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मेहनत के "राजकुमार" : कभी फैक्ट्री में की मजदूरी, जब खुद मालिक बने तो छठ घाट के लिए दान दी करोड़ों की 2 एकड़ जमीन

राजकुमार चौधरी ने रायपुर में साल 1973 से संघर्ष किया. पहले उन्होंने फैक्ट्री में मजदूरी की, फिर ठेकेदारी. जी-तोड़ मेहनत के बाद जब खुद फैक्ट्री के मालिक बने तो छठ घाट के लिए करोड़ों की दो एकड़ जमीन दान में दे दी, ताकि पर्व मनाने में कोई परेशानी न हो...

Rajkumar donated two acres of land for Chhath Ghat
राजकुमार ने छठ घाट के लिए दान दी थी दो एकड़ जमीन
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Published : Nov 9, 2021, 9:21 PM IST

Updated : Nov 9, 2021, 10:24 PM IST

रायपुर : लोक आस्था का (Chhath Festival of Folk Faith) महापर्व छठ बिहार-झारखंड (Bihar-Jharkhand) समेत अब पूरे देश-दुनिया में मनाया जाने लगा है. छत्तीसगढ़ में खासतौर पर बिहार के रहने वाले बिहारियों का यह प्रमुख और सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. पहले राजधानी रायपुर में छठ पर्व के आयोजन के लिए जमीन नहीं थी. छत्तीसगढ़ में रह रहे बिहारियों को अपने-अपने प्रदेश और घरों में जाकर त्योहार मनाना पड़ता था. ऐसे में राजधानी रायपुर के टाटीबंद निवासी राजकुमार चौधरी ने छठ पर्व के आयोजन में आ रही परेशानी समझते हुए दो एकड़ जमीन खरीदकर अपने समाज के नाम समर्पित कर दी. यही जमीन पिछले कई सालों से छठ पर्व के आयोजन में काम आ रही है.

राजकुमार ने छठ घाट के लिए दान दी थी दो एकड़ जमीन

उत्तर भारत कल्याण समिति का किया गठन

इतना ही नहीं उन्होंने तमाम बिहारियों को इकट्ठा कर उत्तर भारत कल्याण समिति का गठन भी किया है. यह पहली समिति मानी जाती है, जिसने छत्तीसगढ़ में सबसे पहले छठ पर्व का आयोजन किया. इसके बाद धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ में छठ पर्व मनाने की परंपरा और रिवाज की शुरुआत हो गई. वहीं इसी जगह पर दानदाता और समिति ने प्रदेश का इकलौते सूर्य मंदिर का भी निर्माण कराया है.

जमीन दान में देने वाले राजकुमार की क्या है संघर्ष की कहानी

बिहार से राजकुमार चौधरी रोजी-रोटी की तालाश में साल 1973 में रायपुर पहुंचे. राजधानी पहुंचकर सरोना स्थित एक फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम किया और एक-एक रुपये बचाकर अपना गुजारा लंबे समय तक करते रहे. धीरे-धीरे कुछ पूंजी इकट्ठी होने के बाद शादी की और परिवार बसाया. धीरे-धीरे फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम करते-करते उन्होंने आज फैक्ट्री के मालिक बनकर करोड़ों की संपत्ति भी अर्जित कर ली और उसी संपत्ति में से समाज के नाम करोड़ों रुपये की दो एकड़ जमीन छठ पर्व के आयोजन के लिए दान कर दिया.

इस तरह आया जमीन दान करने का विचार

राजकुमार चौधरी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि छठ पर्व मनाने के लिए हमाने पास जमीन नहीं थी. हर साल लोगों को बिहार जाना होता था. आने-जाने में ही बहुत पैसे खर्च हो जाते थे. कई ऐसे लोग भी थे, जिनकी स्थिति अच्छी नहीं थी. ऐसे में मन में सवाल आया कि क्यों न हम सभी बिहारी इकट्ठा होकर यहीं छठ पर्व मनाएं. इसके बाद चौधरी ने बिहारियों को इकट्ठा कर उत्तर भारत कल्याण समिति का गठन किया. समिति तो बन गई थी, लेकिन छठ पर्व मनाने के लिए जगह नहीं थी. ऐसे में चौधरी ने दो एकड़ जमीन छुइया तालाब के पास खरीदी और समिति को दान कर दी. आज उसी जगह पर हर साल हर्षोल्लास के साथ छठ पर्व मनाया जाता है.

सबसे पहले छुइया तालाब में मना छठ पर्व

राजकुमार चौधरी और समिति के अध्यक्ष चंद्रभूषण शर्मा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में सबसे पहले समिति द्वारा रायपुर के टाटीबंद के छुइया तालाब में छठ पर्व का आयोजन किया गया. इससे पहले छत्तीसगढ़ में छठ पर्व का आयोजन नहीं के बराबर होता था, लेकिन छठ पर्व समिति द्वारा आयोजन शुरू किये जाने के बाद से अब धीरे-धीरे राजधानी समेत छत्तीसगढ़ के दूसरी जगहों पर भी छठ पर्व का आयोजन होने लगा है. ऐसे में अब कहा जा सकता है कि राजधानी भी छठ पर्व के आयोजन में बिहार से पीछे नहीं है.

रायपुर : लोक आस्था का (Chhath Festival of Folk Faith) महापर्व छठ बिहार-झारखंड (Bihar-Jharkhand) समेत अब पूरे देश-दुनिया में मनाया जाने लगा है. छत्तीसगढ़ में खासतौर पर बिहार के रहने वाले बिहारियों का यह प्रमुख और सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. पहले राजधानी रायपुर में छठ पर्व के आयोजन के लिए जमीन नहीं थी. छत्तीसगढ़ में रह रहे बिहारियों को अपने-अपने प्रदेश और घरों में जाकर त्योहार मनाना पड़ता था. ऐसे में राजधानी रायपुर के टाटीबंद निवासी राजकुमार चौधरी ने छठ पर्व के आयोजन में आ रही परेशानी समझते हुए दो एकड़ जमीन खरीदकर अपने समाज के नाम समर्पित कर दी. यही जमीन पिछले कई सालों से छठ पर्व के आयोजन में काम आ रही है.

राजकुमार ने छठ घाट के लिए दान दी थी दो एकड़ जमीन

उत्तर भारत कल्याण समिति का किया गठन

इतना ही नहीं उन्होंने तमाम बिहारियों को इकट्ठा कर उत्तर भारत कल्याण समिति का गठन भी किया है. यह पहली समिति मानी जाती है, जिसने छत्तीसगढ़ में सबसे पहले छठ पर्व का आयोजन किया. इसके बाद धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ में छठ पर्व मनाने की परंपरा और रिवाज की शुरुआत हो गई. वहीं इसी जगह पर दानदाता और समिति ने प्रदेश का इकलौते सूर्य मंदिर का भी निर्माण कराया है.

जमीन दान में देने वाले राजकुमार की क्या है संघर्ष की कहानी

बिहार से राजकुमार चौधरी रोजी-रोटी की तालाश में साल 1973 में रायपुर पहुंचे. राजधानी पहुंचकर सरोना स्थित एक फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम किया और एक-एक रुपये बचाकर अपना गुजारा लंबे समय तक करते रहे. धीरे-धीरे कुछ पूंजी इकट्ठी होने के बाद शादी की और परिवार बसाया. धीरे-धीरे फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम करते-करते उन्होंने आज फैक्ट्री के मालिक बनकर करोड़ों की संपत्ति भी अर्जित कर ली और उसी संपत्ति में से समाज के नाम करोड़ों रुपये की दो एकड़ जमीन छठ पर्व के आयोजन के लिए दान कर दिया.

इस तरह आया जमीन दान करने का विचार

राजकुमार चौधरी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि छठ पर्व मनाने के लिए हमाने पास जमीन नहीं थी. हर साल लोगों को बिहार जाना होता था. आने-जाने में ही बहुत पैसे खर्च हो जाते थे. कई ऐसे लोग भी थे, जिनकी स्थिति अच्छी नहीं थी. ऐसे में मन में सवाल आया कि क्यों न हम सभी बिहारी इकट्ठा होकर यहीं छठ पर्व मनाएं. इसके बाद चौधरी ने बिहारियों को इकट्ठा कर उत्तर भारत कल्याण समिति का गठन किया. समिति तो बन गई थी, लेकिन छठ पर्व मनाने के लिए जगह नहीं थी. ऐसे में चौधरी ने दो एकड़ जमीन छुइया तालाब के पास खरीदी और समिति को दान कर दी. आज उसी जगह पर हर साल हर्षोल्लास के साथ छठ पर्व मनाया जाता है.

सबसे पहले छुइया तालाब में मना छठ पर्व

राजकुमार चौधरी और समिति के अध्यक्ष चंद्रभूषण शर्मा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में सबसे पहले समिति द्वारा रायपुर के टाटीबंद के छुइया तालाब में छठ पर्व का आयोजन किया गया. इससे पहले छत्तीसगढ़ में छठ पर्व का आयोजन नहीं के बराबर होता था, लेकिन छठ पर्व समिति द्वारा आयोजन शुरू किये जाने के बाद से अब धीरे-धीरे राजधानी समेत छत्तीसगढ़ के दूसरी जगहों पर भी छठ पर्व का आयोजन होने लगा है. ऐसे में अब कहा जा सकता है कि राजधानी भी छठ पर्व के आयोजन में बिहार से पीछे नहीं है.

Last Updated : Nov 9, 2021, 10:24 PM IST
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