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संकट में सरोवर: राजधानी रायपुर का खो-खो तालाब खो रहा अपनी पहचान

राजधानी रायपुर का खो-खो तालाब किसी समय में लोगों की निस्तारी का अकेला साधन हुआ करता था, लेकिन 600 साल पुराना ऐतिहासिक तालाब अपनी पहचान खोता जा रहा है.

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संकट में राजधानी रायपुर का खो-खो तालाब
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Published : Dec 12, 2019, 11:06 PM IST

Updated : Dec 13, 2019, 7:09 AM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ तालाबों से समृध्द राज्य है. यहां शहरों और गांवों की पहचान यहां के तालाबों से है. आज हालात ऐसे है कि कभी राजधानी रायपुर की पहचान कहा जाने वाला 600 साल पुराना खो-खो तलाब अब अपना अस्तित्व भी खोता जा रहा है. खो-खो तालाब का इतिहास कल्चुरी काल से जुड़ा हुआ है, जो कभी अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता था. जो कभी कमल फूलों को समेटे हुए जीवंत था. ETV भारत सरोवर और उसके संकट पर विशेष पड़ताल कर रहा है कि कैसे प्रदूषण के साथ-साथ हमारी शहरी सभ्यता से तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.

संकट में राजधानी रायपुर का खो-खो तालाब

कांक्रीटीकरण ने घेरा
इतिहासकार बताते हैं कि खो-खो तालाब के निर्माण के समय उसका क्षेत्रफल लगभग 50 एकड़ था, लेकिन वर्तमान में खो-खो तालाब कुछ एकड़ों में सिमटकर रह गया है. कांक्रीटीकरण ने तालाब के एक बड़े हिस्से को अपने दायरे में ले लिया और आज वहां कांक्रीट के ढांचे तने हुए हैं.

पेयजल का बड़ा स्रोत था तालाब
पहले खो-खो तालाब इस इलाके की निस्तारी के लिए ऐतिहासिक सरोवर हुआ करता था. पेयजल का यह बड़ा स्रोत माना जाता था, लेकिन वर्तमान में गंदगी के चलते यह पानी निस्तारी के काबिल भी नहीं बचा है. भूमाफिया तालाब में गंदगी डालकर उसे पाट रहे हैं और लगातार तालाब पर कब्जा बढ़ता जा रहा है.

तालाब किनारे बने थे पत्थर वाले घाट
इस ऐतिहासिक खो-खो तालाब की खासियत ये है कि इसके तीनों तरफ घाट बना हुआ है. जो महिलाओं के लिए अलग और पुरुषों के लिए अलग हुआ करता था. यहां रहने वाले लोगों के लिए ये तालाब निस्तारी का सबसे बड़ा साधन था. आज यही ऐतिहासिक धरोहक अपनी पहचान के लिए तरस रहा है.

देखें- संकट में सरोवर: कहीं मिट न जाए कलचुरी काल का गौरवशाली इतिहास

जिम्मेदार नहीं ले रहे सुध
तालाबों के सौंदर्यीकरण करने में 14 तालाबों में खो-खो तालाब का भी चयन किया गया है, लेकिन अब तक इस पर काम शुरू नहीं किया गया है. आसपास के रहने वाले लोग बताते हैं कि तालाब की सफाई भी नहीं की जाती. नगर निगम ने भी इस तालाब पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया. तालाबों का सौंदर्यीकरण, सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गया और क्या अब ये तालाब सिर्फ कहने के लिए ही हमारा धरोहर रह गया है?

रायपुर: छत्तीसगढ़ तालाबों से समृध्द राज्य है. यहां शहरों और गांवों की पहचान यहां के तालाबों से है. आज हालात ऐसे है कि कभी राजधानी रायपुर की पहचान कहा जाने वाला 600 साल पुराना खो-खो तलाब अब अपना अस्तित्व भी खोता जा रहा है. खो-खो तालाब का इतिहास कल्चुरी काल से जुड़ा हुआ है, जो कभी अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता था. जो कभी कमल फूलों को समेटे हुए जीवंत था. ETV भारत सरोवर और उसके संकट पर विशेष पड़ताल कर रहा है कि कैसे प्रदूषण के साथ-साथ हमारी शहरी सभ्यता से तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.

संकट में राजधानी रायपुर का खो-खो तालाब

कांक्रीटीकरण ने घेरा
इतिहासकार बताते हैं कि खो-खो तालाब के निर्माण के समय उसका क्षेत्रफल लगभग 50 एकड़ था, लेकिन वर्तमान में खो-खो तालाब कुछ एकड़ों में सिमटकर रह गया है. कांक्रीटीकरण ने तालाब के एक बड़े हिस्से को अपने दायरे में ले लिया और आज वहां कांक्रीट के ढांचे तने हुए हैं.

पेयजल का बड़ा स्रोत था तालाब
पहले खो-खो तालाब इस इलाके की निस्तारी के लिए ऐतिहासिक सरोवर हुआ करता था. पेयजल का यह बड़ा स्रोत माना जाता था, लेकिन वर्तमान में गंदगी के चलते यह पानी निस्तारी के काबिल भी नहीं बचा है. भूमाफिया तालाब में गंदगी डालकर उसे पाट रहे हैं और लगातार तालाब पर कब्जा बढ़ता जा रहा है.

तालाब किनारे बने थे पत्थर वाले घाट
इस ऐतिहासिक खो-खो तालाब की खासियत ये है कि इसके तीनों तरफ घाट बना हुआ है. जो महिलाओं के लिए अलग और पुरुषों के लिए अलग हुआ करता था. यहां रहने वाले लोगों के लिए ये तालाब निस्तारी का सबसे बड़ा साधन था. आज यही ऐतिहासिक धरोहक अपनी पहचान के लिए तरस रहा है.

देखें- संकट में सरोवर: कहीं मिट न जाए कलचुरी काल का गौरवशाली इतिहास

जिम्मेदार नहीं ले रहे सुध
तालाबों के सौंदर्यीकरण करने में 14 तालाबों में खो-खो तालाब का भी चयन किया गया है, लेकिन अब तक इस पर काम शुरू नहीं किया गया है. आसपास के रहने वाले लोग बताते हैं कि तालाब की सफाई भी नहीं की जाती. नगर निगम ने भी इस तालाब पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया. तालाबों का सौंदर्यीकरण, सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गया और क्या अब ये तालाब सिर्फ कहने के लिए ही हमारा धरोहर रह गया है?

Intro:रायपुर । कल्चुरी काल में निर्मित खो - खो तालाब की बात हो और उसकी खूबसूरती का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता । खो-खो तालाब के निर्माण के दौरान उसका क्षेत्रफल लगभग 50 एकड़ था वर्तमान में खो-खो तालाब चंद एक करो में से सिमट कर रह गया है तलाक के बड़े हिस्सों में वर्तमान में दो मंजिला मकान और बिल्डिंग तने हुए हैं


Body:पहले खो-खो तालाब इलाके की निस्तारी के लिए ऐतिहासिक सरोवर हुआ करता था पेयजल का यह बड़ा स्रोत माना जाता था। लेकिन वर्तमान में गंदगी के चलते यह पानी निस्तारी के काबिल भी नहीं बचा है । भूमाफिया तालाब में गंदगी डाल उसे पाटा जा रहा है लगातार उस पर कब्जा बढ़ता जा रहा है

पत्थर वाले घाट बने थे तलाब में

लगभग 600 साल पुराना और रायपुर का ऐतिहासिक तालाब खो-खो तालाब की खासियत यह है कि इस तालाब के तीन ओर घाट बना हुआ है खो-खो तालाब रहवासियों की मिस तारीख का बड़ा साधन होता था रहवासी बताते हैं कि पहले तालाब का पानी इतना साफ होता था कि कई लोगों के घर का खाना भी उसी तालाब के पानी से बनता था

सौंदर्यीकरण के लिए 14 में से 1 खो-खो तालाब का भी चयन किया गया है लेकिन अब तक इस पर काम शुरू नहीं किया गया है आसपास के रहने वाले लोग बताते हैं कि तालाब की सफाई तक नहीं की जाती ।


Conclusion:बाइट इतिहासकार रविंद्र नाथ मिश्रा

बाकी की बाइट विजुअल सिद्धार्थ श्रीवासन के मोजोसे भेजी गई है
Last Updated : Dec 13, 2019, 7:09 AM IST
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