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Vastu Tips for Home: दक्षिण पश्चिम कोना क्यों रखा जाता है ऊंचा, जानिए वास्तु कारण

घर का नैऋत्य कोण ऊंचा या भारी रखा जाता (Vastu Tips for Home) है. यानी दक्षिण पश्चिम कोना को ऊंचा रखने के पीछे वास्तु कारण जुड़ा हुआ है.अधिक जानकारी के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Vastu Tips for Home
घर के लिए वास्तु टिप्स
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Published : May 14, 2022, 7:16 PM IST

रायपुर: वास्तु शास्त्र में दक्षिण पश्चिम का कोना बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता (Vastu Tips for Home) है. यह नैऋत्य कोण कहलाता है. इस कोण में ऊंचाई, भारीपन और गुरुत्व का विशेष महत्व है. यह क्षेत्र दूसरों के मुकाबले अधिक ऊंचा और भारी होना चाहिए. इस क्षेत्र में मास्टर बैडरूम यानि गृह स्वामी के शयनकक्ष बनाने का विधान है. जब हम घर बनाते हैं तो मास्टर बैडरूम के लिए यह क्षेत्र सबसे बढ़िया माना गया है. इसी तरह ऑफिस, फैक्ट्री, कार्यालय क्षेत्र में मालिक को इस स्थान पर बैठने का विधान है. जिससे वह अच्छी तरह से कार्य को समझ सके और कमांड कर सके. इस क्षेत्र में बैठने से नेतृत्व क्षमता बढ़ती है. कार्य का विकास होता है. गुरुत्व बढ़ता है. दक्षिण-पश्चिम का कोना एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है.

वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा

लहराता हुआ ध्वज वास्तु को संतुलन प्रदान करता है: इस विषय में वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा कहते हैं " नैऋत्य कोण में पर्वत के चित्र हरीतिमा लिए हुए घने वृक्ष की फोटो ऊंची चीजें रखने का विधान है. इस क्षेत्र में ही घर, फैक्ट्री, ऑफिस सभी के लिए ऊंचे ध्वज को लगाया जाता है. जिससे वह ध्वज लहराता हुआ वहां के वास्तु को संतुलन प्रदान करता है. ईशान का कोण नीचे रखने का विधान है. जिससे कि भारी वर्षा होने पर और घर का समस्त पानी उपयोग किया हुआ पानी नैऋत्य कोण से बहते हुए ईशान या उत्तर दिशा की ओर से बाहर निकल जाए. वास्तुशास्त्र अपने आप में एक वैज्ञानिक शास्त्र हैं. इसका पालन करने पर घर में सुख सुविधा रहती हैं. आनंद की वृद्धि होती है. घर के नक्शे में यह बहुत सहायक सिद्ध होता है.

नैऋत्य कोण में दीवार की ऊंचाई अधिक होती है: दक्षिण पश्चिम के हिस्से में अगर दीवार खड़ी की जाती है, तो यह दीवार इस कोण में अधिक ऊंची होनी चाहिए. अर्थात दूसरों के मुकाबले क्षेत्र विशेष में एक ईंट की जुड़ाई ज्यादा होनी चाहिए. यह अपने आप में ऊर्जा को नियंत्रित करने का विधान है. इससे ऊर्जा नियंत्रित रहती है. वास्तु का प्रभाव खुलकर सामने आता है. इसी तरह भारी पानी की टंकियों को भी दक्षिण पश्चिम कोने में रखा जाता है. दक्षिण-पश्चिम के कोने में बड़े-बड़े वृक्ष पौधे लगाने का विधान है.

यह भी पढ़ें; नया घर बनाने जा रहे हैं तो पहले जान लें ये वास्तु टिप्स, नहीं तो होगी परेशानी

नैऋत्य कोण मंगल और शनि की दिशा मानी जाती है: इस क्षेत्र में बड़े-बड़े गमलों के साथ विशालकाय मिट्टियों के मध्य बड़े पेड़ लगाने का भी प्रचलन है. अनेक स्थानों पर इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए भारी-भरकम पिरामिड नीचे लगाने का भी विधान है. यह दिशा राहु के द्वारा नियंत्रित किया जाता है. दक्षिण दिशा में मंगल का प्रभाव है. पश्चिम दिशा शनि के अधीन होता है. दोनों ही भारी ग्रह है. दोनों ही पाप ग्रह माने गए हैं. दोनों के मध्य कोई मैत्री संबंध नहीं है. इसलिए इस क्षेत्र को विशेष विकसित करके रखा जाना चाहिए. घर के भारी-भरकम अलमीरा बड़े बिस्तर क्षेत्र में रखे जाते हैं. घर के मालिक को भी इसी दिशा में बैठने से अतिरिक्त ऊर्जा साहस और शक्ति मिलती है.

रायपुर: वास्तु शास्त्र में दक्षिण पश्चिम का कोना बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता (Vastu Tips for Home) है. यह नैऋत्य कोण कहलाता है. इस कोण में ऊंचाई, भारीपन और गुरुत्व का विशेष महत्व है. यह क्षेत्र दूसरों के मुकाबले अधिक ऊंचा और भारी होना चाहिए. इस क्षेत्र में मास्टर बैडरूम यानि गृह स्वामी के शयनकक्ष बनाने का विधान है. जब हम घर बनाते हैं तो मास्टर बैडरूम के लिए यह क्षेत्र सबसे बढ़िया माना गया है. इसी तरह ऑफिस, फैक्ट्री, कार्यालय क्षेत्र में मालिक को इस स्थान पर बैठने का विधान है. जिससे वह अच्छी तरह से कार्य को समझ सके और कमांड कर सके. इस क्षेत्र में बैठने से नेतृत्व क्षमता बढ़ती है. कार्य का विकास होता है. गुरुत्व बढ़ता है. दक्षिण-पश्चिम का कोना एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है.

वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा

लहराता हुआ ध्वज वास्तु को संतुलन प्रदान करता है: इस विषय में वास्तु शास्त्री पंडित विनीत शर्मा कहते हैं " नैऋत्य कोण में पर्वत के चित्र हरीतिमा लिए हुए घने वृक्ष की फोटो ऊंची चीजें रखने का विधान है. इस क्षेत्र में ही घर, फैक्ट्री, ऑफिस सभी के लिए ऊंचे ध्वज को लगाया जाता है. जिससे वह ध्वज लहराता हुआ वहां के वास्तु को संतुलन प्रदान करता है. ईशान का कोण नीचे रखने का विधान है. जिससे कि भारी वर्षा होने पर और घर का समस्त पानी उपयोग किया हुआ पानी नैऋत्य कोण से बहते हुए ईशान या उत्तर दिशा की ओर से बाहर निकल जाए. वास्तुशास्त्र अपने आप में एक वैज्ञानिक शास्त्र हैं. इसका पालन करने पर घर में सुख सुविधा रहती हैं. आनंद की वृद्धि होती है. घर के नक्शे में यह बहुत सहायक सिद्ध होता है.

नैऋत्य कोण में दीवार की ऊंचाई अधिक होती है: दक्षिण पश्चिम के हिस्से में अगर दीवार खड़ी की जाती है, तो यह दीवार इस कोण में अधिक ऊंची होनी चाहिए. अर्थात दूसरों के मुकाबले क्षेत्र विशेष में एक ईंट की जुड़ाई ज्यादा होनी चाहिए. यह अपने आप में ऊर्जा को नियंत्रित करने का विधान है. इससे ऊर्जा नियंत्रित रहती है. वास्तु का प्रभाव खुलकर सामने आता है. इसी तरह भारी पानी की टंकियों को भी दक्षिण पश्चिम कोने में रखा जाता है. दक्षिण-पश्चिम के कोने में बड़े-बड़े वृक्ष पौधे लगाने का विधान है.

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नैऋत्य कोण मंगल और शनि की दिशा मानी जाती है: इस क्षेत्र में बड़े-बड़े गमलों के साथ विशालकाय मिट्टियों के मध्य बड़े पेड़ लगाने का भी प्रचलन है. अनेक स्थानों पर इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए भारी-भरकम पिरामिड नीचे लगाने का भी विधान है. यह दिशा राहु के द्वारा नियंत्रित किया जाता है. दक्षिण दिशा में मंगल का प्रभाव है. पश्चिम दिशा शनि के अधीन होता है. दोनों ही भारी ग्रह है. दोनों ही पाप ग्रह माने गए हैं. दोनों के मध्य कोई मैत्री संबंध नहीं है. इसलिए इस क्षेत्र को विशेष विकसित करके रखा जाना चाहिए. घर के भारी-भरकम अलमीरा बड़े बिस्तर क्षेत्र में रखे जाते हैं. घर के मालिक को भी इसी दिशा में बैठने से अतिरिक्त ऊर्जा साहस और शक्ति मिलती है.

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