रायपुर : गर्भावस्था का आठवां माह महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है. आठवें महीने में पैदा हुआ प्री मैच्योर बेबी बहुत कम सर्वाइव करते हैं. ठीक इसके विपरीत सातवें माह के प्री मैच्योर डिलीवरी में जन्में बच्चों के सुरक्षित रहने के चांसेस ज्यादा रहते हैं.अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर क्या कारण है कि सातवें महीने में जन्मा बच्चा आठवें महीेने में जन्मे बच्चे से ज्यादा सर्वाइव कर पाते हैं. ईटीवी भारत ने इस बारे में विशेषज्ञ की राय जानी.
सातवें नहीं आठवें माह के बच्चे ज्यादा सुरक्षित : इस बारे में स्त्री रोग विशेषज्ञ मीनू त्रिपाठी का कहना है कि " परंपरागत रूप से मैंने भी यह सुना है कि आठवें माह के बच्चे नहीं बच पाते. वहीं सातवें माह के बच्चे बच जाते हैं. लेकिन अपने करियर में मैंने उल्टा अनुभव किया है .मैंने ये देखा है कि अक्सर जितनी ज्यादा मैच्योरिटी रहती है बच्चा उतना सुरक्षित रूप से पैदा होता है. खासकर लंग मैच्योरिटी यानी की फेफड़े की मैच्योरिटी कम होती है. तो इसके हिसाब से सातवें महीने में में कम मेच्योरिटी होती है.जबकि आठवें महीने में पैदा होने वाले बच्चे ज्यादा सेफ रहते हैं. उनके बचने के चांस ज्यादा हो जाते हैं.''
डॉक्टर मीनू त्रिपाठी के मुताबिक ''आठवें माह में यूट्रस से पानी आने की संभावना बढ़ने लगती है. यदि आपके यूट्रस से पानी आने लगा तो तुरंत ही डिलवरी करानी होती है. इसलिए महिलाओं को संभलकर चलने की हिदायत दी जाती है. यही वजह है कि आठवें माह में ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.''
क्यों होती है बच्चों को दिक्कत :बड़े बुजुर्ग भी अक्सर गर्भवती महिलाओं को आठवें माह में ज्यादा सावधानी बरतने की सलाह देते हैं. जानकारी के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान बच्चों की मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण प्लेजेंटा या गर्भनाल से संबंधित समस्या को बताया गया है. इन्हीं दोनों से बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं.इन दोनों में गड़बड़ी होने पर बच्चे के विकास में भी दिक्कत होती है. यदि मां को डायबिटीज, थायराइड लूपस सिक्लिंग अन्य इन्फेक्शन या हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां हैं.तो बच्चे को भी समस्या हो सकती है.