रायपुर/बिलासपुर: राजनांदगांव जिले के गंडई इलाके में 16 साल की नाबालिग के साथ रेप के मामला में हाईकोर्ट ने डीएनए टेस्ट कराने के लिए मंजूरी दी है, ताकि आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत इकट्ठा किए जा सके. आइए अब समझते हैं कि यह डीएनए टेस्ट क्या होता है और कैसे किसी नाबालिग के होने वाले बच्चे के पिता की जानकारी डीएनए टेस्ट से पता की जा सकती है.
डॉ रुचि गुप्ता का ने बताया कि है "कई बार अनमैरिड वूमेन आती हैं कि वह प्रेग्नेंट है. तो यह प्रेगनेंसी किसके कारण है, यानी कि इसकी पैटरनिटी क्या है, किस व्यक्ति की वजह से यह महिला प्रेग्नेंट हुई है, इसका पता लगाने के लिए डीएनए टेस्ट किया जाता है. यह टेस्ट सामान्य तौर पर 376 के केस में किया जाता है. पेशेंट का अबॉर्शन के बाद नॉरमल सलाइन में प्रिजर्व करके डीएनए एग्जामिनेशन के लिए फॉरेंसिक लैब में भेजते हैं, ताकि यह पता लगा सकें कि एक्यूज्ड कौन है. एक्यूज्ड के पता लगाने के लिए डीएनए सैम्पलिंग की जाती है."
DNA एनालिसिस के कितने चरण होते हैं? : डीएनए एनालिसिस के मुख्य तौर पर 6 चरण होते हैं. पहला एक्ट्रैक्शन, जिसमें डीएनए को कोशिकाओं से बाहर लाया जाता है. दूसरे चरण में यह पता लगाया जाता है कि कितना डीएनए है. जिसे क्वांटिटेशन कहते हैं. तीसरे चरण में डीएनए की कई कॉपी तैयार की जाती है, जिसे एम्प्लीफिकेशन कहते हैं. चौथे चरण में एम्पलीफाइड प्रोडक्ट को अलग किया जाता है. पांचवें चरण में क्वालिटी और क्वांटिटी के मुताबिक डीएनए का फर्क किया जाता है, जिसे प्रोफाइलिंग कहा जाता है. आखिरी चरण में तकनीकी बिंदुओं के आधार पर रिपोर्ट की जांच की जाती है कि कितना वह सही है, जिसे क्वालिटी एश्योरेंस कहा जाता है.
डीएनए टेस्ट के लिए कैसे लेते हैं सैम्पल? : गौरतलब है कि डीएनए टेस्ट के लिए केवल भ्रूण का ही नहीं बल्कि दांत, दस्ताने, कपड़े, टोपी, सेक्सुअल असॉल्ट टूल्स, नाखून, कपड़े, बिस्तर, अंडरगारमेंट्स, टूथब्रश, रुमाल, टिशू, नैपकिन इत्यादि से सैंपल इकट्ठे करके किया जाता है. खासकर अपराधिक मामलों में ऐसा देखा जाता है कि जांच ऐजेंसियों द्वारा घटनास्थल में मौजूद बारीक से बारीक समानों या वस्तुओं को सावधानीपूर्वक बरामद किया जाता है. ताकि जरूरत पड़ने पर इनका परीक्षण किया जा सके.
अपराधिक मामलों में क्यों कराते है डीएनए टेस्ट? : जब भी हम किसी भी वस्तु या मनुष्य को छूते हैं, तो हमारे शरीर की मृत कोशिकाएं उस वस्तु पर चिपक जाती है. जिसे लो लेवल डीएनए या टच डीएनए कहा जाता है. आपराधिक केस में बायोलॉजिकल सबूत बहुत महत्वपूर्ण होता है. इसीलिए रेप केस में डीएनए टेस्ट करने के निर्देश दिए जाते हैं.