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International Panic Day 2021: कोरोना काल के दौरान लोगों में बढ़ा तनाव, लोगों को कमाने की चिंता - तनाव प्रबंधन

18 जून को अंतर्राष्ट्रीय पैनिक डे (international panic day) मनाया जाता है. ये दिन आपके जीवन से तनाव दूर करने को लेकर मनाया जाता है. तनाव को प्रबंधित करना आसान नहीं है. लेकिन थोड़े से दृढ़ संकल्प और समर्थन से इसे कम किया जा सकता है. कोरोना काल में भी लोग काफी डिप्रेशन का शिकार हुए हैं. पूरा कोरोना काल इसका जीता जागता उदाहरण है.

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आर्थिक समस्या से जूझ रहे बस संचालक
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Published : Jun 18, 2021, 5:42 PM IST

रायपुर: पूरे विश्व में 18 जून को अंतर्राष्ट्रीय पैनिक डे (international panic day) मनाया जाता है. इस दिन को तनाव भरी जीवन में शांति देने के लिए मनाया जाता है. लोगों में तनाव के कारण अलग-अलग हो सकते हैं. किसी को काम का दबाव, आपसी रिश्तों की खटास या आर्थिक तंगी भी चिंता का कारण बन सकती है. कोरोना काल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन कारण चाहे जो भी हो, असर एक जैसा होता है. तनाव जितना ज्यादा रहेगा, उतना ही हमारे शरीर को कोर्टिसोल हार्मोन (cortisol hormone) से जूझना पड़ेगा. कुछ मामले में तनाव स्थायी हो जाता है और ये स्थिति बहुत बुरी होती है. इससे बचने के लिए अपनी प्राथमिकताओं का मूल्यांकन करें. इसके लिए समय निकालें. तनाव और चिंता का कारण बनने वाली किसी भी चीज को खत्म करने की कोशिश करें.

कोरोना काल के दौरान लोगों में बढ़ा तनाव,

पिछले डेढ़ साल से पूरे देश में कोरोना ने हाहाकार मचा रखा है. लाखों लोग अब तक प्रदेश में कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं. हजारों लोगों ने जान गंवाई. कोरोना की वजह से बहुतों के कारोबार पर भी असर (effect of corona on business) पड़ा है. कई लोगों का तो व्यापार ही बंद हो चुका है. तो किसी को कारोबार में भारी नुकसान सहना पड़ा है. रोजाना कमाने खाने वाले लोगों पर कोरोना काल का सबसे ज्यादा असर हुआ है. खासकर बस ड्राइवर (bus driver), कंडक्टर और दिहाड़ी मजदूरों पर अब भी इसका ज्यादा असर देखने को मिल रहा है.

स्ट्रेस का शिकार हुए बस ड्राइवर और कंडक्टर

पिछले डेढ़ साल से प्रदेश में गिनी-चुनी बस ही चल रही है. इस वजह से बस ड्राइवर और कंडक्टरो की हालत खराब हो चुकी है. इन्हें घर चलाना अब मुश्किल होता जा रहा है. इस वजह से ऐसे लोग डिप्रेशन और स्ट्रैस का शिकार हो रहे हैं. जिसके चलते लोग कई घातक कदम भी उठा रहे हैं. पिछले डेढ़ साल से बस नहीं चलने की वजह से 3 बस ड्राइवर ने खुदकुशी (suicide case) कर ली है. जिसमें से 1 रायपुर का ही रहने वाला था. एक बलौदाबाजार का और एक कवर्धा के रहने वाला था. अब तक करीब 10 बस ड्राइवरों ने रोजगार की चिंता की वजह से ऐसा कदम उठाया.

पिछले डेढ़ साल से खाली चल रही बस

कोरोना काल में बस ड्राइवर और कंडक्टर पिछले डेढ़ साल से खाली बैठे हैं. कोरोना की वजह से प्रदेश में किसी भी रूट पर बसों का संचालन नहीं हो रहा है. ऐसे में बस संचालकों की मुश्किलें बढ़ गई है. संचालकों का कहाना है कि 10-20 प्रतिशत यात्रियों के साथ ही बसों का संचालन किया जा रहा है. जिससे पेट्रोल-डीजल का भी खर्च भी निकालना मुश्किल हो रहा है. इस वजह से बस कंडक्टर और ड्राइवरों की रोजी-रोटी छिन चुकी है. आर्थिक स्थिति इनकी इतनी खराब हो चुकी है कि बच्चों के स्कूल में फीस और आम जरूरतों को भी पूरा करना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में परिवार चलाने में काफी मुश्किलें आ रही है.

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ड्राइवरों की मजबूरी

मौजूदा हालातों पर ETV भारत ने बस कर्मचारी संघ (bus workers union) के जिला अध्यक्ष रौशन गोस्वामी से बात की. उन्होंने बताया कि 21 मार्च 2020 से अब तक कोरोना काल का जो समय रहा है, वह बेहद दुखदाई है. इस दौरान बस संचालकों को सरकार की तरफ से किसी तरह कोई सहयोग नहीं मिला है. उनका कहना है कि लगातार तनाव में रहने के चलते उनकी मानसिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वे परिवार के साथ आत्महत्या करने तक को मजबूर हो रहे हैं. संघ के सदस्य शासन प्रशासन से कई बार मदद के लिए गुहार भी लगा चुके हैं. लेकिन स्थिति अब भी जस की तस है.

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

साइकोलॉजी विभाग (psychology department) के डॉक्टर जेसी अजवानी ने बताया कि पिछले डेढ़ साल के कोरोना काल में लोगों की आर्थिक स्थिति काफी खराब हुई है. खासकर उनकी स्थिति ज्यादा खराब हुई है जो प्राइवेट नौकरी करने वाले हैं. उन्होंने बताया कि ऐसे लोग जो रोजाना कमाने खाने वाले हैं, उनकी भी आर्थिक स्थिति काफी खराब हुई है. रेजा, कुली, बस ड्राइवर, कंडक्टर ज्यादा प्रभावित हुए हैं. डॉ. अजवानी ने बताया कि जब आर्थिक संकट मंडराता है तो लोग डिप्रेशन के शिकार होते हैं. आर्थिक संकट डिप्रेशन का एक बहुत बड़ा कारण माना जाता है. उन्होंने बताया कि ऐसे लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि वह अपनी बातें अपने घर वालों के साथ शेयर करें. जिससे उनकी मानसिक स्थिति थोड़ी ठीक रहेगी.

क्यों मनाया जाता है इंटरनेशनल पैनिक डे ?

18 जून को मनाए जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय पैनिक डे (international panic day) मूल रूप से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. ये दिन एक नकली अवकाश के रूप में मनाया जाता है. आज लोगों के जीवन में पहले से ज्यादा मानसिक तनाव है. कहीं न कहीं सब इस से डरे रहते हैं. इंटरनेशनल पैनिक डे इसलिए मनाया जाता है ताकि लोग एक दिन आराम से घर पर बैठकर अपनी समस्याओं के बारे में सोचें, समझे और एक दूसरे से बात करें. जिससे लोगों की अपनी घबराहट को लेकर झिझक दूर हो और वे एक दूसरे की मदद से इसस बाहर निकल सकें.

फ्रंटलाइन वर्करों और स्वास्थ्यकर्मियों में चिड़चिड़ापन मानसिक तनाव के लक्षण: मनोचिकित्सक सुरभि दुबे

तनाव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

शरीर में जारी तनाव वाले हार्मोन दिल की धड़कन और दिमाग में ऑक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाते हैं. इसके चलते व्यक्ति को सामान्य प्रतिक्रिया करने में दिक्कतें आती है. हालांकि, लंबे समय से किसी चीज को लेकर चिंता और तनाव व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है. ज्यादा तनाव दिल, पाचन तंत्र (Digestive System) को प्रभावित कर सकता है. पुराने तनाव वाले लोगों में दर्द से पीड़ित होने की ज्यादा संभावना रहती है. ऐसे में हृदय रोग (heart disease), स्ट्रोक, मधुमेह (Diabetes) और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (weak immune system) होने का खतरा बढ़ जाता है.

नकारात्मक सामाजिक प्रभाव

पुराने तनाव से अवसाद (depression) और दूसरी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती है. अध्ययन से पता चला है कि जो लोग तनावग्रस्त होते हैं, वे सामाजिक रूप से पीछे हट जाते हैं. उन्हें नए और सहायक संबंध बनाने में परेशानी होती है. ये एक दुष्प्रभाव को जन्म दे सकता है. जो लोग पुराने तनाव से पीड़ित हैं, उन्हें अपनी चिंताओं से निपटने के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत समर्थन की जरुरत होती है. लेकिन ये चिंताएं उन्हें मजबूत और सहायक सामाजिक बंधन बनाने नहीं देती हैं.

खुद को शांत रखें

तनाव को प्रबंधित करना आसान नहीं है. लेकिन थोड़े से दृढ़ संकल्प और समर्थन से इसे कम किया जा सकता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि तनाव प्रबंधन (stress management) का पहला कदम अपनी चिंताओं के कारणों को पहचानना है. एक बार ऐसा करने के बाद, उन्हें खत्म करने के तरीके खोजें. दूसरा परिवार के साथ अपनी बातों को रखें और चिंता कम करने क कोशिश करें. अगर आप किसी व्यक्ति की वजह से तनावग्रस्त हैं, तो अपनी मदद करने का एक तरीका ये है कि आप उसके साथ अपनी बातचीत को कम करने का तरीका खोजें.

रायपुर: पूरे विश्व में 18 जून को अंतर्राष्ट्रीय पैनिक डे (international panic day) मनाया जाता है. इस दिन को तनाव भरी जीवन में शांति देने के लिए मनाया जाता है. लोगों में तनाव के कारण अलग-अलग हो सकते हैं. किसी को काम का दबाव, आपसी रिश्तों की खटास या आर्थिक तंगी भी चिंता का कारण बन सकती है. कोरोना काल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन कारण चाहे जो भी हो, असर एक जैसा होता है. तनाव जितना ज्यादा रहेगा, उतना ही हमारे शरीर को कोर्टिसोल हार्मोन (cortisol hormone) से जूझना पड़ेगा. कुछ मामले में तनाव स्थायी हो जाता है और ये स्थिति बहुत बुरी होती है. इससे बचने के लिए अपनी प्राथमिकताओं का मूल्यांकन करें. इसके लिए समय निकालें. तनाव और चिंता का कारण बनने वाली किसी भी चीज को खत्म करने की कोशिश करें.

कोरोना काल के दौरान लोगों में बढ़ा तनाव,

पिछले डेढ़ साल से पूरे देश में कोरोना ने हाहाकार मचा रखा है. लाखों लोग अब तक प्रदेश में कोरोना संक्रमण का शिकार हो चुके हैं. हजारों लोगों ने जान गंवाई. कोरोना की वजह से बहुतों के कारोबार पर भी असर (effect of corona on business) पड़ा है. कई लोगों का तो व्यापार ही बंद हो चुका है. तो किसी को कारोबार में भारी नुकसान सहना पड़ा है. रोजाना कमाने खाने वाले लोगों पर कोरोना काल का सबसे ज्यादा असर हुआ है. खासकर बस ड्राइवर (bus driver), कंडक्टर और दिहाड़ी मजदूरों पर अब भी इसका ज्यादा असर देखने को मिल रहा है.

स्ट्रेस का शिकार हुए बस ड्राइवर और कंडक्टर

पिछले डेढ़ साल से प्रदेश में गिनी-चुनी बस ही चल रही है. इस वजह से बस ड्राइवर और कंडक्टरो की हालत खराब हो चुकी है. इन्हें घर चलाना अब मुश्किल होता जा रहा है. इस वजह से ऐसे लोग डिप्रेशन और स्ट्रैस का शिकार हो रहे हैं. जिसके चलते लोग कई घातक कदम भी उठा रहे हैं. पिछले डेढ़ साल से बस नहीं चलने की वजह से 3 बस ड्राइवर ने खुदकुशी (suicide case) कर ली है. जिसमें से 1 रायपुर का ही रहने वाला था. एक बलौदाबाजार का और एक कवर्धा के रहने वाला था. अब तक करीब 10 बस ड्राइवरों ने रोजगार की चिंता की वजह से ऐसा कदम उठाया.

पिछले डेढ़ साल से खाली चल रही बस

कोरोना काल में बस ड्राइवर और कंडक्टर पिछले डेढ़ साल से खाली बैठे हैं. कोरोना की वजह से प्रदेश में किसी भी रूट पर बसों का संचालन नहीं हो रहा है. ऐसे में बस संचालकों की मुश्किलें बढ़ गई है. संचालकों का कहाना है कि 10-20 प्रतिशत यात्रियों के साथ ही बसों का संचालन किया जा रहा है. जिससे पेट्रोल-डीजल का भी खर्च भी निकालना मुश्किल हो रहा है. इस वजह से बस कंडक्टर और ड्राइवरों की रोजी-रोटी छिन चुकी है. आर्थिक स्थिति इनकी इतनी खराब हो चुकी है कि बच्चों के स्कूल में फीस और आम जरूरतों को भी पूरा करना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में परिवार चलाने में काफी मुश्किलें आ रही है.

VIDEO: अगर हैं मोटापे से परेशान तो आपको करना चाहिए ये आसन, योग गुरु से सीखिए

ड्राइवरों की मजबूरी

मौजूदा हालातों पर ETV भारत ने बस कर्मचारी संघ (bus workers union) के जिला अध्यक्ष रौशन गोस्वामी से बात की. उन्होंने बताया कि 21 मार्च 2020 से अब तक कोरोना काल का जो समय रहा है, वह बेहद दुखदाई है. इस दौरान बस संचालकों को सरकार की तरफ से किसी तरह कोई सहयोग नहीं मिला है. उनका कहना है कि लगातार तनाव में रहने के चलते उनकी मानसिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वे परिवार के साथ आत्महत्या करने तक को मजबूर हो रहे हैं. संघ के सदस्य शासन प्रशासन से कई बार मदद के लिए गुहार भी लगा चुके हैं. लेकिन स्थिति अब भी जस की तस है.

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

साइकोलॉजी विभाग (psychology department) के डॉक्टर जेसी अजवानी ने बताया कि पिछले डेढ़ साल के कोरोना काल में लोगों की आर्थिक स्थिति काफी खराब हुई है. खासकर उनकी स्थिति ज्यादा खराब हुई है जो प्राइवेट नौकरी करने वाले हैं. उन्होंने बताया कि ऐसे लोग जो रोजाना कमाने खाने वाले हैं, उनकी भी आर्थिक स्थिति काफी खराब हुई है. रेजा, कुली, बस ड्राइवर, कंडक्टर ज्यादा प्रभावित हुए हैं. डॉ. अजवानी ने बताया कि जब आर्थिक संकट मंडराता है तो लोग डिप्रेशन के शिकार होते हैं. आर्थिक संकट डिप्रेशन का एक बहुत बड़ा कारण माना जाता है. उन्होंने बताया कि ऐसे लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि वह अपनी बातें अपने घर वालों के साथ शेयर करें. जिससे उनकी मानसिक स्थिति थोड़ी ठीक रहेगी.

क्यों मनाया जाता है इंटरनेशनल पैनिक डे ?

18 जून को मनाए जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय पैनिक डे (international panic day) मूल रूप से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. ये दिन एक नकली अवकाश के रूप में मनाया जाता है. आज लोगों के जीवन में पहले से ज्यादा मानसिक तनाव है. कहीं न कहीं सब इस से डरे रहते हैं. इंटरनेशनल पैनिक डे इसलिए मनाया जाता है ताकि लोग एक दिन आराम से घर पर बैठकर अपनी समस्याओं के बारे में सोचें, समझे और एक दूसरे से बात करें. जिससे लोगों की अपनी घबराहट को लेकर झिझक दूर हो और वे एक दूसरे की मदद से इसस बाहर निकल सकें.

फ्रंटलाइन वर्करों और स्वास्थ्यकर्मियों में चिड़चिड़ापन मानसिक तनाव के लक्षण: मनोचिकित्सक सुरभि दुबे

तनाव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

शरीर में जारी तनाव वाले हार्मोन दिल की धड़कन और दिमाग में ऑक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाते हैं. इसके चलते व्यक्ति को सामान्य प्रतिक्रिया करने में दिक्कतें आती है. हालांकि, लंबे समय से किसी चीज को लेकर चिंता और तनाव व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है. ज्यादा तनाव दिल, पाचन तंत्र (Digestive System) को प्रभावित कर सकता है. पुराने तनाव वाले लोगों में दर्द से पीड़ित होने की ज्यादा संभावना रहती है. ऐसे में हृदय रोग (heart disease), स्ट्रोक, मधुमेह (Diabetes) और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (weak immune system) होने का खतरा बढ़ जाता है.

नकारात्मक सामाजिक प्रभाव

पुराने तनाव से अवसाद (depression) और दूसरी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती है. अध्ययन से पता चला है कि जो लोग तनावग्रस्त होते हैं, वे सामाजिक रूप से पीछे हट जाते हैं. उन्हें नए और सहायक संबंध बनाने में परेशानी होती है. ये एक दुष्प्रभाव को जन्म दे सकता है. जो लोग पुराने तनाव से पीड़ित हैं, उन्हें अपनी चिंताओं से निपटने के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत समर्थन की जरुरत होती है. लेकिन ये चिंताएं उन्हें मजबूत और सहायक सामाजिक बंधन बनाने नहीं देती हैं.

खुद को शांत रखें

तनाव को प्रबंधित करना आसान नहीं है. लेकिन थोड़े से दृढ़ संकल्प और समर्थन से इसे कम किया जा सकता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि तनाव प्रबंधन (stress management) का पहला कदम अपनी चिंताओं के कारणों को पहचानना है. एक बार ऐसा करने के बाद, उन्हें खत्म करने के तरीके खोजें. दूसरा परिवार के साथ अपनी बातों को रखें और चिंता कम करने क कोशिश करें. अगर आप किसी व्यक्ति की वजह से तनावग्रस्त हैं, तो अपनी मदद करने का एक तरीका ये है कि आप उसके साथ अपनी बातचीत को कम करने का तरीका खोजें.

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