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संकट में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक सरोवर, ETV भारत की खास मुहिम

छ्त्तीसगढ़ के धरोहरों में शुमार प्रदेश के कई तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं. अकेले रायपुर में कभी 300 तालाब थे जो अब घटकर 100 के आस पास रह गए हैं. पर्यावरण प्रेमी और इतिहासकारों ने इस पर गंभीर चिंता जताई है.

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Published : Nov 24, 2019, 11:57 PM IST

Updated : Nov 25, 2019, 12:24 AM IST

संकट में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक सरोवर

रायपुर: जैसे-जैसे हम शहरी सभ्यता की ओर बढ़ते गए और शहरीकरण का विकास होता गया. उसी रफ्तार में बढ़ते प्रदूषण ने हमारे तालाबों को लीलना शुरू कर दिया. बढ़ते औद्यौगीकरण और शहरीकरण ने न सिर्फ हवा, बल्कि पानी को भी प्रदूषित किया है. इसकी सबसे ज्यादा मार ताबालों पर पड़ी है. तालाबों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है. ETV भारत सरोवर और उसके संकट पर विशेष पड़ताल कर रहा है कि कैसे प्रदूषण के साथ-साथ हमारी शहरी सभ्यता से तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.

संकट में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक सरोवर

प्रदूषण ने तालाबों को किया बर्बाद
बूढ़ा तालाब जिससे कभी रायपुर शहर अपनी प्यास बुझाता था. आज वह तालाब इस कदर बदहाली के दौर से गुजर रहा है कि यहां का पानी, पीना तो दूर लोग उस पानी से अपना हाथ धोना भी पसंद नहीं करते. कलचुरी राजवंश की राजधानी रही रायपुर में 300 से ज्यादा तालाब थे, लेकिन बढ़ती आबादी और प्रदूषण ने तालाबों की संख्या कम कर दी है. राजधानी रायपुर में अब तालाबों की संख्या 300 से घटकर 100 के आस पास पहुंच गई है.

तालाबों की बदहाली से इतिहासकार भी चिंतित
पहले शहर में बड़ी संख्या में तालाब होने की वजह से यहां भूमिगत जल का स्तर हमेशा अच्छा बना रहता था लेकिन तालाब मिटने और सूखने के चलते जल संकट की समस्या हमारे सामने मुंह बाए खड़ी है. शहर की इस पहचान के खोने से इतिहासकार भी बेहद चिंतित हैं. इतिहासकर रामेन्द्रनाथ मिश्र ने इस पर गंभीर चिंता जताई है और कहा कि सरोवर को बचाने के लिए सरकार के साथ-साथ समाज के लोगों को भी आगे आना होगा.जिस बूढ़ा तालाब का पानी पीकर स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया में भारतीय आध्यात्म का झंडा लहराया था वह आज धीरे धीरे कचरे के तालाब में तब्दील होता जा रहा है. जिस तालाब के पानी को पीकर पंडित रविशंकर शुक्ल ने छत्तीसगढ़ की आवाज पूरे देश तक पहुंचाई. वह तालाब अब बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है.

निस्तारी के इस शानदार साधन को खत्म कर हम अपने स्वर्णिम धरोहर को खत्म कर रहे हैं. अगर इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो तालाब पुस्तकों में या कहानियों में सिमट कर रह जाएगा.

रायपुर: जैसे-जैसे हम शहरी सभ्यता की ओर बढ़ते गए और शहरीकरण का विकास होता गया. उसी रफ्तार में बढ़ते प्रदूषण ने हमारे तालाबों को लीलना शुरू कर दिया. बढ़ते औद्यौगीकरण और शहरीकरण ने न सिर्फ हवा, बल्कि पानी को भी प्रदूषित किया है. इसकी सबसे ज्यादा मार ताबालों पर पड़ी है. तालाबों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है. ETV भारत सरोवर और उसके संकट पर विशेष पड़ताल कर रहा है कि कैसे प्रदूषण के साथ-साथ हमारी शहरी सभ्यता से तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.

संकट में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक सरोवर

प्रदूषण ने तालाबों को किया बर्बाद
बूढ़ा तालाब जिससे कभी रायपुर शहर अपनी प्यास बुझाता था. आज वह तालाब इस कदर बदहाली के दौर से गुजर रहा है कि यहां का पानी, पीना तो दूर लोग उस पानी से अपना हाथ धोना भी पसंद नहीं करते. कलचुरी राजवंश की राजधानी रही रायपुर में 300 से ज्यादा तालाब थे, लेकिन बढ़ती आबादी और प्रदूषण ने तालाबों की संख्या कम कर दी है. राजधानी रायपुर में अब तालाबों की संख्या 300 से घटकर 100 के आस पास पहुंच गई है.

तालाबों की बदहाली से इतिहासकार भी चिंतित
पहले शहर में बड़ी संख्या में तालाब होने की वजह से यहां भूमिगत जल का स्तर हमेशा अच्छा बना रहता था लेकिन तालाब मिटने और सूखने के चलते जल संकट की समस्या हमारे सामने मुंह बाए खड़ी है. शहर की इस पहचान के खोने से इतिहासकार भी बेहद चिंतित हैं. इतिहासकर रामेन्द्रनाथ मिश्र ने इस पर गंभीर चिंता जताई है और कहा कि सरोवर को बचाने के लिए सरकार के साथ-साथ समाज के लोगों को भी आगे आना होगा.जिस बूढ़ा तालाब का पानी पीकर स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया में भारतीय आध्यात्म का झंडा लहराया था वह आज धीरे धीरे कचरे के तालाब में तब्दील होता जा रहा है. जिस तालाब के पानी को पीकर पंडित रविशंकर शुक्ल ने छत्तीसगढ़ की आवाज पूरे देश तक पहुंचाई. वह तालाब अब बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है.

निस्तारी के इस शानदार साधन को खत्म कर हम अपने स्वर्णिम धरोहर को खत्म कर रहे हैं. अगर इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो तालाब पुस्तकों में या कहानियों में सिमट कर रह जाएगा.

Intro:वैसे तो तालाबों का इतिहास मानवीय सभ्यता के विकास के साथ जुड़ा हुआ है पहले पानी को इकट्ठा करने का कोई अन्य साधन नहीं होने के कारण तालाबों का निर्माण किया गया।
लगातार निर्माण के बाद इसकी एक वैज्ञानिक निर्माण कला विकसित हुई इस तरह तालाब मानव समाज के लिए आवश्यक अंग बनता गया।
एक वक्त ऐसा भी था जब किसी गांव या नगर की समृद्धि वहां मौजूद तालाबों से आंकी जाती थी।।

कलचुरी राजवंश की राजधानी रही रायपुर और रतनपुर इसके उदाहरण के तौर पर लिए जा सकते हैं। इन दोनों शहरों में सैकड़ों साल से भारी संख्या में तालाब मौजूद रहे हैं।

बात रायपुर शहर की की जाए तो अंग्रेजों के काल तक भी यहां 300 से ज्यादा तालाब मौजूद थे इनमें बूढ़ातालाब, महाराज बंद तालाब ,खो-खो तालाब कंकाली तालाब तेलीबांधा तालाब जैसे बड़े तालाब थे।
जैसे-जैसे शहर का विस्तार होता गया वैसे वैसे तालाब के अस्तित्व पर संकट के बादल छाने लगे आज शहर में 100 तालाब भी नही बचे हैं ।।


Body:आखिर हमारे इस गौरव को मिटाने वाला कौन है जिस तालाब के पानी को पीकर स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया में भारतीय अध्यात्म का झंडा लहरा दिया जिस के पानी को पीकर पंडित रविशंकर शुक्ल ने छत्तीसगढ़ की आवाज पूरे देश तक पहुंचाएं। ना जाने कितने महापुरुषों ने इन तालाबों का जल ग्रहण कर धन्य हुए वह तालाब अब कहां है कोई नहीं जानता।

ओपन पीटीसी


शहर में बहुतायत में तालाब होने के कारण यहां भूमिगत जल का स्तर हमेशा अच्छा बना रहता था लेकिन तालाब मिटने और सूखने के चलते भूमिगत जल संकट की समस्या हमारे सामने मुंह बाए खड़ा है।। शहर की इस पहचान की खोने से इतिहासकार भी बेहद चिंतित रहते हैं।।

बाईट

इतिहासकार
रामेन्द्रनाथ मिश्र

जहां दर्जनों तालाब का अस्तित्व हमेशा के लिए मिट चुका है वही जो तालाब मौजूद है वह भी मानवीय अतिक्रमण और असभ्यता के शिकार हैं । तालाब जिससे कभी रायपुर शहर अपनी प्यास बुझाता था।।
आज वह तालाब इस कदर बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं कि वहां पानी पीना तो दूर कोई अपने हाथ को धोना पसन्द नही करेंगे। मजबूरी वश कुछ लोग वहां स्नान करते हैं।।




Conclusion:निस्तारी के इस शानदार साधन को खत्म कर हम अपने स्वर्णिम धरोहर को खत्म कर रहे हैं अगर इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो तालाब पुस्तकों में या दादी नानी यों की कहानियों में ही सिमट कर रह जाएंगे।।



क्लोजिंग पिटीसी


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Last Updated : Nov 25, 2019, 12:24 AM IST
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