रायपुर: राजधानी रायपुर में खारुन नदी के तट पर स्थित महादेव घाट पर हर साल की तरह एक बार फिर पुन्नी मेले का आयोजन होगा. पुन्नी मेले का आयोजन 30 नवंबर से होगा, जो 3 दिनों तक चलेगा. हालांकि इस बार मेले की रौनक पिछले सालों की तरह नहीं रहेगी. बीते सालों की तरह यहां न रंग-बिरंगी दुकानें लगेंगी, न मौत के कुएं का रोमांच होगा, न तो जादू के खेल होंगे और न तो मीना बाजार होगा. बच्चों का मनपसंद सर्कस भी इस बार नहीं लगाया जाएगा. कोरोना महामारी ने हर त्योहार, हर मेले का रंग फीका कर दिया है. मेले में केवल स्थानीय लोग दुकानें लगाएंगे, लेकिन बाहर से आकर जो लोग दुकानें लगाते थे, वो इस बार दुकानें नहीं लगा सकेंगे.
दुकानदारों की आर्थिक स्थिति खराब
महादेव घाट में स्थायी तौर पर लगभग 50 दुकानें लगती हैं. यहां के दुकानदारों का कहना है कि कोरोना के कारण उनका धंधा पहले से ही चौपट है. उन्हें उम्मीद थी कि पुन्नी मेले में उनकी अच्छी कमाई होगी, लेकिन मीना बाजार, सर्कस, जादू के खेल समेत अन्य मनोरंजन के साधनों पर प्रतिबंध लग जाने से उनकी बिक्री काफी हद तक प्रभावित होगी.
इन दुकानदारों को पुन्नी मेले का काफी समय से इंतजार रहता है कि कब मेला लगेगा और कब इनकी बिक्री अच्छे से होगी, लेकिन इस बार इनकी यह उम्मीद केवल उम्मीद बनकर रह जाएगी.
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साल 1428 से हो रहा है पुन्नी मेले का आयोजन
कार्तिक पूर्णिमा मेले का आयोजन सन् 1428 से हो रहा है, जहां पर आसपास के सैकड़ों गांवों से हजारों लोग मेला घूमने आते हैं. वे यहां पवित्र नदी में स्नान करने के साथ ही हटकेश्वर नाथ के मंदिर में दर्शन भी करते हैं. हालांकि इस साल कोरोना के कारण यहां आने वाले भक्तों की संख्या कम रहने कीस संभावना है. वहीं सरकार की गाइडलाइन का पालन करना भी अनिवार्य रहेगा. संक्रमण के डर के कारण कई लोग इस बार मेले में आने से बचेंगे.
महादेव घाट पर स्थायी रूप से कई तरह की दुकानें पिछले कई सालों से लगाई जा रही हैं, जिसमें बच्चों के खिलौने, आर्टिफिशियल ज्वेलरी, भगवान की मूर्तियां और फैंसी सामानों की दुकानें लगेंगी, लेकिन बाहर से जो दुकानें मेले में सजती थीं, इस बार उन्हें लगाने की अनुमति नहीं रहेगी. जिसके कारण इस बार का पुन्नी मेले का रंग फीका सा नजर आएगा.
माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए की थी कठिन तपस्या
खारून नदी के तट पर स्थित महादेव घाट के हटकेश्वरनाथ मंदिर के पुजारी सुरेश गोस्वामी ने बताया कि पुन्नी मेले का आयोजन सन 1428 से किया जा रहा है. यहां पर दूर-दूर के जिलों के लोग इस मेले में आते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के चलते मेले में भीड़ कम देखने को मिलेगी. पुन्नी मेले के महत्व के बारे में उन्होंने बताया कि कार्तिक मास में माता गौरी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कार्तिक मास में एक महीने तक स्नान किया था, जिसके कारण भी कार्तिक महीने में नदियों में स्नान करने का महत्व है.
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हटकेश्वर नाथ मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता
हटकेश्वर नाथ महादेव मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि 600 साल पहले राजा ब्रह्मदेव ने हटकेश्वर नाथ महादेव से संतान प्राप्ति की मन्नत मांगी थी. मन्नत पूरी होने पर 1428 में खारून नदी के किनारे कार्तिक पूर्णिमा के दिन राजा ने अपनी प्रजा को भोज के लिए आमंत्रित किया. हवन-पूजन, यज्ञ के बाद ग्रामीणों ने खेल-तमाशे का आनंद लेते हुए भोजन ग्रहण किया था. इसके बाद से हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन राजा ग्रामीणों को आमंत्रित करते थे. कालांतर में यह परंपरा मेले के रूप में परिवर्तित हो गई, जिसे पुन्नी मेले के नाम से जाना जाता है.
कोरोना संक्रमण से बचने के लिए गाइडलाइन
कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बार हटकेश्वर नाथ मंदिर में श्रद्धालु और भक्तों को मेन गेट से एंट्री की अनुमति नहीं होगी. इसके लिए नदी के तरफ पीछे वाले गेट से भक्तों को आने-जाने की अनुमति मिलेगी. इसमें भी नियम और शर्तों के तहत 10-10 के ग्रुप में भक्तों को भगवान का दर्शन कराया जाएगा. इस दौरान कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन भी किया जाएगा और भक्त आसानी से भगवान हटकेश्वर नाथ के दर्शन भी कर सकेंगे.