रायपुर / हैदराबाद : रामकृष्ण परमहंस का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर के गांव में उनका परिवार निवास करता था.उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक ऐसी कई घटनाएं घटी जिन्होंने रामकृष्ण परमहंस के प्रति लोगों का नजरिया बदला.उनके जन्म से पहले ही माता पिता को ये आभाष हो गया था कि उनके घर में आने वाला बालक साधारण नहीं है. रामकृष्ण के माता और पिता दोनों को ही भगवान विष्णु से जुड़े स्वप्न आए थे. जिसके बाद ही माता पिता ने उनके जन्म के बाद उनका नाम गदाधर रखा.रामकृष्ण के बड़े भाई का नाम रामकुमार था.
बचपन से ही पढ़ने में नहीं लगता था मन : बचपन में जहां दूसरे बच्चे पढ़ाई में ध्यान देते रामकृष्ण का ध्यान भक्ति की ओर जाता रहा.धीरे धीरे करके वे बड़े होने लगे. इस दौरान उनके बड़े भाई कलकत्ता जाकर एक विद्यालय में प्राध्यापक बन गए. इसी दौरान पिता की मृत्यु होने पर परिवार पर आर्थिक संकट आया. भाई रामकुमार ने परिवार की मदद करने के लिए रामकृष्ण को भी कलकत्ता बुलवा लिया. लेकिन रामकृष्ण यहां भी पढ़ाई ना कर सके. इसके बाद 1855 में रामकृष्ण के बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय को बड़ा मौका मिला.उन्हें दक्षिणेश्वर काली माता मंदिर का मुख्य पुजारी बनाया गया.लिहाजा वो अपने साथ रामकृष्ण को भी ले गए. रामकृष्ण माता के मंदिर में अपने बड़े भाई का हाथ बटाया करते थे.
रामकुमार के मृत्यु के बाद रामकृष्ण बनें पुजारी : रामकुमार की मृत्यु के बाद मंदिर का कार्यभार उनके छोटे भाई रामकृष्ण परमहंस को सौंपा गया.ऐसा माना जाता है कि रामकृष्ण को मां काली का स्वरूप ब्रह्माण्ड की माता के रूप में प्रतीत हुआ. दिन भर रामकृष्ण माता काली की सेवा करते और पूजा करते थे. इसी भक्ति और कठोर परिश्रम से उन्होंने माता काली को तीन बार मंदिर में प्रकट किया.वहीं कुछ लोगों का मानना है कि काली माता की पूजा अर्चना करने से रामकृष्ण का मानसिक संतुलन खराब हो गया था. जिसके कारण उनकी माता ने रामकृष्ण का विवाह करने का फैसला किया, क्योंकि उनकी मां का मानना था कि विवाह से रामकृष्ण का मानसिक संतुलन ठीक हो जाएगा.1859 में रामकृष्ण का विवाह पांच साल की बालिका शारदामणि से हुआ.
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भैरवी ब्राद्मणी से सीखी तंत्र विद्या : परिवार में एक और मृत्यु के बाद रामकृष्ण उदास रहने लगे. उन्होंने दक्षिणेश्वर स्थित पंचवटी में एकांतवास में रहने का फैसला किया.रामकृष्ण के एकांतवास में जाने के बाद दक्षिणेश्वरी काली मंदिर में भैरवी ब्राह्मणी का आगमन हुआ.भैरवी ब्राह्मणी के आने पर रामकृष्ण ने उनसे तंत्र विद्या सीखी.उन्होंने अपने गुरु तोतापुरी महाराज से अद्वैत वेदान्त की शिक्षा प्राप्त की और संन्यास ग्रहण किया. संन्यास लेने के बाद, उन्हें रामकृष्ण परमहंस के नाम से जाना जाने लगा.विद्वान एवं प्रसिद्ध तांत्रिक साधक जैसे पंडित नारायण शास्त्री, पंडित पद्मलोचन तारकालकार, वैष्णवचरण और गौरीकांत तारकभूषण को शिक्षा दी.आगे चलकर स्वामी विवेकानंद भी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बनें.16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस ने अपने शरीर को त्याग दिया और महासमाधि में लीन हो गए.