रायपुर: छत्तीसगढ़ में वैसे तो जनसामान्य के लिए कई तरह की योजनाएं और निर्माण कार्य हुए हैं, लेकिन बीते सालों में कई ऐसे निर्माण भी करा दिए गए हैं, जो जनता के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं. ऐसे ही निर्माण कार्यों में राजधानी रायपुर में बन रहा स्काईवॉक है. जिसका निर्माण पिछली बीजेपी सरकार के दौरान शुरू हुआ था. तत्कालीन बीजेपी सरकार ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत राजधानी रायपुर के सबसे व्यस्ततम चौक शास्त्री चौक पर इसे बनाने का काम शुरू कराया. शुरुआती दौर से ही विवादों में रहा स्काईवॉक हमेशा से सिरदर्द का कारण बना रहा. अब सरकार बदलने के बाद भी इस प्रोजेक्ट को लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई है. शुरुआती दौर में इसे तोड़े जाने की चर्चा जोरों पर थी, बाद में राज्य सरकार ने इसे लेकर लोगों से ही सुझाव मांगा. लेकिन अभी भी स्काईवॉक पर न तो निर्माण कार्य हो रहा है और न ही किसी तरह का उपयोग शुरू हो पाया है.
ETV भारत ने जाना राजधानीवासियों का मूड
स्काईवॉक की उपयोगिता को लेकर ETV भारत ने रायपुर के लोगों से राय ली, जिसमें लोगों ने सिरे से स्काईवॉक प्रोजेक्ट को नकार दिया.आम लोगों का मानना है कि राजधानी रायपुर में जिस तरह से बसाहट है और जिस जगह पर इस स्काईवॉक का प्लान किया गया है, उस सड़क पर इसकी जरूरत नहीं थी, क्योंकि पहले से ही इस सड़क पर भारी वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित है. शहर के बाहर सभी रोड रिंग रोड बना दिए गए हैं. शहर के व्यस्त होने के साथ ही इस जगह पर कलेक्ट्रेट, जिला न्यायालय, तहसील दफ्तर, डीकेएस हॉस्पिटल, बीएसएनल मुख्यालय, मेकाहारा अस्पताल, सेंट्रल जेल और कई बड़े कॉम्प्लेक्स है, जहां बड़े पैमाने पर लोगों की आवाजाही होती है, ऐसे में इस स्काईवॉक पर चढ़कर एक ओर से दूसरी ओर जाना लोगों को रास नहीं आ रहा है.
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लड़ी लंबी लड़ाई
स्काईवॉक निर्माण को लेकर शुरुआती दौर से राजधानी के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया. जिसकी वजह से उन्हें प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी. बावजूद इसके लगातार इस प्रोजेक्ट को लेकर मुखर होकर लोगों ने इसका विरोध किया. सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने ETV भारत से चर्चा में बताया कि इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी गंभीर खामियां रही है. जिस जगह पर यह प्रोजेक्ट लाया गया, उसे बिना प्लान के लाया गया. स्काईवॉक प्रोजेक्ट के लिए नगर निगम के मेयर इन काउंसिल से भी अप्रूवल नहीं लिया गया है. उन्होंने कहा कि शहर में किसी भी निर्माण के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से इसका अप्रूवल लेना होता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया.
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लोगों की गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग
स्काईवॉक के निर्माण के शुरुआती दौर से ही इसे लेकर शहर के लोगों में जमकर नाराजगी है. ETV भारत ने शहर के कई प्रबुद्धजनों से स्काईवॉक को लेकर उनकी राय जानी. लोगों का कहना है कि स्काईवॉक जैसे प्रोजेक्ट को घनी आबादी वाले शहर के बीच में बनाया जाना बेहद ही दुर्भाग्यजनक फैसला रहा है. स्काईवॉक की जगह फ्लाईओवर बनाया जाता तो शहर को ट्रैफिक के दबाव से मुक्ति मिलती, लेकिन स्काईवॉक को राजधानीवासियों पर जबरदस्ती थोपा गया है. उनका कहना है कि इसके लिए दोषी अधिकारियों और सरकारी प्लान में शामिल रहे लोगों से रिकवरी की जानी चाहिए.
लगातार बड़ी प्रोजेक्ट की लागत
पिछली सरकार ने जयस्तंभ चौक के करीब मल्टी स्टोरी पार्किंग से लेकर शास्त्री चौक और अंबेडकर चौक के आगे तक स्काईवॉक बनाने का प्लान किया था. स्काईवॉक के लिए 2016-17 के बजट में 49 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था. शासन ने इस काम का जिम्मा मेसर्स जी एस एक्सप्रेस लखनऊ को सौंपा था. कंपनी को 9 माह में निर्माण कार्य पूरा करना था, पिछली सरकार की तरफ से कंपनी को 34 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका था, इसका ठेका 49 करोड़ में फाइनल हुआ. 2017 से बन रहा ये स्काईवॉक लंबे समय के बाद भी आज भी अधूरा पड़ा है. इसी बीच इस प्रोजेक्ट की लागत 49.89 करोड़ से लेकर 80 करोड़ तक पहुंच गई, क्योंकि जनवरी 2018 में ही इस प्रोजेक्ट को तैयार होना था, लेकिन आज भी ये अधर में ही लटका हुआ है.
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पानी में बहाई आम लोगों की कमाई
कई तरह के बेफिजूल प्रोजेक्ट पर करोड़ों रुपये खर्च कर देना न केवल आम लोगों की गाढ़ी कमाई का नुकसान है बल्कि शहर पर भी धब्बा बनकर रह गया है. जिस तरह से राजधानी रायपुर के खूबसूरत चौराहे शास्त्री चौक पर यह निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया गया है, ऐसे में न केवल चौराहा बल्कि शहर की पहचान रहे कलेक्ट्रेट गार्डन, शास्त्री चौक और अंबेडकर अस्पताल तक जाने वाली मुख्य सड़क का आकर्षण भी कम हुआ है. सबसे हैरानी की बात है कि इस प्रोजेक्ट का उपयोग जन सामान्य को भी समझ नहीं आ रहा है.