रायपुर/आगरा: नौगवां से सटे गांव लालपुरा के 'लाल' निर्वेश कुमार की शहादत को 11 साल हो गए हैं. सीआरपीएफ के बहादुर जवान निर्वेश कुमार ने दंतेवाडा में नक्सलियों से लोहा लिया था. ताड़मेटला में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे. जिनमें निर्वेश कुमार भी शामिल थे. लेकिन निर्वेश कुमार ने अदम्य साहस का परिचय दिया. शहादत से पहले निर्वेश कुमार ने नौ नक्सलियों को ढे़र किया था. बहादुर जवान निर्वेश कुमार की शहादत पर सरकार ने ढेरों वादे किए थे. सभी वादे अधूरे हैं. मां बाप और परिजन उसकी यादों को संजोए हैं. शहीद के बुजुर्ग माता-पिता ने अब वादे पूरे होने की उम्मीद भी छोड दी है.
जिला मुख्यालय से करीब 120 किलोमीटर दूर नौगवां से सटे लालपुरा गांव के निवासी निर्वेश कुमार नरवरिया सीआरपीएफ में जवान था. छत्तीसगढ में भारत सरकार ने नक्सलियों के सफाए के लिए ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू किया था. जिसमें निर्वेश कुमार की सीआरपीएफ की बटालियन भी शामिल थी. 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में सीआरपीएफ जवानों पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया. जिसमें 76 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए. इस मुठभेड़ में 9 नक्सली भी ढेर हुए थे.
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परिजनों ने बनवाया शहीद स्मारक
शहीद के पिता प्रीतम सिंह का कहना है कि, भारत सरकार के गृह मंत्रालय की 2011 की डायरी में शहीद स्मारक के निर्माण बनने का उल्लेख था. लेकिन शहीद स्मारक निर्माण नहीं कराया गया. ऐसे में साल 2012 में खुद के पैसे लगाकर अपनी जमीन पर ही बेटे की यादों को सहेजने के लिए स्मारक का निर्माण कराया. जिसका लोकापर्ण सीआरपीएफ के आईजी ने छह अप्रैल 2014 को किया था.
एस्टीमेट बनाकर वादा भूल गई सरकार
लोक निर्माण विभाग ने शहीद स्मारक का एस्टीमेट 3.12 लाख रुपए का बनाया था. सरकार से भी भुगतान कराने का आश्वासन मिला था. इस बारे में सीआरपीएफ अंबिकापुर छत्तीसगढ़ के कमांडेंट मैथ्यू ए जान ने डीएम आगरा को पत्र लिखा था. लेकिन अभी तक स्मारक बनाने की रकम का भुगतान नहीं हुआ है. कई बार लिखित स्मरण पत्रों से अधिकारियों से संपर्क किया गया. इसके बावजूद भी भुगतान नहीं हुआ है. डीएम आगरा की ओर से कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला. शहीद के पिता का कहना है कि वो अब थक कर बैठ गए हैं. क्योंकि इस बारे में माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित निदेशक सीआरपीएफ को भी प्रार्थना पत्र भेज चुके हैं. लेकिन अबतक किसी ने भी भुगतान की बात तो दूर जिला स्तर से किसी पहल का जिक्र तक नहीं किया है.
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ये वादे अब तक अधूरे
शहीद के पिता प्रीतम सिंह का कहना है कि बेटे निर्वेश कुमार की शहादत पर सरकार ने तमाम वादे किए थे. जिनमें गांव की मुख्य सड़क का नाम शहीद के नाम पर रखा जाना. शहीद की स्मृति में गांव के तालाब का सौंदर्यीकरण, घर के लिए पक्की पगडंडी मार्ग, शहीद स्मारक निर्माण और परिजनों को सुविधा देने का वादा किया था. मगर ये सभी वादे सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए हैं. वादों को लेकर ढेरों शिकायतें की. लेकिन उनके घर के लिए 60 मीटर पक्की पगडंडी भी नहीं बन सकी है. गांव की सड़क का नाम शहीद के नाम से नहीं हुआ.
मां-बाप की हो रही पेंशन से गुजर-बसर
शहीद निर्वेश कुमार के पिता प्रीतम सिंह नरवरिया डाक विभाग में कार्यरत थे. वह अब रिटायर्ड हो गए हैं. उनका बड़ा बेटा सुभाष अपने परिवार के साथ गांव में ही अलग रहता है. छोटा-बेटा निर्वेश कुमार था. प्रीतम सिंह की पेंशन और खेती से कुछ रुपए आ जाते हैं. उससे ही बुजुर्ग प्रीतम और शांति देवी की गुजर-बसर हो रहा है.
बहू की करा दी दूसरी शादी
शहीद निर्वेश कुमार के पिता का कहना है कि, बेटे की शादी शहीद होने से कुछ माह पहले हुई थी. जब बेटा शहीद हो गया तो उसकी पत्नी उदास रहने लगी. एक ओर बेटा दुनियां से चला गया. दूसरी ओर बहू का रोना उन्हें चिंतित करने लगा. ऐसे में बहू के परिजनों से बातचीत कर उनकी दूसरा शादी भी करा दिया. जहां वह शांति और सुख से अपना जीवन यापन कर रही है.
जनप्रतिनिधियों ने नहीं ली सुध
शहीद निर्वेश कुमार के शहीद होने पर शहादत पर तमाम क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन के लोग आए. लेकिन इसके बाद परिवार का हाल-चाल जानने कोई नहीं आया. प्रीतम सिंह का कहना है कि, उनके घर के सामने 60 मीटर का कच्चा रास्ता है. उसे बनवाने के लिए ग्राम प्रधान से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगा चुके हैं. मगर कोई सुनवाई नहीं हुई. उनका कहना है कि अखिलेश सरकार में बनाया गया साइकिल ट्रैक गुजरा है. लेकिन शहीद के घर तक रास्ता नहीं बनाया गया. आज भी परिवार एक पगडंडी से ही आता-जाता है.
भर आई मां की आंखे
मां शांति देवी अपने शहीद बेटे निर्वेश कुमार की यादों में खोई रहती है. सुबह और शाम बेटे के स्मारक पर दीपक जलाती हैं. जब बेटे की याद आती है तो उसकी तस्वीर देख लेती हैं. तस्वीर को अपनी साड़ी के पल्लू से साफ करती हैं. ईटीवी भारत की टीम को देखकर भावुक हो गईं. कहने लगीं कि, बेटे का दर्द एक मां ही जानती है. तीज त्योहार, शादी विवाह कार्यक्रम अन्य मौकों पर बेटे निर्वेश की बहुत याद आती है. बेटे ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान की. दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए. उन्हें अपने बेटे पर गर्व है. उसने माता-पिता को गौरवान्वित किया.