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पतियों के नाम और फोटो का जमकर हो रहा इस्तेमाल, कहीं डमी बनकर न रह जाएं महिला प्रत्याशी - निकाय चुनाव रायपुर

महिला प्रत्याशियों के लिए आरक्षित की गई सीट से महिलाओं की सहभागिता और सशक्तिकरण बढ़ेगी या फिर वे डमी कैंडिडेट बनकर रह जाएंगी.

महिला प्रत्याशी या डमी कैंडिडेट !
महिला प्रत्याशी या डमी कैंडिडेट !
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Published : Dec 15, 2019, 11:06 PM IST

रायपुर : राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए भले ही आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई हो, लेकिन कहीं न कहीं महिलाएं अपने पतियों से अलग अपनी मजबूत छवि बनाने से पीछे हटती नजर आती हैं. ये हम नहीं बल्कि राजधानी के चौक-चौराहों पर लगे नगरीय निकाय चुनाव में महिला प्रत्याशियों के प्रचार के लिए लगाए गए पोस्टर कह रहे हैं.

महिला प्रत्याशी या डमी कैंडिडेट !

दरअसल, इस बार राजधानी रायपुर से नगरीय निकाय चुनाव के लिए कुल 137 महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, जो राजनीति में अपना भाग्य आजमा रही हैं, लेकिन राजनीति में महिलाओं की सहभागिता और सशक्तिकरण जैसे नारों के बीच एक जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है वो है इन महिला प्रत्याशियों के पतियों की, जो बैनर-पोस्टर से लेकर चुनाव प्रचार के लिए मैदान में दिख रहे हैं.

महिला प्रत्याशियों से जुड़े फैक्ट

  • चुनावी मैदान में हैं कुल 137 महिला प्रत्याशी.
  • रायपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से 23 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित.
  • बैनर-पोस्टर्स में महिला प्रत्याशियों के पतियों के नाम और फोटो का हो रहा इस्तेमाल

महिलाओं के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ रही ये महिलाएं भविष्य में जनता की आवाज बनने के साथ-साथ विकास करने में कितनी कारगर साबित होंगी या डमी कैंडिडेट बनकर रह जाएंगी इस पर ETV भारत ने महिला प्रत्याशियों से बात की, जिसमें उन्होंने इस पर कई अलग-अलग तर्क दिए.

ETV भारत ने वार्ड 44 की प्रत्याशी रेखा तिवारी से इस विषय पर बात की तो उनका कहना था कि, 'महिलाओं के साथ शुरू से उनके पिता का नाम जुड़ता आ रहा है वहीं शादी के बाद उनके पति का नाम जुड़ जाता है'.

'महिलाओं को सिर्फ कार्यकर्ता तक ही सीमित'

वहीं कुछ महिला प्रत्याशी ऐसी भी हैं जो अपने दम पर चुनाव मैदान में हैं. जोगी कांग्रेस से महिला प्रत्याशी नीना यूसुफ ने कहा कि, 'राजनीति में महिलाओं को सिर्फ कार्यकर्ता तक ही सीमित कर दिया जाता है और उन्हें ऊपर नहीं उठने दिया जाता'. उन्होंने कहा कि, 'मैंने कहीं भी अपने पति के नाम का इस्तेमाल नहीं किया है. मैं अपने दम पर चुनाव लड़ रही हूं'.

'महिला प्रत्याशी डमी कैंडिडेट की तरह'
वहीं प्रोफेसर कविता शर्मा ने डमी कैंडिडेट पर कहा कि, 'जब कुछ वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाते हैं, जहां पहले पुरुष पार्षद का दबदबा हो ऐसी स्थिति में उन पार्षदों की पत्नी को मैदान में उतार दिया जाता है जो सिर्फ डमी की तरह मैदान में होती हैं. सारा काम उनके पति की ओर से किया जाता है. ऐसी महिलाएं कभी भी आगे नहीं बढ़ पाती है'.

'महिलाएं खुद सक्षम है'
वरिष्ठ पत्रकार श्याम वेताल ने कहा कि, 'अब वो समय नहीं रहा कि महिलाओं को पति परिवार के किसी व्यक्ति के नाम की जरूरत हो. अब महिलाएं खुद सक्षम है और आने वाले समय में महिलाओं को किसी सहारे की जरूरत नहीं होगी'.
अब ये तो निकाय चुनाव के बाद ही साफ होगा कि महिला प्रत्याशी मैदान में खुद उतरकर काम कर रही हैं या फिर डमी कैंडिडेट बनकर रह जाती हैं.

रायपुर : राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए भले ही आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई हो, लेकिन कहीं न कहीं महिलाएं अपने पतियों से अलग अपनी मजबूत छवि बनाने से पीछे हटती नजर आती हैं. ये हम नहीं बल्कि राजधानी के चौक-चौराहों पर लगे नगरीय निकाय चुनाव में महिला प्रत्याशियों के प्रचार के लिए लगाए गए पोस्टर कह रहे हैं.

महिला प्रत्याशी या डमी कैंडिडेट !

दरअसल, इस बार राजधानी रायपुर से नगरीय निकाय चुनाव के लिए कुल 137 महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, जो राजनीति में अपना भाग्य आजमा रही हैं, लेकिन राजनीति में महिलाओं की सहभागिता और सशक्तिकरण जैसे नारों के बीच एक जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है वो है इन महिला प्रत्याशियों के पतियों की, जो बैनर-पोस्टर से लेकर चुनाव प्रचार के लिए मैदान में दिख रहे हैं.

महिला प्रत्याशियों से जुड़े फैक्ट

  • चुनावी मैदान में हैं कुल 137 महिला प्रत्याशी.
  • रायपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से 23 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित.
  • बैनर-पोस्टर्स में महिला प्रत्याशियों के पतियों के नाम और फोटो का हो रहा इस्तेमाल

महिलाओं के लिए आरक्षित सीट से चुनाव लड़ रही ये महिलाएं भविष्य में जनता की आवाज बनने के साथ-साथ विकास करने में कितनी कारगर साबित होंगी या डमी कैंडिडेट बनकर रह जाएंगी इस पर ETV भारत ने महिला प्रत्याशियों से बात की, जिसमें उन्होंने इस पर कई अलग-अलग तर्क दिए.

ETV भारत ने वार्ड 44 की प्रत्याशी रेखा तिवारी से इस विषय पर बात की तो उनका कहना था कि, 'महिलाओं के साथ शुरू से उनके पिता का नाम जुड़ता आ रहा है वहीं शादी के बाद उनके पति का नाम जुड़ जाता है'.

'महिलाओं को सिर्फ कार्यकर्ता तक ही सीमित'

वहीं कुछ महिला प्रत्याशी ऐसी भी हैं जो अपने दम पर चुनाव मैदान में हैं. जोगी कांग्रेस से महिला प्रत्याशी नीना यूसुफ ने कहा कि, 'राजनीति में महिलाओं को सिर्फ कार्यकर्ता तक ही सीमित कर दिया जाता है और उन्हें ऊपर नहीं उठने दिया जाता'. उन्होंने कहा कि, 'मैंने कहीं भी अपने पति के नाम का इस्तेमाल नहीं किया है. मैं अपने दम पर चुनाव लड़ रही हूं'.

'महिला प्रत्याशी डमी कैंडिडेट की तरह'
वहीं प्रोफेसर कविता शर्मा ने डमी कैंडिडेट पर कहा कि, 'जब कुछ वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाते हैं, जहां पहले पुरुष पार्षद का दबदबा हो ऐसी स्थिति में उन पार्षदों की पत्नी को मैदान में उतार दिया जाता है जो सिर्फ डमी की तरह मैदान में होती हैं. सारा काम उनके पति की ओर से किया जाता है. ऐसी महिलाएं कभी भी आगे नहीं बढ़ पाती है'.

'महिलाएं खुद सक्षम है'
वरिष्ठ पत्रकार श्याम वेताल ने कहा कि, 'अब वो समय नहीं रहा कि महिलाओं को पति परिवार के किसी व्यक्ति के नाम की जरूरत हो. अब महिलाएं खुद सक्षम है और आने वाले समय में महिलाओं को किसी सहारे की जरूरत नहीं होगी'.
अब ये तो निकाय चुनाव के बाद ही साफ होगा कि महिला प्रत्याशी मैदान में खुद उतरकर काम कर रही हैं या फिर डमी कैंडिडेट बनकर रह जाती हैं.

Intro:रायपुर । रायपुर में नगर सत्ता को लेकर घमासान अपने शबाब पर है सत्ता के इस संग्राम में 137 महिला प्रत्याशी भी ताल ठोक रही है रायपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से 23 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित है इस तरह अलग-अलग पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों को मिलाकर 137 महिला उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रही हैं


Body:लेकिन इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार चुनाव अपने पतियों के नाम पर लड़ रही हैं इसको लेकर आशंका उठने लगी है यह भविष्य में डमी पार्षद हो सकती हैं पार्षद का सारा कामकाज उनके पति यानी कि पार्षद पति के हाथों में होगा

जब हमने ऐसी महिला प्रत्याशियों से बात की कि आखिर वह चुनाव मैदान में अपने पति का नाम इस्तेमाल क्यों कर रही हैं तो उनका जवाब कुछ इस तरीके से था वार्ड क्रमांक 44 की प्रत्याशी रेखा विकास तिवारी का कहना था कि ऐसा नहीं है महिलाओं के साथ शुरू से ही या तो उनके पिता का नाम जुड़ता है या फिर उनके पति का ।

बाईट - रेखा विकास तिवारी ( प्रत्याशी वार्ड 44, कांग्रेस)

हालांकि कुछ महिला प्रत्याशी ऐसे भी हैं जो सिर्फ अपने नाम के दम पर ही चुनाव मैदान में उतरेंगे ऐसे प्रत्याशियों से जब हमने अपने पतियों के नाम के इस्तेमाल के बारे में पूछा तो उनका जवाब कुछ इस तरीके से था

बाईट - नीना यूसुफ ( महिला प्रत्याशी जोगी कांग्रेस )

एक और देश में महिला सशक्तिकरण की बात की जा रही है राजनीतिक रूप से आरक्षण देकर सदन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाए जाने की बात की जा रही है दूसरी ओर मोहल्ले और वोट के चुनाव में भी महिलाएं अपने पतियों के नाम के साथ चुनावी मैदान में उतर रही हैं इससे साबित होता है कि ये महिलाएं राजनीति में किसी विकास में बदलाव के लिए नहीं बल्कि एक कठपुतली की तरह इस्तेमाल हो रही है

श्याम वेताल ( वरिष्ठ पत्रकार )

कविता शर्मा ( प्रोफेसर )

एक तरफ राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर समाज में बदलाव लाने की बात कही जा रही है वहीं दूसरी ओर महिला उम्मीदवारी के नाम पर पार्षद पतियों की फौज खड़ी की जा रही है कह सकते हैं इससे ना तो ना तो नारी सशक्तिकरण होने वाला है और ना ही कोई बदलाव आने वाला है


Conclusion:ओपनिंग पीटूसी

क्लोजिंग पीटूसी
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