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Kangla Manjhi Sarkar: बिना हथियार आदिवासी के हितों की लड़ाई लड़ रहे सैनिकों से मिलिए, इनकी वर्दी भी बेहद खास

Kangla Manjhi Sarkar छत्तीसगढ़ में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सैनिकों के जैसी वर्दी में कुछ लोग नजर आए. खास बात यह है कि इन सैनिकों के हाथ में कोई हथियार नहीं था. यह सैनिक बिना हथियार ही आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ते हैं. यह मांझी सरकार के सैनिक हैं.

Kangla Manjhi Sarkar
बिना हथियार आदिवासी के हितों की लड़ाई लड़ रहे सैनिकों से मिलिए
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Published : Aug 10, 2023, 7:46 PM IST

Updated : Aug 10, 2023, 8:48 PM IST

बिना हथियार आदिवासी के हितों की लड़ाई लड़ रहे सैनिकों से मिलिए

रायपुर: विश्व आदिवासी दिवस पर हुए कार्यक्रम में मांझी सरकार के सैनिक शामिल हुए. इन्हें श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक कहा जाता है. संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष राजमाता फुलवा देवी कांगे हैं. वह जहां भी जाती हैं, वहां यह सैनिक तैनात रहते हैं. मांझी सरकार की स्थापना हीरा सिंह देव कांगे उर्फ कंगला मांझी ने 1910 में की थी. कंगला मांझी गोंड आदिवासी समुदाय से थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर कंगला मांझी ने आदिवासी इलाकों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार बनाई थी.

हीरा सिंह यानी कंगला मांझी ने आजादी की लड़ाई में सेना बनाकर संघर्ष किया. 1951 में विधिवत ढंग से सेना का गठन हुआ और वर्दी पहनने की शुरुआत हुई. उसके बाद से यह सभी वर्दीधारी आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं.खास बात यह है कि सभी बिना हथियार आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं.

खाकी वर्दी ड्रेस कोड है. हमें 156 देशों में मान्यता मिली हुई है. 1951 से भारत गोंडवाना के नाम से यह वर्दी दी गई है. इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ से हुई है. हीरा सिंह देव मांझी सरकार प्रॉपर छत्तीसगढ़ के ही हैं. बस्तर से ही आते हैं. इसे बस्तर से चालू किया गया इसलिए हमारे ज्यादातर सैनिक छत्तीसगढ़ के हैं. -शंकर उइके, सदस्य, श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक

मांझी सरकार से जुड़े लोग बताते हैं कि आजादी के बाद आदिवासी समुदाय को उसका हक नहीं मिला, जिसकी वजह से श्री मांझी अंतरराष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक सरकार आज भी काम कर रही है. यह लोग आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा खड़े रहते हैं. खास बात यह है कि यह सैनिक हथियारों से लैस नहीं होते हैं. यह निहत्थे खाली हाथ ही आदिवासियों के आपसी वाद विवाद, लड़ाई झगड़े का निपटारा करते हैं.

यदि किसी व्यक्ति को न्याय नहीं मिलता है तो हमारा संगठन न्याय दिलाने का काम करता है. -भादू राम हिड़को, प्रतिनिधि, श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक

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श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक का कार्यालय नई दिल्ली आदिवासी कैंप में है. हर जिले में इसके प्रतिनिधि हैं. इससे जुड़े सैनिक खेती किसानी करते हैं. कुछ मजदूरी करते हैं. यह सभी नि:स्वार्थ भावना से संस्था से जुड़े हुए हैं. इसमें प्रतिनिधि, प्रेसिडेंट, सेकेट्री और चपरासी चार पद होते हैं. चार पद महिला को भी दिया जाता है. जिसका बिल्ला बैच उन लोगों को दिया जाता है.

श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक का मुख्यालय दिल्ली में है. संगठन के कार्यालय हैं. मांझी सरकार में चुनाव भी होते हैं. गांव के अध्यक्ष होते हैं. तहसील कार्यालय और जिला कार्यालय के साथ ही प्रांत कार्यालय है. हम नशे के खिलाफ अभियान चलाकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं. -शंकर उइके, सदस्य, श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक

सैनिकों का कहना है कि वह मांझी के बताए रास्ते पर चल रहे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य और आदिवासी समाज को एकजुट करना ही संगठन का उद्देश्य है. सभी वर्दीधारी आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं. यह सेना पिछड़े, आदिवासी वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलाने के लिए बिना किसी हथियार के शांतिपूर्ण ढंग से काम कर रही है.

बिना हथियार आदिवासी के हितों की लड़ाई लड़ रहे सैनिकों से मिलिए

रायपुर: विश्व आदिवासी दिवस पर हुए कार्यक्रम में मांझी सरकार के सैनिक शामिल हुए. इन्हें श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक कहा जाता है. संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष राजमाता फुलवा देवी कांगे हैं. वह जहां भी जाती हैं, वहां यह सैनिक तैनात रहते हैं. मांझी सरकार की स्थापना हीरा सिंह देव कांगे उर्फ कंगला मांझी ने 1910 में की थी. कंगला मांझी गोंड आदिवासी समुदाय से थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर कंगला मांझी ने आदिवासी इलाकों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार बनाई थी.

हीरा सिंह यानी कंगला मांझी ने आजादी की लड़ाई में सेना बनाकर संघर्ष किया. 1951 में विधिवत ढंग से सेना का गठन हुआ और वर्दी पहनने की शुरुआत हुई. उसके बाद से यह सभी वर्दीधारी आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं.खास बात यह है कि सभी बिना हथियार आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं.

खाकी वर्दी ड्रेस कोड है. हमें 156 देशों में मान्यता मिली हुई है. 1951 से भारत गोंडवाना के नाम से यह वर्दी दी गई है. इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ से हुई है. हीरा सिंह देव मांझी सरकार प्रॉपर छत्तीसगढ़ के ही हैं. बस्तर से ही आते हैं. इसे बस्तर से चालू किया गया इसलिए हमारे ज्यादातर सैनिक छत्तीसगढ़ के हैं. -शंकर उइके, सदस्य, श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक

मांझी सरकार से जुड़े लोग बताते हैं कि आजादी के बाद आदिवासी समुदाय को उसका हक नहीं मिला, जिसकी वजह से श्री मांझी अंतरराष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक सरकार आज भी काम कर रही है. यह लोग आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा खड़े रहते हैं. खास बात यह है कि यह सैनिक हथियारों से लैस नहीं होते हैं. यह निहत्थे खाली हाथ ही आदिवासियों के आपसी वाद विवाद, लड़ाई झगड़े का निपटारा करते हैं.

यदि किसी व्यक्ति को न्याय नहीं मिलता है तो हमारा संगठन न्याय दिलाने का काम करता है. -भादू राम हिड़को, प्रतिनिधि, श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक

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श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक का कार्यालय नई दिल्ली आदिवासी कैंप में है. हर जिले में इसके प्रतिनिधि हैं. इससे जुड़े सैनिक खेती किसानी करते हैं. कुछ मजदूरी करते हैं. यह सभी नि:स्वार्थ भावना से संस्था से जुड़े हुए हैं. इसमें प्रतिनिधि, प्रेसिडेंट, सेकेट्री और चपरासी चार पद होते हैं. चार पद महिला को भी दिया जाता है. जिसका बिल्ला बैच उन लोगों को दिया जाता है.

श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक का मुख्यालय दिल्ली में है. संगठन के कार्यालय हैं. मांझी सरकार में चुनाव भी होते हैं. गांव के अध्यक्ष होते हैं. तहसील कार्यालय और जिला कार्यालय के साथ ही प्रांत कार्यालय है. हम नशे के खिलाफ अभियान चलाकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं. -शंकर उइके, सदस्य, श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक

सैनिकों का कहना है कि वह मांझी के बताए रास्ते पर चल रहे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य और आदिवासी समाज को एकजुट करना ही संगठन का उद्देश्य है. सभी वर्दीधारी आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं. यह सेना पिछड़े, आदिवासी वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलाने के लिए बिना किसी हथियार के शांतिपूर्ण ढंग से काम कर रही है.

Last Updated : Aug 10, 2023, 8:48 PM IST
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