रायपुर : साल 2000 में एमपी से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना. 90 विधानसभा सीट के साथ छत्तीसगढ़ विधानसभा का गठन हुआ. उस वक्त कांग्रेस के विधायकों की संख्या 48 थी. बीजेपी के 36 विधायक थे. बसपा के 3, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से 1 और 2 निर्दलीय विधायक थे. विधायकों की संख्या ज्यादा होने की वजह से कांग्रेस की सरकार बनी. इसके बाद बीजेपी के 12 विधायक कांग्रेस में शामिल हुए. कांग्रेस के विधायकों की संख्या बढ़कर 62 हो गई. इस तरह बीजेपी के पास 22 विधायक ही रह गए.
2003 में सत्ता में आई बीजेपी : तीन साल तक कांग्रेस की सत्ता प्रदेश में रही. साल 2003 में चुनाव हुए. चुनाव से पहले बीजेपी की स्थिति काफी कमजोर थी. बीजेपी को मजबूती देने के लिए रमन सिंह को कमान सौंपी गई. उस वक्त रमन सिंह केंद्र में मंत्री थे. मंत्री पद से इस्तीफा देकर रमन सिंह ने बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष की कमान संभाली. इस दौरान कांग्रेस में एक और घटना घटी. अंतर्कलह और जग्गी हत्याकांड के बाद विद्याचरण शुक्ल ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस से चुनाव लड़ा. इसका लाभ बीजेपी को मिला. इस चुनाव में बीजेपी के 50 विधायक चुनकर आए. कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई. बहुजन समाज पार्टी को 2 सीटें मिली. वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से एक विधायक जीता.
आदिवासी विधायकों को तोड़ने की कोशिश : विधानसभा चुनाव में बहुमत के बाद आदिवासी विधायकों को तोड़ने की कोशिश शुरु हुई. इसकी जानकारी केंद्रीय नेतृत्व को लग गई. आदिवासी सीएम के नाम पर बलिराम कश्यप को ऑफर दिया गया. विधायकों को टूटने से बचाने के लिए तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अरुण जेटली को छत्तीसगढ़ भेजा. जेटली ने इस बात का खुलासा किया कि बीजेपी विधायकों को कांग्रेस में शामिल होने का ऑफर मिला है, जिसकी फोन रिकॉर्डिंग भी दी गई.
स्टिंग ऑपरेशन में फंसे दिलीप सिंह जूदेव : छत्तीसगढ़ में कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर दिलीप सिंह जूदेव की छवि थी. उन्होंने प्रदेश में धर्मांतरण रोकने और बीजेपी को आदिवासी क्षेत्रों में मजबूती दी थी. 2003 में बीजेपी को बहुमत मिलने के बाद उन्हें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रेजेंट किया गया था. लेकिन नवंबर 2003 में एक स्टिंग ऑपरेशन में उन्हें कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए कैमरे में दिखाया गया. इसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इस घटना के बाद जूदेव मुख्यमंत्री बनने से चूक गए.
रमन सिंह को सौंपी गई कमान : 2003 विधानसभा चुनाव और सियासी उठापटक के बीच केंद्रीय संगठन नेतृत्व में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रमन सिंह को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया. छत्तीसगढ़ में संगठन को मजबूत करने में रमन सिंह की भूमिका थी. रमन सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार छत्तीसगढ़ के सभी क्षेत्रों में तेज गति से काम हुए. 2 रुपए किलो चावल देने की योजना ने रमन सिंह को चाउर वाले बाबा बनाया. जिसका नतीजा ये था कि बीजेपी 3 बार सत्ता में रही.
2013 तक बीजेपी का जादू : जन कल्याणकारी योजना और चाउर वाले बाबा की छवि के कारण भाजपा को लगतार 2003, 2008 और 2013 विधानसभा चुनाव में जीत हासिल हुई. साल 2008 में छत्तीसगढ़ के तीसरे विधानसभा चुनाव के दौरान 90 विधानसभा सीटों में 50 विधानसभा सीटों पर भाजपा के विधायक जीत कर आए. वहीं 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के 49 विधायकों को जनता ने अपना वोट दिया. बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में रोजगार, शिक्षा ,स्वास्थ्य, खेलकूद, धर्मस्व, नक्सल समस्या जैसे मुद्दों पर काम किया.
2018 में 15 सीटों पर सिमटी बीजेपी : वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध दुबे ने बताया कि ''साल 2013 से 2018 के बीच भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में ब्यूरोक्रेसी हावी हो गई. उस दौरान ऐसा लगने लगा कि जनप्रतिनिधि की जगह सरकार ब्यूरोक्रेसी और अधिकारी चला रहे हैं. बीजेपी के तीसरे शासनकाल में रमन सिंह के अलावा कोई बड़ा चेहरा नहीं बन पाया. जिसका नतीजा ये रहा कि एंटी इनकंबेंसी हावी रही. कार्यकर्ता अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे थे. भाजपा के कार्यकर्ताओं ने खुले मन से काम नहीं किया. किसानों में धान का बोनस नहीं मिलने से आक्रोश था. कमर्चारी अपनी मांगें पूरा नहीं होने के कारण नाराज चल रहे थे. इन सभी फैक्टर्स ने बीजेपी को सत्ता से बाहर किया. वहीं कांग्रेस को 68 सीटों पर विजय मिली. बीजेपी इस चुनाव में महज 15 सीट ही जीत पाई.''
2023 विधानसभा में मजबूती के साथ लड़ेगी बीजेपी : साल के अंत में प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी पूरे दमखम के साथ चुनाव की तैयारियों में जुटी है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को शासन करते साढ़े चार साल हो गए हैं. लेकिन पार्टी के अंदर गतिरोध है. कांग्रेस सत्ता और संगठन के बीच तालमेल नहीं बैठा पा रही है. प्रदेश के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री पद के दावेदार टीएस सिंहदेव और सीएम भूपेश बघेल की दूरियां अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी हैं. जिसका खामियाजा कांग्रेस को आने वाले चुनाव में उठाना पड़ सकता है. बीजेपी भी इस मुद्दे को जमकर भुना रही है.