोप-प्रत्यारोप का कांग्रेस पर नहीं पड़ा ज्यादा असर : राजनीति के जानकार बाबूलाल शर्मा के मुताबिक "2018 विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेसियों नेताओं पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाए गए थे लेकिन बीजेपी शासन काल में किसी बड़े आरोप को साबित नहीं किया जा सका." शर्मा ने कहा कि " यह भी एक प्रमुख कारण रहा जिससे बीजेपी जनता का भरोसा नहीं जीत पाई."
• घोषणा पत्र के आकर्षक वादे : वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा ने कहा " कांग्रेस का घोषणा पत्र जिससे अंबिकापुर के विधायक टी एस सिंहदेव देव ने बनाया था. उसका सबसे ज्यादा असर 2018 विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है. कर्ज माफी , बिजली बिल हाफ , 2500 रुपये धान का बोनस ने किसानों और युवाओं के साथ साथ हर वर्ग के लोगों को लुभाया." बाबूलाल शर्मा ने ये भी कहा " 2018 विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल डॉ रमन सिंह से बड़े चेहरे नहीं थे. बावजूद इसके कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए वादे जनता को लुभाने में कामयाब रहे."
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी क्यों सिमटी 15 सीटों पर, हार से बीजेपी ने कितना लिया सबक ?
छत्तीसगढ़ में चुनावी साल की दस्तक होने वाली है. जल्द ही सभी राजनीतिक दल मिशन मोड में आएंगी. बीजेपी ने भी अभी से छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारियां शुरू कर दी है. बीजेपी पिछले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में 15 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. क्या मिशन 2023 के लिए बीजेपी ने पिछली गलतियों से सबक लिया है. किन बिंदुओं पर बीजेपी को मंथन की जरूरत है. इस पर ईटीवी भारत ने राजनीति के जानकार से बात कर यह समझने की कोशिश की है.
रायपुर: छत्तीसगढ़ में लगभग डेढ़ वर्ष के बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गई है. प्रदेश में सक्रिय सभी राजनीतिक दल अभी से आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनाने में जुट गई है. सत्ताधारी कांग्रेस अपनी सरकार द्वारा किए गए जनहित के कार्यों को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी में है. वही प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी 2018 में मिले भारी हार की समीक्षा और उन गलतियों में सुधार कर प्रदेश की सत्ता हासिल करने की कवायद में जुट गई है. राजनीतिक प्रेक्षक भी यह मानते हैं कि अगर बीजेपी को प्रदेश की सत्ता फिर से हासिल करनी है तो उसे 2018 में हुई गलतियों से सीख लेकर रणनीति बनानी पड़ेगी.
2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जनघोषणा पत्र ने पलटा पासा: छत्तीसगढ़ में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में रहा. प्रदेश में 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत के साथ सत्ता हासिल हुई. वहीं बीजेपी को महज 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. बता दें कि 2018 विधानसभा चुनाव के लिए 2 चरणों में मतदान किया गया था. जिसके नतीजे कांग्रेस के पक्ष में गए. कांग्रेस ने 90 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं 15 साल सत्ता पर काबिज रही भाजपा को महज 15 सीटें मिली. जेसीसीजे के खाते में 5 और बहुजन समाज पार्टी के खाते में 2 सीटें आई थी. छत्तीसगढ़ में वोट शेयर के आधार पर कांग्रेस को 43 फ़ीसदी मत मिले , जबकि बीजेपी के पक्ष में 33 फ़ीसदी वोट आए थे.
भाजपा के 2018 विधानसभा चुनाव में हार की ये हैं पांच वजहें
2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में बीजेपी को मिली भारी हार के विषय में राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा का कहना है " ऐसे पांच महत्वपूर्ण बिंदु है जिस वजह से 2018 विधानसभा चुनाव में 15 साल सत्ता पर काबिज रही भाजपा को ना चुनकर लोगों ने कांग्रेस को चुना."
• डॉ रमन सिंह के खिलाफ एंटीइनकंबेंसी : राजनीति के जानकार बाबूलाल शर्मा ने कहा "भाजपा ने छत्तीसगढ़ में 15 साल में जो काम किए थे उसको लेकर भाजपा में काफी ओवर कॉन्फिडेंस था. भाजपा का जो ओवरकॉन्फिडेंस था उसको लेकर जनता में काफी असंतोष रहा. चुनाव से पहले रमन सिंह के खिलाफ माहौल दिख रहा था जिसका रुख 2018 एग्जिट पोल में भी दिखाई दिया था"
• आखिरी 5 सालों में अफसरशाही रही हावी : वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा ने कहा " भाजपा के पहले के 10 सालों में भाजपा का नियंत्रण अपने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों पर अच्छा खासा रहा. लेकिन आखिरी के 5 सालों में भाजपा ओवरकॉन्फिडेंट नज़र आई". शर्मा के मुताबिक "यही वजह थी कि अधिकारियों और कर्मचारियों में उनकी पकड़ कमजोर पड़ गई. अधिकारी मनमानी करने लगे जिसका लोगों पर गलत असर हुआ"
• कमांडो के घिरे होने से रमन सिंह की लोगों से बनी दूरी : राजनीति के जानकार बाबूलाल शर्मा ने बताया " भाजपा के हाथ से सत्ता छिन जाने के बाद अभी भी डॉ रमन सिंह कमांडो से घिरे रहते हैं. जिस वजह से आम लोगों से उनकी दूरी अभी भी बनी हुई है. प्रदर्शन और धरना के दौरान भी पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह हमेशा कमांडो से घिरे रहते हैं. जिससे आम लोगों के साथ साथ भाजपा कार्यकर्ताओं की भी रमन सिंह से दूरी बनी रहती है।" शर्मा के मुताबिक "भाजपा जब सत्ता मे थी तो इससे भी ज्यादा डॉ रमन सिंह सुरक्षाकर्मियों के घेरे में रहते थे जिससे उनकी दूरी आम जनता से बढ़ गई."
• नान घोटालों और अन्य आरोप-प्रत्यारोप का कांग्रेस पर नहीं पड़ा ज्यादा असर : राजनीति के जानकार बाबूलाल शर्मा के मुताबिक "2018 विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेसियों नेताओं पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाए गए थे लेकिन बीजेपी शासन काल में किसी बड़े आरोप को साबित नहीं किया जा सका." शर्मा ने कहा कि " यह भी एक प्रमुख कारण रहा जिससे बीजेपी जनता का भरोसा नहीं जीत पाई."
• घोषणा पत्र के आकर्षक वादे : वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा ने कहा " कांग्रेस का घोषणा पत्र जिससे अंबिकापुर के विधायक टी एस सिंहदेव देव ने बनाया था. उसका सबसे ज्यादा असर 2018 विधानसभा चुनाव में देखने को मिला है. कर्ज माफी , बिजली बिल हाफ , 2500 रुपये धान का बोनस ने किसानों और युवाओं के साथ साथ हर वर्ग के लोगों को लुभाया." बाबूलाल शर्मा ने ये भी कहा " 2018 विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल डॉ रमन सिंह से बड़े चेहरे नहीं थे. बावजूद इसके कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए वादे जनता को लुभाने में कामयाब रहे."