रायपुर : होलाष्टक का प्रारंभ सर्वार्थ सिद्धि योग, अहोरात्र, रोहिणी में वैधृति, विषकुंभकरण और बवकरण के प्रभाव में प्रारंभ हो रहा है. होलाष्टक के प्रथम दिन वर्धमान योग रहेगा. होलाष्टक के अंतिम दिन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र द्वितीय योग घुमरा योग, बवकरण और विष्कुम्भकरण का सुंदर प्रभाव रहेगा. यह तिथि चैतन्य महाप्रभु जयंती के रूप में भी जानी जाती है.
होलाष्टक में क्या करें: होलाष्टक काल में अध्ययन, पठन पाठन और लेखन करना चाहिए. जिन जातकों को रिसर्च में रुचि है, वे सभी इन 8 दिनों में अच्छी तरह से अध्ययन कर आगे बढ़ सकते हैं. ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि " इस 8 दिन की अवधि में मुख्य रूप से मंत्र सिद्धि, तंत्र सिद्धि, हनुमान चालीसा का पाठ, बजरंग बाण, सुंदरकांड, दुर्गा सप्तशती का पाठ करना उचित रहता है.तांत्रिक इस अवधि का उपयोग तंत्र सिद्धि में करते हैं, या मंत्रों की सिद्धि और तंत्र की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए पुण्य काल माना जाता है. इस अवधि में योगाभ्यास करना, जाप करना, मनन करना, चिंतन करना श्रेष्ठ माना गया है.''
ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा का यह भी कहना है कि ''इसी अवधि में भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता से रक्षा के लिए श्रीहरि विष्णु की आराधना की थी. इस समय ओम नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश अक्षर का मंत्र का पाठ करना सर्वोत्तम फलदायी होता है. इस मंत्र का पाठ करने से परमेश्वर जल्दी प्रसन्न होते हैं. इस काल अवधि में गरीबों जरूरतमंदों और निरीहजनों को दान पुण्य करना चाहिए. इसी तरह अशक्त और निराश्रितजनों की भी सेवा करनी चाहिए. दिव्यांगजनों और जरूरतमंदों को दान करना चाहिए, जिससे यह फलीभूत होता है."
होलाष्टक में क्या नहीं करें:ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक ''इस अवधि में किसी भी तरह के संस्कार नहीं करने चाहिए. जैसे उपनयन, व्रतबंध, विद्यारंभ, नामकरण, निष्क्रमण, पुंसवन गर्भाधान, अथवा विवाह संस्कार नहीं करना चाहिए. इस दौरान कोई भी क्रय विक्रय नहीं करना चाहिए. नवीन आभूषण, वस्त्र, बर्तन इस अवधि में नहीं खरीदना चाहिए. ''
ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा का कहना है कि "होलाष्टक काल में पूरे सप्ताह एकाग्र होकर ध्यान करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस अवधि में ध्यान करने पर परमेश्वर से तुरंत ही अनुग्रह प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं धीरे धीरे दूर हो जाती है. इस काल अवधि में नियमित रूप से योग का अभ्यास, प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने कामदेव को भस्माभूत कर दिया था, उसके उपरांत उनकी पत्नी रति ने 8 दिन तक लगातार होलाष्टक काल में भगवान शिव की आराधना और पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया. भक्तवत्सल श्री भोलेनाथ जी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं.