रायपुर: कृषि कानून के विरोध में किसानों ने जैसा आंदोलन दिल्ली में किया था ठीक वैसा ही आंदोलन छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में भी किसान (Nava Raipur farmers movement) कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के अटल नगर (नवा रायपुर) में पुनर्वास और व्यवस्थापन की मांग को लेकर, प्रभावित किसानों का आंदोलन 3 जनवरी 2022 से लगातार जारी है. किसानों के इस आंदोलन का समर्थन करने के लिए 27 अप्रैल को किसान नेता राकेश टिकैत रायपुर पहुंचेंगे. किसान नेता राकेश टिकैत (Farmer leader Rakesh Tikait) और युद्धवीर सिंह नया रायपुर में आंदोलन कर रहे किसानों के मामले में, राज्य सरकार और किसानों के बीच मध्यस्थ की भूमिका भी निभा सकते हैं. बताया जा रहा है कि टिकैत और युद्धवीर सिंह की मौजूदगी में 28 अप्रैल को मुख्यमंत्री और नवा रायपुर के किसान नेताओं के बीच बातचीत हो सकती है.
क्या है पूरा मामला : छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण 1 नवंबर सन 2000 को हुआ. प्रदेश बनने के बाद से ही सरकारी महकमे में इस बात की चर्चा होने लगी थी कि मध्य प्रदेश की राजधानी नया भोपाल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी नया रायपुर बनाया जाए. तात्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने साल 2002 में नया रायपुर बनाने के लिए पौता गांव में सोनिया गांधी से शिलान्यास भी करवाया. पौता के आसपास के 61 गांव को इस प्लान में रखा गया था. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार के प्लान में परिवर्तन किया. 2005 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने नया रायपुर के लिए राखी गांव में फिर से शिलान्यास करवाया. नया रायपुर के लिए बनाए गए इस प्लान में कुल 41 गांव को लिया गया. इस परियोजना के लिए कुल 27 गांव में जमीन की खरीदी बिक्री पर रोक लगाई गई. साल 2006 से सरकार ने किसानों की जमीनों को खरीदना शुरू किया.
किसान नेता ने बताया पूरा वाकया: नया रायपुर के किसान नेता रूपन चंद्राकर (अध्यक्ष, नई राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति) ने नया रायपुर निर्माण और प्रभावित किसानों के द्वारा किये गए आंदोलनों के बारे में सिलसिलेवार तरीके से बताया कि शुरूआत में किसानों के जमीन की कीमत शासन द्वारा, महज 1 लाख 40 हजार रुपये प्रति एकड़ दिए जाने की बात की गई थी. किसान नेता चंद्राकर के मुताबिक साल 2008 में इसके विरोध में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया. रूपन मानते हैं कि आंदोलन के दबाव से राज्य सरकार ने असिंचित जमीन की कीमत को 13 लाख 75 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर और सिंचित जमीन की कीमत 14 लाख 75 हजार करने का फैसला लिया.
जमीन अधिग्रहण की मिली धमकी: चंद्राकर के मुताबिक साल 2002 के बाद से ही नया रायपुर क्षेत्र में किसानों का आंदोलन रुक-रुक कर चलता रहा. नयी राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष रूपन चंद्राकर ने बताया कि प्रभावित क्षेत्र में आने वाले, रीको गांव में तात्कालीन शासन की ओर से नोटिस दिया गया. इस नोटिस में कहा गया है कि गांव के सभी किसान आपसी समझौता करके अपनी जमीन शासन को दे दें वरना सभी की जमीनें अधिग्रहित कर ली जाएंगी. शासन द्वारा दिये गए नोटिस के बाद किसान फिर आंदोलन के लिए लामबंद होने लगे.
कई बार किया गया आंदोलन: आगे किसान नेता रूपन ने बताया कि, साल 2009 में नया रायपुर के प्रभावित किसानों ने अपनी संस्था का पंजीयन करवाया और 20 जून 2009 को फिर से आंदोलन की शुरुआत की गई. आंदोलन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किसानों को बातचीत का न्यौता दिया. जिसमें उन्होंने जमीन की कीमतें समय के हिसाब से बढ़ाने का प्रस्ताव दिया, जिसे ज्यादातर किसानों ने स्वीकार नहीं किया. इस दौरान किसानों के अंदर ही फूट पड़ गई, जिससे आंदोलन बीच में ही रुक गया.
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अक्सर किसान और सरकार के बीच मतभेद आता रहा सामने: चंद्राकर ने बताया कि 1 अप्रैल 2010 को तात्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने किसानों को फिर से चर्चा के लिए आमंत्रित किया. इस बैठक में उन्होंने सिंचित जमीन की कीमत 25 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर और असिंचित जमीन की कीमत 17 लाख 50 हजार प्रति हेक्टेयर देने की बात की. इस मामले में भी किसानों में मतभेद खुलकर सामने आया. साल 2014 में जमीन अधिग्रहण को लेकर नया कानून आया. जिसमें ग्रामीण इलाके के जमीन में कलेक्टर रेट से 4 गुना अधिक और शहरी इलाके की जमीन में कलेक्टर रेट से 2 गुना अधिक मुआवजा देने का प्रावधान था.
नया रायपुर को शहरी क्षेत्र किया गया घोषित: चंद्राकर के मुताबिक किसानों ने इस कानून का भी विरोध किया था. क्योंकि साल 2014 में शासन ने नया रायपुर को शहरी क्षेत्र घोषित कर दिया था. नई राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष रूपन चंद्राकर का कहना है कि नया रायपुर के आंदोलनरत किसान भी चाहते हैं कि समझौता हो. किसानों की मांगें मानी जाए. चंद्राकर का कहना है कि जिस काम को पहले की सरकार ने नहीं किया, वह काम कांग्रेस की भूपेश सरकार करे.
आंदोलन स्थल की काटी जा रही बिजलियां: किसान नेता रूपन चंद्राकर का यह भी कहना है कि, वर्तमान कांग्रेस सरकार के मंत्री 8 में से जिन 6 किसानों की मांगों को मान लेने की बात कह रहे हैं. उनमें से 5 मांगे तो 2013 में ही मान ली गई थी. प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद से ही हम हर मंत्रियों के दरवाजे में जा रहे हैं लेकिन कहीं पर भी हमारी सुनवाई नहीं हो रही है. उल्टे हम किसानों को परेशान किया जा रहा है. हमारे आंदोलन स्थल की बिजलियां काटी जा रही है. हमें सभा की अनुमति नहीं दी जा रही है. मंच तैयार करने से रोका जा रहा है. नया रायपुर के किसान नेता रूपन चंद्राकर को उम्मीद है कि किसान नेता राकेश टिकैत की मौजूदगी में मुख्यमंत्री से होने वाली बैठक में उनकी बातें सुनी जाएंगी.
किसानों की क्या है मांगें ?
- प्रभावित 27 ग्रामों की घोषित नगरीय क्षेत्र की अधिसूचना निरस्त की जाए.
- सम्पूर्ण गांवों को ग्रामीण बसाहट का पट्टा दिया जाए.
- सन 2005 से स्वतंत्र भू क्रय-विक्रय पर लगे प्रतिबंध को तत्काल प्रभाव से हटाया जाए.
- मुआवजा प्राप्त नहीं हुए भू-स्वामियों को चार गुना मुआवजा मिले
- प्रभावित क्षेत्र के प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को 1200 वर्ग फीट विकसित भूखण्ड का वितरण किया जाए.
- अर्जित भूमि पर वार्षिकी राशि का भुगतान तत्काल दिया जाए.
- सशक्त समिति की 12वीं बैठक के निर्णयों का पूर्णतया पालन हो.
- आपसी सहमति, भू-अर्जन के तहत अर्जित भूमि के अनुपात में शुल्क का आवंटन किया जाए