रायपुर: जैसे-जैसे हम शहरी सभ्यता की ओर बढ़ते गए और शहरीकरण का विकास होता गया. उसी रफ्तार में बढ़ते प्रदूषण ने हमारे तालाबों को लीलना शुरू कर दिया. बढ़ते औद्यौगीकरण और शहरीकरण ने न सिर्फ हवा, बल्कि पानी को भी प्रदूषित किया है. इसकी सबसे ज्यादा मार ताबालों पर पड़ी है. तालाबों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है. ETV भारत सरोवर और उसके संकट पर विशेष पड़ताल कर रहा है कि कैसे प्रदूषण के साथ-साथ हमारी शहरी सभ्यता से तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.
प्रदूषण ने तालाबों को किया बर्बाद
बूढ़ा तालाब जिससे कभी रायपुर शहर अपनी प्यास बुझाता था. आज वह तालाब इस कदर बदहाली के दौर से गुजर रहा है कि यहां का पानी, पीना तो दूर लोग उस पानी से अपना हाथ धोना भी पसंद नहीं करते. कलचुरी राजवंश की राजधानी रही रायपुर में 300 से ज्यादा तालाब थे, लेकिन बढ़ती आबादी और प्रदूषण ने तालाबों की संख्या कम कर दी है. राजधानी रायपुर में अब तालाबों की संख्या 300 से घटकर 100 के आस पास पहुंच गई है.
तालाबों की बदहाली से इतिहासकार भी चिंतित
पहले शहर में बड़ी संख्या में तालाब होने की वजह से यहां भूमिगत जल का स्तर हमेशा अच्छा बना रहता था लेकिन तालाब मिटने और सूखने के चलते जल संकट की समस्या हमारे सामने मुंह बाए खड़ी है. शहर की इस पहचान के खोने से इतिहासकार भी बेहद चिंतित हैं. इतिहासकर रामेन्द्रनाथ मिश्र ने इस पर गंभीर चिंता जताई है और कहा कि सरोवर को बचाने के लिए सरकार के साथ-साथ समाज के लोगों को भी आगे आना होगा.जिस बूढ़ा तालाब का पानी पीकर स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया में भारतीय आध्यात्म का झंडा लहराया था वह आज धीरे धीरे कचरे के तालाब में तब्दील होता जा रहा है. जिस तालाब के पानी को पीकर पंडित रविशंकर शुक्ल ने छत्तीसगढ़ की आवाज पूरे देश तक पहुंचाई. वह तालाब अब बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है.
निस्तारी के इस शानदार साधन को खत्म कर हम अपने स्वर्णिम धरोहर को खत्म कर रहे हैं. अगर इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो तालाब पुस्तकों में या कहानियों में सिमट कर रह जाएगा.